कोरोना संकट का इस्तेमाल समाज को बांटने के लिए किया जा रहा: एएमयू टीचर्स एसोसिएशन

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन की ओर से कहा गया है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग इस्लामोफोबिया फैला रहे हैं, उन्हें फटकारने के बजाय पुलिस उन पर कार्रवाई कर रही है, जो इस तरह की घृणित गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन की ओर से कहा गया है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग इस्लामोफोबिया फैला रहे हैं, उन्हें फटकारने के बजाय पुलिस उन पर कार्रवाई कर रही है, जो इस तरह की घृणित गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

New Delhi: Members of the Tablighi Jamaat leave in a bus from LNJP hospital for the quarantine centre during the nationwide lockdown, in wake of the coronavirus pandemic, in New Delhi, Tuesday, April 21, 2020. (PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI21-04-2020_000208B)
(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) टीचर्स एसोसिएशन ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि कोविड-19 संकट का इस्तेमाल एक विशेष समुदाय के प्रति नफरत फैलाने और समाज को बांटने के लिए किया जा रहा है.

एसोसिएशन ने अपनी कार्यकारिणी की एक विशेष बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया और इसे राष्ट्रपति के पास भेजा है. प्रस्ताव में महामारी से निपटने के तौर-तरीकों पर गहरी चिंता प्रकट की गई.

एएमयू टीचर्स एसोसिएशन ने आम आदमी, मुख्य रूप से दिहाड़ी मजदूरों के प्रति पूरी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए कहा, ‘जो प्रवासी मजदूर बड़े शहरों से अपने गांव और कस्बे लौट रहे हैं, उन लोगों की कोई गलती नहीं है.’

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘यह हम सबके लिए बहुत दुख का विषय है कि कोविड- 19 महामारी का इस्तेमाल एक विशेष समुदाय के प्रति नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है.’

एएमयू टीचर्स एसोसिएशन के सचिव प्रो. नजमुल इस्लाम ने संवाददाताओं से कहा, ‘हमारा मानना है कि देश में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में जीत तभी हासिल होगी, जब हम सब एकजुट होकर इसका मुकाबला करेंगे.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक के मुताबिक एसोसिएशन ने आरोप लगाया कि द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, बाल रोग विशेषज्ञ और मानवाधिकार कार्यकर्ता कफील खान और मानवाधिकार कार्यकर्ता उमर खालिद और दर्जनों अन्य समान कार्यकर्ताओं के खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए गए, क्योंकि उन्होंने पुलिस की ज्यादती और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है.

प्रस्ताव में कहा गया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग इस्लामोफोबिया फैला रहे हैं और विभाजनकारी नजरिए को मजबूत कर रहे हैं, उन्हें फटकारने के बजाय पुलिस द्वारा उन पर कार्रवाई कर रही है, जो इस तरह की घृणित गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

प्रोफेसर नजमुल इस्लाम ने कहा, ‘हमारा मानना है कि हमारे देश में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई तभी सफल हो सकती है जब हम एकजुट होंगे. हमें जातिगत और धार्मिक मतभेद से ऊपर उठकर समाज के हर वर्ग के साथ हाथ मिलाना होगा.’

अमर उजाला के मुताबिक नजमुल इस्लाम ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि आज महामारी को भी एक समुदाय से जुड़ने के लिए तर्क गढ़े जा रहे हैं और आधार तैयार किया जा रहा है. एएमयू इस पर गहरी चिंता व्यक्त करती है.

उन्होंने कहा कि आज समाज में इस्लामोफोबिया फैलाया जा रहा है.  राष्ट्रपति से मांग की गई है कि वह इन सब बातों का संज्ञान लेकर ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक लगाएं.

प्रोफेसर नजमुल इस्लाम ने कहा कि लॉकडाउन के समय जो प्रवासी मजदूर तकलीफ सहकर सफर करने को मजबूर हैं, हमारी संवेदना उनके साथ हैं. सरकार ने अचानक लॉकडाउन का फैसला लेकर अपनी अदूरदर्शिता और जल्दीबाजी का परिचय दिया है.

बता दें कि इससे पहले भी सौ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर देश के कुछ हिस्सों में मुसलमानों से भेदभाव की घटनाओं पर दुख प्रकट किया था.

नौकरशाहों ने मुख्यमंत्रियों से अनुरोध किया था कि वो सभी प्रशासन को राज्य में किसी भी समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को रोकने का निर्देश दें. साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी जरूरतमंदों को बराबर चिकित्सा और अस्पताल की सुविधाएं, राशन और वित्तीय सहायता मिले.

चिट्ठी लिखने वालों में पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर, पूर्व आईपीएस ऑफिसर एएस दुलत और जुलियो रिबेरो, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एसवाई कुरैशी आदि शामिल हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)