चीन और भारत की सभी सरकारें ये स्वीकार करती आई हैं कि सिक्किम क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य सीमा-निर्धारण हो चुका है.
नई दिल्ली: सिक्किम में चीन के साथ ताजा सीमा-विवाद के बाद नाथू-ला दर्रे से होकर होने वाली मानसरोवर यात्रा रद्द कर दी गई है.
बुधवार को दिल्ली में इस मामले पर एक उच्च-स्तरीय बैठक हुई. गुरुवार को भारतीय सेना प्रमुख ने भारत और चीन की सेना के बीच ताजा टकराव के बाद उपजे माहौल का जायजा लेने के लिए सीमावर्ती राज्य का दौरा किया है.
उच्च स्तरीय बैठक में गृह मंत्रालय, भारतीय सेना और भारतीय-तिब्बत सीमा बल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और सिक्किम क्षेत्र में ‘तनावपूर्ण स्थिति’ की समीक्षा की.
आधिकारिक सूत्रों के हवाले से पीटीआई ने खबर दी कि जून के पहले हफ्ते में चीन ने सिक्क्मि में भारत, चीन और भूटान के मिलन बिंदु पर भारतीय सेना के एक पुराने बंकर को ध्वस्त कर दिया.
भारतीय सेना ने चीन की आपत्तियों के बावजूद वहां से इस ढांचे को हटाने से इनकार कर दिया था.
दूसरी तरफ चीन ने यह आरोप लगाया है कि भारतीय सैनिक सीमारेखा पार कर चीन के क्षेत्र में दाखिल हुए और वहां जारी सड़क निर्माण के कार्य में बाधा डालने की कोशिश की.
यह वाकया दोको-ला (या दोंगलोंग) तिराहे पर हुआ, जहां भारत ने पहले भूटान की तरफ चीन द्वारा सड़क निर्माण का विरोध किया था.
चीन का दावा है कि वे अपनी सरहद के भीतर सड़क निर्माण कर रहे थे, जो दोनों पक्षों के बीच टकराव और बंकर को ध्वस्त किए जाने की वजह बना.
इस संकट के बारे में लोगों को तब पता चला जब चीन ने तिब्बत के कैलाश मानसरोवर की ओर जा रहे तीर्थयात्रियों के जत्थे को नाथू-ला सीमा चौकी से वापस भेज दिया.
पिछले कुछ समय से चीन का विदेश मंत्रालय इस पूरे मामले कहानी का अपना संस्करण सुनाने में सक्रिय है, मगर भारत की तरफ से करीब एक सप्ताह बाद प्रतिक्रिया आई है.
कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा के लिए इस दूसरे मार्ग की शुरुआत तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी प्रधानमंत्री से गुजारिश के बाद शुरू हुई थी. इसलिए इस यात्रा पर लगी रोक को चीन द्वारा मामले को काफी तूल दिए जाने के तौर पर देखा जा रहा है.
खासकर, इस बात के मद्देनजर कि दोनों पक्ष हाल के वर्षों में इस बात पर जोर देते रहे हैं कि दोनों देशों के बीच लगातार मजबूत हो रहे आपसी रिश्तों के अन्य पहलू सीमा विवादों के परे हैं.
तीर्थयात्रा पर रोक लगाने के चीनी फैसले की घोषणा 20 जून को चीन के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के अधिकारियों की भारतीय सेना के साथ बैठक में की गई.
सिक्किम सेक्टर में होने के कारण यह विवाद और ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस इलाके में सीमा निर्धारित है. दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव सामान्य तौर पर पश्चिमी और पूर्वी सेक्टर में होता रहा है, जहां सीमा का अंतिम निर्धारण अभी तक नहीं हुआ है.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कंग ने बुधवार को कहा कि तीर्थयात्रा को स्थगित करने का फैसला ‘वहां बने माहौल को देखते हुए उठाया गया एक आपातकालीन कदम था.’
उन्होंने कहा,‘मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि शी-जैंग (तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र) में भारतीय तीर्थयात्रा के लिए उचित वातावरण और सही स्थितियों की जरूरत है. तीर्थयात्रा न हो पाने के लिए भारतीय पक्ष कसूरवार है. यात्रा का यह मार्ग कब खुलेगा, यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि क्या भारतीय पक्ष अपनी गलती को समय पर सुधार सकता है.’
मंगलवार को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक सवाल के जवाब मे कहा कि सिक्किम में भारत के साथ सीमा का निर्धारण 127 साल पहले क्विंग साम्राज्य और ग्रेट ब्रिटेन के बीच हुई संधि-एंग्लो-चाइनीज कंवेंशन ऑफ 1890, पर आधारित था.
लू ने कहा,‘चीन और भारत की सभी सरकारें ये स्वीकार करती हैं कि सिक्किम खंड का सीमा-निर्धारण हो चुका है. भारतीय नेता, भारत सरकार के प्रासंगिक दस्तावेज और सीमा के मुद्दे पर चीन के साथ विशिष्ट प्रतिनिधियों की बैठक में भारत के प्रतिनिधिमंडल ने इस बात की पुष्टि की है कि भारत और चीन सिक्किम खंड के सीमा निर्धारण को लेकर 1890 के समझौते के प्रति एक सा विचार रखते हैं. भारतीय पक्ष इस समझौते और दस्तावेज का पालन करने के अंतरराष्ट्रीय दायित्व से मुंह नहीं मोड़ सकता.’
इस सवाल पर भारत भी असहमत नहीं है. भारतीय विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव और साउथ ब्लॉक के कुछ पुराने चीन विशेषज्ञों में से एक रणजीत काल्हा के मुताबिक,‘सीमा के सिक्किम-तिब्बत खंड पर 1890 के एंग्लो-चाइनीज कंवेंशन के मुताबिक सुलह हो चुकी है और 1895 में ही इसके सीमा का निर्धारण हो चुका है.’
काल्हा ने पिछले महीने दिल्ली में चीन के राजदूत के सिक्किम-तिब्बत सीमा के यथाशीघ्र निर्धारण के बेहद विचित्र प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए मिंट अखबार में लिखा था,‘चीन के विदेश मंत्रालय ने 26 दिसंबर, 1959 को भारत के दूतावास को संबोधित एक नोट में में भी यह कहते हुए इसकी पुष्टि की थी कि ‘चीन और सिक्किम के बीच सीमा औपचारिक रूप से निर्धारित की जा चुकी है और न नक्शे को लेकर और न ही जमीन पर व्यवहार में इस सवाल को लेकर किसी किस्म का कोई भ्रम है.’
भूटान ने उठाई चीन पर उंगली
लू ने चीन के इस दावे को दोहराया कि दोंगलोंग, जिसे वे दोकलाम कहते हैं,‘प्राचीन समय से ही चीन का हिस्सा है और यह भूटान के भीतर नहीं आता.’
उन्होंने यह कहते हुए भारत पर भूटान की संप्रभुता में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया कि भारत भूटान की लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहा है, जो कि भूटान की संप्रभुता का हनन है.
उन्होंने कहा,‘हम उम्मीद करते हैं कि सभी देश भूटान की संप्रभुता का सम्मान करेंगे. हालांकि, चीन और भूटान के बीच सीमा का अब तक निर्धारण नहीं हुआ है, लेकिन दोनों पक्ष इस मसले पर शांतिपूर्ण वार्ताओं के जरिए प्रयास कर रहे हैं. किसी तीसरे पक्ष को इसमें न हस्तक्षेप करना चाहिए, न ही ऐसा करना उसके अधिकार के भीतर आता है. लेकिन फिर भी कुछ लोग इस मामले में गैरजिम्मेदार कदम उठाते हैं और ऐसे बयान देते हैं, तो तथ्यों के खिलाफ है.’
वर्तमान में भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन दिल्ली में नियुक्त चीनी राजदूत से नियमित अंतराल पर संपर्क के द्वारा संवाद को बरकरार रखा गया है.
इसी बीच भारत में भूटान के राजदूत मेजर जनरल वी नामग्याल ने द हिंदू से कहा,‘चीनी सेना द्वारा सड़क निर्माण जॉम पेलरी में रॉयल भूटान आर्मी के एक कैंप की तरफ बढ़ रहा था’.
राजदूत नामग्याल के हवाले से यह भी कहा गया कि उनकी सरकार ने चीनी पक्ष से कहा था कि यह निर्माण चीन और भूटान के बीच (सीमा विवाद को सुलझाने के लिए) समझौते के अनुरूप नहीं है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि भूटान ने चीन को ‘यथास्थिति को बदलने की कोशिश करने से बाज आने को’ कहा है.
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