पीएम केयर्स फंड में प्राप्त हुई राशि और इसके ख़र्च का विवरण सार्वजनिक करने से मना करने के बाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय ने फंड में अनुदान को कर मुक्त करने और इसे सीएसआर ख़र्च मानने के संबंध में दस्तावेज़ों का खुलासा करने से मना कर दिया है.
नई दिल्ली: पीएम केयर्स फंड की गोपनीयता को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. इस संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए दायर किए गए कई सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदनों को खारिज करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने दावा किया है पीएम केयर्स आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ नहीं है, इसलिए सूचना नहीं दी जाएगी.
हालांकि पीएमओ की इस दलील को कई पूर्व सूचना आयुक्तों, आरटीआई कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने चुनौती दी है. पीएम केयर्स फंड में प्राप्त हुई कुल धनराशि का खुलासा करने को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है, जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.
कोरोना महामारी से लड़ने के नाम पर जनता से आर्थिक मदद प्राप्त करने के लिए 28 मार्च को पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया था.
लेकिन इस फंड की कार्यप्रणाली को गोपनीय रखने की सरकार की कोशिशों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने आरटीआई के तहत ये जानकारी भी देने से भी मना कर दिया है कि किस तारीख को इस फंड को ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर किया गया और किस तारीख से इसे चालू किया गया.
पीएमओ ने ये भी नहीं बताया कि किस कानून/नियमों के तहत इस ट्रस्ट को रजिस्टर किया गया है. सरकार का कहना है पीएम केयर्स फंड का गठन ‘एक चैरिटेबल ट्रस्ट’ के रूप में किया गया है.
कोमोडोर लोकेश बत्रा (रिटायर्ड) ने आरटीआई दायर कर पीएम केयर्स फंड के सभी ट्रस्टी के नाम और पद, रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी का नाम और वो कानून या नियम, जिसके तहत ये ट्रस्ट रजिस्टर किया गया है, के बारे में जानकारी मांगी थी.
इसके अलावा उन्होंने फाइल नोटिंग्स समेत उन सभी दस्तावेजों की प्रति मांगी थी जिसके जरिये पीएम केयर्स फंड में अनुदान को इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 80(जी) के तहत 100 फीसदी कर मुक्त किया गया है. इसके साथ ही बत्रा ने पीएम केयर्स फंड में डोनेशन को कंपनीज एक्ट, 2013 के तहत सीएसआर खर्च मानने के फैसले के संबंध में दस्तावेजों की प्रति मांगी थी.
हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने इन सभी बिंदुओं पर जानकारी देते हुए मना कर दिया. विभाग के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) परवीन कुमार ने पूर्व में इससे जुड़े आरटीआई आवेदनों पर दिए गए जवाब को हूबहू यहां भी छाप दिया था.
दो जून को भेजे अपने जवाब में कुमार ने लिखा, ‘पीएम केयर्स आरटीआई एक्ट, 2005 की धारा 2(एच) के तहत पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. पीएम केयर्स से जुड़ी संबंधित जानकारी pmcares.gov.in वेबसाइट पर देखी जा सकती है.’
हालांकि पीएम केयर्स की वेबसाइट ऐसी कोई भी जानकारी नहीं देती है.
किसे कहते हैं पब्लिक अथॉरिटी
आरटीआई एक्ट की धारा 2(एच) में पब्लिक अथॉरिटी की परिभाषा दी गई है और ये बताया गया है कि किस तरह के संस्थान इसके दायरे में है.
धारा 2(एच) में उपधारा (ए) से लेकर (डी) तक में बताया गया है कि कोई भी अथॉरिटी या बॉडी या संस्थान जिसका गठन संविधान, संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून, राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानून, सरकार द्वारा जारी किए गए किसी आदेश या अधिसूचना के तहत किया गया हो, उसे पब्लिक अथॉरिटी माना जाएगा.
इसके अलावा धारा 2(एच)(डी)(i) के मुताबिक कोई भी अथॉरिटी जिसका गठन सरकारी आदेश या अधिसूचना के जरिये किया गया हो और ये या तो सरकार के स्वामित्व में हो या इसे नियंत्रित किया जाता हो या सरकार द्वारा काफी हद तक वित्तपोषित हो, उसे पब्लिक अथॉरिटी कहा जाएगा.
धारा 2(एच)(डी)(ii) के तहत वो गैर-सरकारी संगठन जिनको सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फंड देती है, उसे पब्लिक अथॉरिटी कहा जाएगा और ऐसे संस्थानों को आरटीआई एक्ट के तहत सूचना देनी होगी.
पीएमओ की ये दलील है कि पीएम केयर्स फंड इनमें से किसी भी परिभाषा के दायरे में नहीं आता है. पीएम केयर्स पब्लिक अथॉरिटी है या नहीं, केंद्रीय सूचना आयोग और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले तथा विशेषज्ञों के साथ बातचीत के आधार पर हम इसका जवाब देने की यहां कोशिश कर रहे हैं.
केंद्र सरकार की दलील है कि पीएम केयर्स एक चैरिटेबल ट्रस्ट है और सरकार इसे फंड नहीं देती है और न ही इसे नियंत्रित करती है.
हालांकि जानकारों का कहना है कि सरकार के सर्वोच्च पदों वाले लोग इस फंड के ट्रस्टी हैं और विभिन्न माध्यमों से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर इस फंड का प्रचार किया जा रहा और करदाताओं के पैसे अनुदान के रूप में इसमें दिए जा रहे हैं, इसलिए ये स्पष्ट है कि सरकार और सरकार के लोग इसे नियंत्रित कर रहे हैं.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अपील पर पीएम केयर्स की तरह ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) की स्थापना की गई थी. इसमें प्राप्त अनुदान को प्राकतिक आपदाओं, दुर्घटनाओं इत्यादि के पीड़ितों की मदद में खर्च किया जाता है.
साल 1973 में इनकम टैक्ट एक्ट, 1961 की धारा 12ए के तहत इसे ‘ट्रस्ट’ के रूप में रजिस्टर किया गया. आगे चलकर वर्ष 1985 में पीएमएनआरएफ की मैनेजिंग कमेटी ने फंड का सारा कार्यभार प्रधानमंत्री को सौंप दिया गया, जिन्हें ये अधिकार दिया गया कि वो फंड को मैनेज करने के लिए एक सचिव नियुक्त कर सकते हैं.
साल 2005 में आरटीआई एक्ट पारित होने के बाद पीएमएनआरएफ में दान करने वाले लोगों और इसके लाभार्थियों का डिटेल जानने के लिए कई आरटीआई आवेदन दायर किए गए. इसमें से एक आवेनदनकर्ता थे शैलेष गांधी, जो कि बाद में केंद्रीय सूचना आयुक्त भी बने.
पीएम केयर्स के संबंध में दिए जा रहे जवाब के तरह ही पीएमओ ने पीएमएनआरएफ को लेकर गांधी के आवेदन को खारिज कर दिया और कहा कि यह पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. गांधी ने इसके खिलाफ अपील की और ये मामला केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) पहुंचा.
सीआईसी में पीएमओ के अधिकारियों ने कहा कि चूंकि पीएमएनआरएफ न तो सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है और न ही इसे वित्तीय सहायता दी जाती है, इसलिए यह आरटीआई एक्ट के तहत पब्लिक अथॉरिटी नहीं है.
इस पर सीआईसी ने कहा कि चूंकि पीएमएनआरएफ प्रधानमंत्री कार्यालय के विवेकाधीन है और यही से ये मैनेज किया जाता है, इसलिए पीएमओ जनता को पीएमएनआरएफ से जुड़ी जानकारी दे.
हालांकि आयोग ने कहा कि जहां तक लाभार्थियों के नाम बताने का सवाल है तो ऐसी जानकारी नहीं दी जा सकती है क्योंकि ये निजता के दायरे में है. लेकिन अगर संस्थाओं को लाभ देने के बारे में जानकारी मांगी जाती है तो उसका खुलासा आरटीआई एक्ट के तहत करना होगा.
इसी तरह एक अन्य आरटीआई आवेदन पर सुनवाई करते हुए सीआईसी ने पीएमएनआरएफ बनाम असीम तक्यार मामले में छह जून 2012 को आदेश दिया कि संस्थागत दानकर्ताओं के बारे में जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए.
सीआईसी के इस आदेश को 19 नवंबर 2015 को दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजीव एंडलॉ की एकल पीठ ने बरकरार रखा और कहा कि पीएमएनआरएफ संस्थागत दानकर्ताओं की जानकारी आरटीआई के तहत मुहैया कराए. हालांकि इस पीठ ने ये नहीं तय किया कि पीएमएनआरएफ पब्लिक अथॉरिटी है या नहीं.
पीएमएनआरएफ ने इस फैसले के खिलाफ अपील किया और मामला दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस रविन्द्र भट्ट और सुनील गौड़ की पीठ के पास पहुंचा. हालांकि ये पीठ भी अंतिम फैसला नहीं दे पाई क्योंकि दोनों जजों ने अलग-अलग फैसले दिए और फिलहाल मामला हाईकोर्ट के पास लंबित है.
जस्टिस भट्ट ने अपने फैसले में माना कि आरटीआई एक्ट की धारा 2(एच)(डी)(i) के तहत पीएमएनआरएफ एक पब्लिक अथॉरिटी है और प्राप्त हुआ अनुदान, दानकर्ताओं और लाभार्थियों के नाम तथा अन्य डिटेल सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
जज ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा फंड में दान देने की अपील करना और फंड की कमेटी में प्रधानमंत्री समेत उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और अन्य महत्वपूर्ण शीर्ष पदों वाले व्यक्तियों का होना ये नहीं माना जा सकता कि ये कोई व्यक्तिगत निर्णय है. उन कार्यों को सरकार की कार्रवाइयों के रूप में माना जाता है जिसका प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री करते हैं.
पीएम केयर्स की भी तस्वीर ऐसी ही है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री और इसके सदस्य वित्त मंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री हैं. इस फंड की कमेटी में सत्ता के शीर्ष पदों वाले व्यक्तियों के शामिल होने के बावजूद पीएमओ की दलील है कि ये प्राइवेट ट्रस्ट है और इसके सदस्य संवैधानिक पदों पर होने के बावजूद निजी आधार पर फैसले लेते हैं.
जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा था कि चूंकि दानकर्ताओं को टैक्स छूट देने के लिए पीएमएनआरएफ को ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर किया गया है और इसे पैन नंबर भी दिया गया है, इसलिए यह माना जाएगा कि ‘सरकार ने इसे लेकर आदेश’ जारी किया है. इस तरह यह आरटीआई एक्ट की धारा 2(एच)(डी) की परिभाषा में फिट बैठता है और यह पब्लिक अथॉरिटी है.
पीएम केयर्स को लेकर सरकार की यही दलील है कि चूंकि यह किसी सरकारी आदेश के जरिये गठित नहीं किया गया इसलिए यह पब्लिक अथॉरिटी की परिभाषा के दायरे में नहीं.
हालांकि ये दलील बिल्कुल सही नहीं है. प्रधानमंत्री कार्यालय ने खुद 28 मार्च को पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी), जो कि सरकारी संस्था है, के माध्यम से प्रेस रिलीज जारी कर पीएम केयर्स के गठन के बारे में जानकारी दी थी.
इसके अलावा सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर इनकम टैक्स एक्ट में संशोधन कराया ताकि पीएम केयर्स फंड में दान करने वाले लोगों, संस्थाओं को 100 फीसदी टैक्स छूट दिलाया जा सके. इतना ही नहीं, केंद्रीय कॉरपोरेट मंत्रालय ने बीते 26 मई को कंपनीज एक्ट, 2013 की धारा 467 में संशोधन किया है ताकि इस फंड में अनुदान को सीएसआर खर्च भी माना है.
इन दोनों संशोधनों से जुड़े दस्तावेजों का खुलासा करने से सरकार ने इनकार कर दिया है.
कोमोडोर लोकेश बत्रा कहते हैं, ‘यदि सरकार सीएसआर का पैसा इस फंड में ले रही है तो वो कैसे कह सकती है कि पीएम केयर्स पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. सीएसआर का प्रावधान संसद ने किया है और संसद का फैसला आरटीआई के दायरे में होता है.’
जस्टिस भट्ट ने पीएमएनआरएफ पर अपने फैसले में कहा था कि आरटीआई एक्ट का उद्देश्य सभी पब्लिक अथॉरिटी के कामकाज में पारदर्शिता लाना है और लोकतंत्र में एक सूचित समाज होना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र की कार्यप्रणाली में सूचना की पारदर्शिता को महत्वपूर्ण माना गया है, ताकि कामकाज में गोपनीयता को समाप्त किया जा सके और सरकारों एवं उनके तंत्र को जनता के प्रति जवाबदेह ठहराया जा सके.’
इस आधार पर जस्टिस भट्ट ‘पब्लिक अथॉरिटी’ की उदार होकर व्याख्या करने के लिए कहते हैं.
जज कहा कि एक पल के लिए मान लेते हैं कि पीएमएनआरएफ का गठन सरकार के किसी आदेश या नोटिफिकेशन के जरिये नहीं हुआ है, फिर भी पीएमएनआरएफ आरटीआई एक्ट की धारा 2(एच)(डी)(i) के दायरे में है.
जस्टिस भट्ट ने थलप्पलम सर्विस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ केरल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई व्याख्या का उल्लेख करते हुए कहा कि धारा 2(एच)(डी)(i) के तहत पीएमएमएनआरएफ सरकार द्वारा उचित स्तर पर ‘नियंत्रित’ किया जाता है.
उन्होंने कहा कि पीएमएनआरएफ किसी सामान्य सरकारी अधिकारी नहीं, बल्कि संवैधानिक पद यानी कि भारत के प्रधानमंत्री की देख-रेख में है. इस फंड के संबंध में प्रधानमंत्री द्वारा लिए गए फैसले को ये नहीं कहा जा सकता कि ये उनका व्यक्तिगत फैसला है. इस संबंध में प्रधानमंत्री के निर्णय को आधिकारिक निर्णय माना जाना चाहिए.
बहरहाल इस निर्णय को अंतिम फैसला नहीं माना जा सका क्योंकि दूसरे जज जस्टिस सुनील गौड़ ने इसे लेकर आपत्ति जताई. हालांकि जो लोग पीएम केयर्स को आरटीआई के तहत पब्लिक अथॉरिटी घोषित करने की मांग कर रहे हैं, उनकी दलीलें ऐसी ही हैं.
इसमें एक महत्वपूर्ण बात ये है कि पीएम केयर्स फंड का कोई अलग से ऑफिस नहीं है. यह प्रधानमंत्री कार्यालय में स्थित है और वहीं से संचालित किया जा रहा है. यानी कि अप्रत्यक्ष रूप से यहां पब्लिक का पैसा खर्च हो रहा है. पीएम केयर्स के लिए कोई अलग से स्टाफ भी नहीं है.
इसके अलावा सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) से भी कहा गया है कि वे इसमें अनुदान दें और बहुत सारे कंपनियों ने इसमें डोनेट भी किया है. पीएसयू कोई प्राइवेट कंपनी नहीं, बल्कि इसमें करदाताओं का पैसा लगा होता है.
इसके अलावा केंद्र सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर सरकारी वेबसाइटों के जरिये प्रचार कर लोगों से पीएम केयर्स में अनुदान करने की गुजारिश भी कर रहा है.