मई के आख़िरी सप्ताह में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना मरीजों पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षण पर रोक लगाई थी. अब मेडिकल जर्नल द लांसेट द्वारा उसके कोविड-19 के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लाभों पर सवाल उठाने वाले अध्ययन पर चिंता जताए जाने के बाद यह क़दम उठाया गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपने एकजुटता परीक्षण में मलेरिया रोधी दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के क्लिनिकल ट्रायल को दोबारा शुरू करने का फैसला किया है. एकजुटता परीक्षण कोविड-19 का इलाज खोजने के लिए दुनियाभर के देशों का संयुक्त प्रयास है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, डब्ल्यूएचओ ने यह कदम मेडिकल जर्नल द लांसेट द्वारा उस अध्ययन पर चिंता जताने के बाद उठाया है जिसे उसने प्रकाशित किया था. लांसेट द्वारा प्रकाशित उस अध्ययन में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लाभों पर सवाल उठाया गया था.
लांसेट के अध्ययन के बाद ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस की दवा ढूंढने के लिए दुनियाभर के कोरोना मरीजों पर जारी एकजुटता परीक्षण में से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को निकाल दिया था.
इस अध्ययन में शिकागो स्थित कंपनी सर्जिस्फेयर द्वारा अस्पतालों से जुटाए गए आंकड़ों को इस्तेमाल किया गया था. इस कंपनी के संस्थापक अध्ययन के लेखकों में से एक डॉ. सपन देसाई हैं.
मेडिकल जर्नल द लांसेट में छपे अध्ययन में पाया गया था कि क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा का कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में कोई लाभ नहीं है बल्कि यह कोरोना मरीजों में हृदय संबंधी बीमारियों के साथ मौत के खतरे को बढ़ाता है.
लांसेट द्वारा बुधवार को अपने अध्ययन पर चिंता जताने के बाद डब्ल्यूएचओ ने अपने निदेशक टेड्रोस एडेहनम ग्रेब्रेयेसस के हवाले से एक ट्वीट कर कहा, ‘मृत्युदर के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर समिति के सदस्यों ने सिफारिश की है कि ट्रायल प्रोटोकॉल में बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं है. कार्यकारी समूह हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल दोबारा शुरू करने के लिए ट्रायल करने वाले प्रमुख खोजकर्ताओं से संपर्क करेगा.’
Based on available data, the #COVID19 Solidarity Trial Data Safety & Monitoring Committee recommended there are no reasons to modify the trial protocol. The Executive Group endorsed the continuation of all arms of the Trial, including the use of hydroxychloroquine. https://t.co/r88DVEvZ3j pic.twitter.com/cYITShxcE7
— Tedros Adhanom Ghebreyesus (@DrTedros) June 3, 2020
डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, ‘हमारे डेटा सुरक्षा निगरानी बोर्ड ने एकजुटता में मृत्युदर के आंकड़ों की समीक्षा की. उन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और मृत्युदर के बीच कोई संबंध नहीं मिला. इसलिए हमने दोबारा ट्रायल शुरू करने का फैसला किया.’
भारत शुरू से लांसेट अध्ययन पर सवाल उठाता रहा और कोविड की रोकथाम में एज़िथ्रोमाइसिन के साथ इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देता रहा है.
वास्तव में, डब्ल्यूएचओ द्वारा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर रोक लगाने के एक दिन बाद ही भारत ने न सिर्फ इसके इस्तेमाल में प्रतिबद्धता जताई बल्कि उसके इस्तेमाल का दायरा भी बढ़ा दिया था.
इसके साथ ही एक हालिया अध्ययन में आईसीएमआर ने पाया था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल स्वास्थ्यकर्मियों में कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करता है.
एक बयान में लांसेट ने कहा कि कॉर्डियोलॉजिस्ट मंदीप मेहरा, देसाई और फ्रैंक रुस्चित्जका द्वारा किए गए अध्ययन पर महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रश्न उठाए गए हैं. इस संबंध में एक स्वतंत्र जांच बिठा दी गई है.
अध्ययनकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर दोबारा विचार करने वाला लांसेट अकेला मेडिकल जर्नल नहीं है. इससे पहले कोविड-19 के इलाज में हृदय संबंधी दवाओं के इस्तेमाल को लेकर किए गए अध्ययन पर न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन ने भी चिंता जताई थी. मेहता ओर देसाई इस अध्ययन की टीम का हिस्सा थे.