पत्रकारिता सिर्फ एक व्यक्ति से की गई उम्मीद से नहीं सिस्टम और संसाधन से चलती है

रिपोर्टिंग की प्रथा को संस्थानों के साथ समाज ने भी ख़त्म किया, वह अपनी राजनीतिक पसंद के कारण मीडिया और जोख़िम लेकर ख़बरें करने वालों को दुश्मन की तरह गिनने लगा. कोई भी रिपोर्टर एक संवैधानिक माहौल में ही जोखिम उठाता है, जब उसे भरोसा होता है कि सरकारें जनता के डर से उस पर हाथ नहीं डालेंगी.

/
(फोटो: पीटीआई)

रिपोर्टिंग की प्रथा को संस्थानों के साथ समाज ने भी ख़त्म किया, वह अपनी राजनीतिक पसंद के कारण मीडिया और जोख़िम लेकर ख़बरें करने वालों को दुश्मन की तरह गिनने लगा. कोई भी रिपोर्टर एक संवैधानिक माहौल में ही जोखिम उठाता है, जब उसे भरोसा होता है कि सरकारें जनता के डर से उस पर हाथ नहीं डालेंगी.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

सिर्फ उम्मीद से पत्रकारिता नहीं चलती है. पत्रकारिता बिनाका गीतमाला नहीं है. फरमाइश की चिट्ठी लिख दी और गीत बज गया. गीतमाला चलाने के लिए भी पैसे और लोग की जरूरत तो होती होगी.

मैं हर दिन ऐसे मैसेज देखता रहता हूं कि आपसे उम्मीद है, लेकिन पत्रकारिता का सिस्टम सिर्फ उम्मीद से नहीं चलता. उसका सिस्टम बनता है पैसे से और पत्रकारिता की प्राथमिकता से. कई बार जिन संस्थानों के पास पैसे होते हैं वहां प्राथमिकता नहीं होती, लेकिन जहां प्राथमिकता होती है वहां पैसे नहीं होते.

कोरोना के संकट में यह स्थिति और भयावह हो गई है. न्यूज़ कवरेज का बजट कम हो गया है. इसमें खबर करने वाले पत्रकार भी शामिल हैं. पिछले दिनों अखबार बंद हुए. ब्यूरो बंद हो गए. बीस-बीस साल के अनुभव वाले पत्रकार झटके में निकाल दिए गए.

खबर खोजने का संबंध भी बजट से होता है. गाड़ी-घोड़ा कर जाना पड़ता है. खोजना पड़ता है. बेशक दो-चार लोग कर रहे हैं लेकिन इसका इको सिस्टम खत्म हो गया. कौन खबर लाएगा? खबर लाना भी एक कौशल है. जो कई साल में निखरता है.

अनुभवी लोगों को निकाल देने से खबरों का प्रवाह बुरी तरह प्रभावित होता है. यही नहीं जिले में काम करने वाले अस्थायी संवाददाताओं का बजट भी समाप्त हो गया. स्ट्रिंगर भी एक सिस्टम के तहत काम करता है. वो सिस्टम खत्म हो गया.

अब कोरोना काल में जब विज्ञापन बंद हुए तो उसके कारण कई पत्रकार निकाल दिए गए. न्यूज़ रूम खाली हो गए. ज्यादातर पत्रकार बहुत कम पैसे में जीवन गुजार देते हैं. कोविड-19 में छंटनी से वे मानसिक रूप से तबाह हो गए होंगे.

वैसे चैनलों में रिपोर्टर बनने की प्रथा कब की खत्म-सी हो गई थी. खत्म-सी इसलिए कहा कि अवशेष बचे हुए हैं. आपको कुछ रिपोर्टर दिखते हैं, लेकिन वही हर मसले की रिपोर्टिंग में दिखते हैं. नतीजा यह होता है कि वे जनरल बात करके निकल जाते हैं. उनका हर विभाग में सूत्र नहीं होता है न ही वे हर विभाग को ठीक से जानते हैं.

जैसे कोरोना काल में ही देखिए. टीवी पर ही आपने कितने रिपोर्टर को देखा जिनकी पहचान या साख स्वास्थ्य संवाददाता की है? तो काम चल रहा है. बस.

आप किसी भी वेबसाइट को देखिए. वहां खबरें सिकुड़ गई हैं. दो चार खबरें ही हैं. उनमें से भी ज्यादातर विश्लेषण वाली खबरें हैं. बयान और बयानों की प्रतिक्रिया वाली खबरें हैं. यह पहले से भी हो रहा था. लेकिन तब तक खबरें बंद नहीं हुईं थीं. अब खबरें बंद हो गईं और डिबेट बच गए हैं.

डिबेट के थीम ग्राउंड रिपोर्टिंग पर आधारित नहीं होते हैं. जिस जगह पर रिपोर्टिंग होनी चाहिए थी उस जगह को तथाकथित और कई बार अच्छे विशेषज्ञों से भरा जाता है. आप जितना डिबेट देखते हैं उतना ही खबरों का स्पेस कम करते हैं.

कई बार डिबेट ज़रूरी हो जाता है लेकिन हर बार और रोज-रोज नहीं. इसके नाम पर चैनलों के भीतर रिपोर्टिंग का सिस्टम खत्म कर दिया गया. कोरोना के बहाने तो इसे मिटा ही दिया गया. सरकार के दबाव में और सरकार से दलाली खाने की लालच में और अर्थ के दबाव में भी.

मीडिया में राजनीतिक पत्रकारिता पर सबसे अधिक निवेश किया गया. उसके लिए बाकी विषयों को ध्वस्त कर दिया गया. आज राजनीति पत्रकारिता भी ध्वस्त हो गई. बड़े-बड़े राजनीतिक संपादक और पत्रकार ट्विटर से कॉपी कर चैनलों के न्यूज़ ग्रुप में पोस्ट करते हैं. या फिर ट्विटर पर कोई प्रतिक्रिया देकर डिबेट को आगे बढ़ाते रहते हैं. बीच-बीच में चिढ़ाते भी रहते हैं!

प्रधानमंत्री कब बैठक करेंगे यह बताने के लिए चैनल अभी भी राजनीतिक पत्रकारों में निवेश कर रहे हैं. साल में दो बार मीठा-मीठा इंटरव्यू करने के लिए.

दूसरा रिपोर्टिंग की प्रथा को समाज ने भी खत्म किया, वह अपनी राजनीतिक पसंद के कारण मीडिया और जोखिम लेकर खबरें करने वालों को दुश्मन की तरह गिनने लगा. कोई भी रिपोर्टर एक संवैधानिक माहौल में ही जोखिम उठाता है, जब उसे भरोसा होता है कि सरकारें जनता के डर से उस पर हाथ नहीं डालेंगी.

राजनीतिक कारणों से पत्रकार और एंकर निकाले गए, लोग चुप रहे. यहां तक तो पत्रकार झेल ले गया. लेकिन अब मुकदमे होने लगे हैं. हर पत्रकार केस मुकदमा नहीं झेल सकता है. उसकी लागत होती है. कोर्ट से आने वाली खबरें आप नोट तो कर ही रहे होंगे.

इसलिए जब आप कहते हैं कि ये खबर कर दीजिए, वो दिखा दीजिए, अच्छी बात है. लेकिन तब आप चौकस नहीं होते जब पत्रकारिता के सिस्टम को राजनीतिक और आर्थिक कारणों से कुचल दिया गया. बेशक संस्थानों की भी इसमें भूमिका रही लेकिन आप खुद से पूछें कि दिन भर में छोटी-मोटी साइट पर लिखकर गुजारा करने वाले कितने पत्रकारों की खबरों को साझा करते हैं?

आपको यह भी समझना होगा कि क्यों दिल्ली की ही खबरें हैं क्योंकि गुजरात में ब्यूरो नहीं है, संवाददाता नहीं है. हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, केरल या बंगाल और असम में नहीं है. जहां है, वहां अकेला बंदा या बंदी है. ब्यूरो के पत्रकार बिना छुट्टी के साल भर काम करते हैं. उनका बजट बहुत कम है.

दूसरा, अब राज्य सरकारें केस मुकदमा करने लगी हैं. तीसरा, लोग आईटी सेल बनकर साहसिक पत्रकारों को गाली देने लगे हैं. और अब संपादक या संस्थान दोनों ऐसी खबरों की तह में जाना ही नहीं चाहते. बीच-बीच में एकाध ऐसी खबरें आ जाती हैं और चैनल या अखबार पत्रकारिता का ढिंढोरा पीटकर सो जाते हैं. फिर सब ढर्रे पर चलता रहता है.

इस प्रक्रिया को समझिए. पांच साल से तो मैं ही अपने शो में कहता रहा हूं, लिखता-बोलता रहा हूं कि मैं अकेला सारी खबरें नहीं कर सकता और न ही संसाधन है. आप दिल्ली के ही चैनलों में पता कर लें, दंगों की एफआईआर पढ़ने वाले कितने रिपोर्टर हैं, जिन्हें चैनल ने कहा हो कि चार दिन लगाकर पढ़ें और पेश करें.

मैं देख रहा था कि यह हो रहा है इसलिए बोल रहा था. लोगों को लगा कि मैं हताश हो रहा हूं, उम्मीद छोड़ रहा हूं. जबकि ऐसा नहीं था. अब आप किसी पर उम्मीद का मनोवैज्ञानिक दबाव डाल कर फारिग नहीं हो सकते. पत्रकारिता सिर्फ एक व्यक्ति से की गई उम्मीद से नहीं चलती है. सिस्टम और संसाधन से चलती है. दोनों खत्म हो चुके हैं.

सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर मीडिया से अगर आप उम्मीद करते हैं तो आप बेहद चालाक हैं. आलसी हैं. मुश्किल प्रश्न को छोड़ कर पहले आसान प्रश्न ढूंढने वाले छात्रों को पता है कि यही करते-करते घंटी बज जाती है और परीक्षा खत्म हो जाती है.

(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq