साल 2018 में गिरफ़्तार किए गए एक कथित बांग्लादेशी नागरिक और उनकी बेटी को ज़मानत देते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे नागरिकों के बरी या रिहा होने के बाद भी प्रशासन द्वारा उचित ट्रिब्यूनल के सामने ऐसे लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.
नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि देश में अनुमति से अधिक समय के लिए रुके ऐसे विदेशी नागरिक या अवैध प्रवासी, जिन पर कोई आपराधिक मामला चल रहा है, जमानत मिलने के बावजूद ऐसे लोगों को अगले आदेश या फिर जब तक कि उन्हें उनके देश वापस नहीं भेज दिया जाता है, तब तक डिटेंशन सेंटर में रखा जाए.
जस्टिस केएन फनीन्द्र (अब रिटायर्ड) की पीठ ने आपराधिक मामलों के आरोपों का सामना कर रहे अवैध प्रवासियों और तयशुदा समय से अधिक समय रहने वाले विदेशियों के संबंध में फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के तहत कोर्ट, पुलिस और जेल प्रशासन के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं.
द हिंदू के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसे विदेशी नागरिक संबंधी मामलों में बरी हो जाते हैं तब भी उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा जब तक कि उन्हें भारत में रहने की इजाजत नहीं मिल जाती या फिर प्रशासन फॉरेनर्स एक्ट, 1946 की धारा 3(2) के तहत उनके आवागमन के लिए कोई आदेश जारी नहीं करता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि इन नागरिकों के बरी होने या रिहा होने के बाद भी प्रशासन को उचित ट्रिब्यूनल के सामने ऐसे लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.
अदालत ने साल 2018 में गिरफ्तार किए गए कथित तौर पर बांग्लादेश के दो अवैध प्रवासी 46 वर्षीय बाबुल खान और उनकी 20 वर्षीय बेटी तानिया को जमानत देते हुए यह आदेश पारित किया.
कोर्ट ने कहा कि अगर जमानत देने से मना किया जाता है तो विदेशी नागरिकों को ट्रायल पूरा होना तक नियमित जेल में भेजा जाएगा. इसके बाद यदि उन्हें सजा होती है तो वे इसी जेल में ही सजा पूरी करेंगे और इसके बाद उन्हें उनके देश वापस भेजने के लिए फॉरेनर्स डिटेंशन सेंटर भेजा जाएगा.
अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई महिला विदेशी नागरिक हिरासत में है और उनका छह साल या छह से कम उम्र का बच्चा है तो अदालत बच्चे को मां के साथ जाने का आदेश दे सकती है.
यदि माता-पिता में से किसी एक को गिरफ्तार किया जाता है तो बच्चे को उसके पास भेजा जाएगा जिन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है और यदि माता-पिता दोनों गिरफ्तार किए गए हैं तो अदालत बच्चे को करीबी रिश्तेदार या सरकारी आश्रय गृह को या कोई ऐसी मान्यता प्राप्त संस्था को सौंपने का आदेश दे सरकती है जहां सरकार या संबंधित अथॉरिटी किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अनुसार उसकी देखभाल करेंगे.
कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती है जहां आरोप जघन्य या असामाजिक या तीन साल से ज्यादा सजा की श्रेणी में नहीं है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजने के लिए प्रशासन मामले को वापस लेने के लिए तत्काल कदम उठा सकता है.