बीते पांच जून को नोएडा के कम से कम आठ अस्पतालों ने कोरोना संक्रमित होने के संदेह में आठ माह की एक गर्भवती महिला को भर्ती करने से इनकार कर दिया था. करीब 13 घंटे तक परिवार द्वारा कई अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद महिला ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया था.
नोएडाः उत्तर प्रदेश के नोएडा में कई अस्पतालों द्वारा एक गर्भवती महिला को भर्ती करने से मना करने के बाद एंबुलेंस में महिला की मौत के मामले की जांच कर रही टीम ने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंप दी है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, रिपोर्ट में कई सरकारी एवं निजी अस्पतालों की लापरवाही को महिला की मौत का जिम्मेदार बताते हुए कहा गया कि अस्पतालों ने बहानेबाजी कर महिला को भर्ती करने से मना कर दिया था.
रिपोर्ट में नोएडा सेक्टर-24 स्थित ईएसआईसी अस्पताल, ग्रेटर नोएडा स्थित जिम्स, सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल समेत नोएडा और गाजियाबाद निजी अस्पतालों के अधिकारियों और कर्मचारियों को दोषी माना है, जिनकी लापरवाही से गर्भवती महिला की जान गई.
इसके बाद गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन ने तीन सरकारी अस्पतालों और चार निजी अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मृतक महिला नीलम के पति बीजेंद्र द्वारा अस्पतालों पर लगाए गए आरोपों को जांच में सही पाया गया है.
महिला की मौत की जांच के लिए गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट सुहास एलवाई के आदेश पर गौतमबुद्ध नगर के चीफ मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) डॉ. दीपक ओहरी और एडीएम (वित्त) एमएन उपाध्याय की दो सदस्यीय टीम ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी.
नोएडा सेक्टर 30 के जिला अस्पताल की जिम्मेदार बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया, ‘अगर मरीज को जिला अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा सकता था तो अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों को उन्हें किसी अन्य अस्पताल में रेफर करने के लिए संपर्क करना चाहिए था.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि सेक्टर 24 के ईएसआईसी अस्पताल में पर्याप्त वेंटिलेटर थे लेकिन महिला को भर्ती नहीं किया गया और उसे ग्रेटर नोएडा के जीआईएमएस अस्पताल में रेफर किया गया.
नोएडा सेक्टर 24 का ईएसआईसी अस्पताल उन आठ अस्पतालों में से एक है, जहां पर गर्भवती महिला के परिवार ने इलाज के लिए रुख किया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन मरीज को बिना डॉक्टर और स्टाफ को सूचना दिए मरीज को सेक्टर 30 अस्पताल के बाहर छोड़ दिया गया. एंबुलेंस के ड्राइवर और ईएसआईसी अस्पताल के स्टाफ के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी.
जांच रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जब मरीज को निजी अस्पताल ले जाया गया, एक बहाना यह दिया कि अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं है. देरी की वजह से मरीज की मौत हुई. उस दौरन ड्यूटी पर मौजूद अस्पताल का स्टाफ दोषी है. प्रशासन इसके लिए दोषी अस्पतालों को नोटिस जारी करेंगे. यह भी पता चला है कि निजी अस्पताल सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी.’
मृतका के भाई शैलेंद्र का कहना है कि उन्होंने सरकारी अस्पतालों के अलावा मैक्स अस्पताल, फोर्टिस अस्पताल, शिवालिक अस्पताल और जेपी अस्पताल गए थे.
जांच में यह भी पाया गया कि गवर्मेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने भी मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया था. इन अस्पतालों में उस समय मौजूद स्टाफ के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी.
नोएडा के अधिकारियों ने कथित लापरवाही के लिए निजी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए गाजियाबाद प्रशासन को पत्र लिखा है प्रशासन ने यह भी बताया है अस्पतालों को मरीजों को भर्ती करना चाहिए और अन्य अस्पतालों से संपर्क स्थापित कर बिना देरी किए जरूरत पड़ने पर मरीजों को शिफ्ट भी करना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया कि गाजियाबाद के खोड़ा की निवासी नीलम (30) आठ महीने की गर्भवती थी लेकिन कई सरकारी और निजी अस्पतालों ने उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया, महिला का परिवार लगातार 13 घंटों तक उन्हें लेकर अलग-अलग अस्पतालों के चक्कर काटता रहा लेकिन समय पर इलाज नहीं मिलने से पांच जून को महिला की मौत हो गई.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नीलम को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और उसके पति उसे सेक्टर 24 के ईएसआई अस्पताल लेकर गए थे, वहां से महिला को ग्रेटर नोएडा के गवर्मेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (जिम्स) रेफर किया गया लेकिन एंबुलेंस इसके बजाय उन्हें सेक्टर 30 के जिला अस्पताल छोड़कर चली गई. वहां से पीड़िता अपने पति के साथ नोएडा के चार निजी अस्पताल गई लेकिन सभी अस्पतालों ने बिस्तरों की कमी का हवाला देकर उन्हें लौटा दिया. इसके बाद परिवार महिला को गाजियाबाद के वैशाली के एक निजी अस्पताल ले गया, जहां से भी अस्पताल ने उन्हें लौटा दिया. महिला को दोबारा जिम्स लाया गया, लेकिन अस्पताल में ही महिला ने दम तोड़ दिया.’
रिपोर्ट में महिला का केस देखने वाले और दूसरे अस्पताल में रेफर करने वाले डॉक्टर और एंबुलेंस के ड्राइवर को लापरवाही का दोषी बताया गया है.
गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी सुहास ने कहा, ‘इस तरह की घटनाएं पहले भी हुई हैं और ये लापरवाही की ओर इशारा करती हैं. हमने जिला अस्पताल की चीफ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट (सीएमएस) डॉ. वंदना शर्मा का तबादला करने के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखा है. सरकार से जिला अस्पताल के दोषी स्टाफ नर्स और वॉर्ड अटेंडेंट के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है.’
जिलाधिकारी ने कहा, ‘चार निजी अस्पतालों ने कहा था कि उनके पास बिस्तर उपल्बध नहीं हैं लेकिन जांच में अस्पताल के कर्मचारियों और प्रबंधन की लापरवाही का पता चला. सीएमओ से इन अस्पतालों को कारण बताओ नोटिस जारी करने, आगे की जांच के लिए तकनीकी समिति का गठन करने और इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने को कहा गया है.’
उन्होंने कहा, ‘जिम्स के निदेशक से उन डॉक्टरों और स्टाफ की पहचान करने को कहा है जिन्होंने पहले परिवार को भर्ती करने से मना कर दिया, उनके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा गया है.’
गाजियाबाद जिला मजिस्ट्रेट से भी वैशाली में दोषी अस्पताल के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा गया है.
बता दें कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को जारी किए गए नोटिस के एक दिन बाद यह कार्रवाई हुई है. आयोग ने नोएडा में दो गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में भर्ती नहीं करने और इलाज से महरूम रखने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था.