मामला जलगांव के सरकारी अस्पताल का है, जहां कोविड संक्रमित एक 82 वर्षीय महिला को एक जून को भर्ती कराया गया था और वे दो जून से लापता हो गई थीं. अन्य मरीज़ों के शौचालय में बदबू की शिकायत करने के बाद वहां महिला का शव पाया गया. घटना के बाद अस्पताल के डीन सहित पांच अधिकारियों को निलंबित करते हुए जांच के आदेश दिए गए हैं.
मुंबई: जलगांव के जिला सरकारी अस्पताल से कथित तौर पर आठ दिन से लापता एक 82 वर्षीय कोविड-19 की एक महिला मरीज उसी अस्पताल के शौचालय में बुधवार को मृत पाई गई हैं.
अधिकारियों ने बताया कि अस्पताल के कुछ मरीजों ने जब शौचालय से बदबू आने की शिकायत की तब वहां महिला का शव पाया गया जो आठ दिन से पड़ा हुआ था.
उन्होंने कहा कि महिला जिले के भुसावल उपनगर की रहने वाली मालती नेहते थीं. भुसावल में पहले उन्हें रेलवे ने एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया था. एक जून को उन्हें जलगांव के सरकारी अस्पताल ले जाया गया था और अगले दिन कोरोना वायरस की पुष्टि हुई थी.
Maharashtra: Body of an 82-year-old woman #COVID19 patient who had gone missing from Jalgaon Civil Hospital on June 2 was found dead inside a toilet of the hospital yesterday.Police says,"we got a missing complaint from hospital on June 6.We are investigating the matter further" pic.twitter.com/s8ppdRT8zA
— ANI (@ANI) June 11, 2020
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मालती कोविड पॉजिटिव थीं, लेकिन उन्हें गलती से कोरोना संदिग्ध मरीजों के वार्ड में रखा गया. उनके परिवार में नौ दिनों के अंदर कोविड-19 से यह दूसरी मौत है.
उनके पोते हर्षल नेहते (32) ने बताया कि बीते दिनों वे अपनी 60 वर्षीय मां तिला नेहते को खो चुके हैं. उन्होंने जलगांव सरकारी अस्पताल में आईसीयू के लिए छह घंटे तक इंतजार करते हुए दम तोड़ दिया था.
हर्षल पुणे में रहते हैं और उनकी पत्नी गर्भावस्था के अंतिम महीने में हैं. उनके पिता तुलसीराम का नासिक के एक निजी अस्पताल में कोविड -19 का इलाज चल रहा है, परिवार में उन्हें ही सबसे पहले कोरोना संक्रमित पाया गया था.
मालती के करीबी रिश्तेदार अनिल नेहते ने बताया कि वे उनके गायब होने के बाद से रोज पुलिस थानों और अस्पताल के चक्कर लगा रहे थे. वे पूछते हैं हैं, ‘मालती की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है? अस्पताल में स्टाफ इस पर कोई सीधा जवाब नहीं दे रहा है महज कह दे रहे हैं कि ‘वह बस चली गई थी.’
हर्षल कहते हैं, ‘मैं सोचता हूं तो कांप जाता हूं की वो कैसे चल के गई होंगी टॉयलेट तक? वो तो ठीक से चल भी नहीं पाती थीं. परिजनों का सवाल यह भी है कि पूरे आठ दिनों तक उस शौचालय, जिसमें मालती का शव पाया गया, को नहीं खोला गया या अस्पताल का कोई भी कर्मचारी उसे साफ करने के लिए भी नहीं गया.
दैनिक भास्कर के मुताबिक अस्पताल प्रशासन ने बताया है कि महिला का शव वार्ड नंबर 7 के शौचालय में पड़ा था. पोस्टमार्टम में यह बात सामने आई है कि महिला की मौत पांच दिन पहले हुई थी.
वार्ड का एक अन्य मरीज जो शौचालय में दूसरे क्यूबिकल का इस्तेमाल करने गए, तो वहां बहुत बदबू आ रही थी, जिसकी शिकायत के बाद उसका दरवाजा तोड़ा गया.
जलगांव के जिला कलेक्टर अविनाश ढाकने ने महिला की मौत की पुष्टि की है. कलेक्टर कार्यालय के अधिकारियों ने कहा, ‘यह सच है कि महिला का शव सरकारी अस्पताल के शौचालय में पाया गया. दरवाजा भीतर से बंद था.’
ढाकने ने कहा, ‘इस घटना ने कोविड-19 मरीजों के अस्पताल की व्यवस्था पर से जनता के विश्वास को ही उठा दिया. हमने दो निजी अस्पतालों में कोविड उपचार की व्यवस्था की है. सभी गंभीर मरीजों को वहां स्थानांतरित कर दिया जाएगा.
जिला रिकॉर्ड के अनुसार मालती नेहते का शव शौचालय में मिलने से पहले इस अस्पताल में तीन कोविड-19 मरीजों की मौत हो चुकी है. तीन जून को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने इस अस्पताल का दौरा किया था और अस्पताल के हालात पर प्रशासन को फटकार लगाई थी.
चिकित्सा और शिक्षा सचिव संजय मुखर्जी ने बताया कि बुधवार देर रात अस्पताल के डीन डॉ. बीएस खैरे सहित अस्पताल के पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया और मामले की विस्तृत जांच करने का आदेश दिया गया है.
वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि आइसोलेशन वार्ड में मरीजों के लिए बेडपैन की सुविधा नहीं दी गई है और नर्स और कर्मचारी मरीजों को छूने के लिए तैयार नहीं हैं.
भाजपा नेता एवं राज्य के पूर्व मंत्री गिरीश महाजन ने कहा, ‘घटना से अस्पताल की दयनीय हालत और कोविड-19 मरीजों के प्रति कर्मचारियों की लापरवाही का पता चलता है.’
उन्होंने कहा, ‘हमने जलगांव के सरकारी अस्पताल के लचर प्रबंधन का मुद्दा पिछली बैठकों में भी उठाया था लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया. महिला का शव शौचालय में सात दिन तक पड़ा रहा.’
गैर-सरकारी संगठन लोक संघर्ष मोर्चा की प्रतिभा शिंदे ने बुधवार को अस्पताल के खिलाफ लापरवाही का मामला दर्ज करवाया है. वे कहती हैं, ‘मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत है, वो खाना मांग रहे हैं. उन्हें यहां देखने वाला कोई नहीं है.
देश भर में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में इस तरह की लापरवाही का कोई पहला मामला नहीं है. देश के विभिन्न हिस्सों से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं.
हाल ही में मुंबई के राजावाड़ी अस्पताल से 27 साल के एक कोरोना मरीज का शव गायब हो गया था. उस अस्पताल का संचालन बीएमसी करता है. अस्पताल को शक़ था कि ग़लती से शव किसी और को सौंप दिया गया.
इससे पहले दिल्ली के एक व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि उसके कोरोना संक्रमित पिता एलएनजेपी अस्पताल से लापता हैं और किसी भी वार्ड में नहीं मिल रहे हैं. अस्पताल प्रशासन को भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
दिल्ली के इसी अस्पताल में एक कोरोना संक्रमित मरीज के शव को गलती से एक दूसरे परिवार को सौंपने का मामला भी सामने आया था. कलामुद्दीन नाम के शख्स ने एक गलत शव को अपना पिता समझकर उसे दफना दिया लेकिन उन्हें बाद में पता चला कि ये उनके पिता का शव नहीं था. उन्होंने बाद में अपने पिता का शव दफनाया. जिसे उन्हें दफनाया वे एजाजुद्दीन नाम के शख्स के भाई थे और कोरोना संक्रमित थे.
बताया गया था कि अस्पताल की मोर्चरी में मोइनुद्दीन नाम के दो लोगों के शव थे जिसके चलते शवों की शिनाख्त में गलती हुई.
इससे पहले गुजरात के अहमदाबाद सिविल अस्पताल से भी इसी तरह का एक मामला सामने आया था, जहां एक परिवार के कोरोना संक्रमित एक बुजुर्ग सदस्य की मौत होने की बात कहकर अस्पताल प्रशासन की ओर से उन्हें एक शव सौंपा गया था, जिसका अंतिम संस्कार परिवार ने कर दिया. बाद में अस्पताल प्रशासन की ओर से उनसे कहा गया कि इस सदस्य की हालत स्थिर है.
अहमदाबाद सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ने वाले कई मरीजों के रिश्तेदारों ने आरोप लगाया था कि डॉक्टरों और नर्सों की लापरवाही और उदासीनता की वजह से उनके परिजन की जान गई.
एक व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि डॉक्टरों ने उसकी 81 वर्षीय दादी को जिंदा रखने के लिए उनसे पाइप को हाथ से दबाकर हवा भरते रहने को कहा था. 27 मई को ऐसा करने के कुछ देर बाद ही बुजुर्ग की मौत हो गई.
वहीं, 15 मई को अहमदाबाद स्थित दानीलिमडा इलाके में एक कोविड-19 मरीज का शव लावारिस हालत में एक बस अड्डे पर मिला था. मृतक के परिजनों ने इस घटना के लिए अस्पताल और पुलिस को जिम्मेदार ठहराया था. मध्य प्रदेश के इंदौर से एक मामला सामने आया, जिसमें कोरोना से एक मरीज की मौत की जानकारी 16 दिनों की देरी से दी गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)