ग़ैर-सरकारी संगठनों के गठबंधन ने लॉकडाउन में श्रम क़ानूनों में ढील देने से महिला श्रमिकों पर दुष्प्रभाव पड़ने की भी आशंका जताई है और सरकार से विधेयक की समीक्षा करने की अपील की है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि लाखों बच्चों को बाल श्रम में धकेले जाने की आशंका है. ऐसा होता है तो 20 साल में पहली बार बाल श्रमिकों की संख्या में इज़ाफ़ा होगा.
नई दिल्ली: गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के गठबंधन ने लॉकडाउन के बाद श्रम कानूनों में ढील देने से महिला श्रमिकों पर दुष्प्रभाव पड़ने और श्रमबल में बाल मजदूरों की शामिल होने की आशंका जताई है और सरकार से विधेयक की समीक्षा करने की अपील की है.
गठबंधन- वर्किंग ग्रुप ऑन वुमेन इन वैल्यू चैन्स (डब्ल्यूआईवीसी) ने रेखांकित किया है कि कैसे आर्थिक विकास की गति बढ़ाने के लिए विभिन्न स्तर पर दी गई ढील से श्रम कानून कमजोर पड़ सकता है.
डब्ल्यूआईवीसी में सेव द चिल्ड्रेन, सेवा भारत, केयर इंडिया, इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर, सोसाइटी फॉर लेबर एंड डेवलपमेंट, ऑक्सफैम इंडिया, चेंज अलायंस आदि शामिल हैं.
गठबंधन ने एक बयान में कहा, ‘काम करने के घंटे को नौ से 10 या 12 करने, कामगारों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा जैसे श्रमिक कल्याण नियमों को शिथिल करने, कुछ स्थानों पर उद्योगों के निरीक्षण करने की प्रणाली स्थगित करने जैसे उपायों से महिला श्रमिकों पर नकरात्मक असर होगा और बच्चे प्रभावित होंगे.’
गठबंधन ने कहा, ‘निगरानी प्रणाली की व्यवस्था में ढील देने से उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी और कर्मचारियों से दुर्व्यवहार बढ़ेगा. इससे बच्चे श्रमबल में शामिल होंगे.’
बयान के मुताबिक, प्रवासी श्रमिक शहरी अर्थव्यवस्था के प्रमुख संचालक हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वे अपने गांवों को जाने को मजबूर हुए, क्योंकि रोजगार और आय की असुरक्षा से उन पर शोषण और गरीबी का खतरा बढ़ गया था.
गठबंधन ने कहा, ‘काम के घंटे बढ़ाने से अभिभावकों द्वारा बच्चों की देखरेख पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि वे उनकी देखभाल और शिक्षा पर कम समय दे पाएंगे. श्रमिकों की कल्याणकारी योजनाओं के कम होने का भी नकारात्मक असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ेगा.’
डब्ल्यूआईवीसी ने सरकार से अपील की कि वह श्रम कानून के प्रासंगिक प्रावधानों को कायम रखे और संगठित एवं गैर संगठित क्षेत्र के कामगारों की बेहतरी सुनिश्चित करे. वह यह सुनिश्चित करे कि राज्य और उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त श्रम मानकों का अनुपालन करें और कामगारों की सुरक्षा और संरक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क में रहे.
कोविड-19 के कारण लाखों और बच्चे बाल श्रम की ओर धकेले जा सकते हैं: संयुक्त राष्ट्र
भारत, ब्राजील और मैक्सिको जैसे देशों में कोविड-19 महामारी के कारण लाखों और बच्चे बाल श्रम की ओर धकेले जा सकते हैं. यह दावा संयुक्त राष्ट्र ने एक नई रिपोर्ट में किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘कोविड-19 तथा बाल श्रम: संकट का समय, काम करने का वक्त’ शुक्रवार को जारी हुई. इसके मुताबिक वर्ष 2000 से बाल श्रमिकों की संख्या 9.4 करोड़ तक कम हो गई, लेकिन अब यह सफलता जोखिम में है.
एजेंसियों ने कहा, ‘कोविड-19 संकट के कारण लाखों बच्चों को बाल श्रम में धकेले जाने की आशंका है.cऐसा होता है तो 20 साल में पहली बार बाल श्रमिकों की संख्या में इज़ाफ़ा होगा.’
विश्व बाल श्रम निरोधक दिवस के मौके पर 12 जून को जारी रिपोर्ट में कहा गया कि जो बच्चे पहले से बाल श्रमिक हैं उन्हें और लंबे वक्त तक या और अधिक खराब परिस्थतियों में काम करना पड़ सकता है और उनमें से कई तो ऐसी परिस्थितियों से गुजर सकते हैं, जिससे उनकी सेहत और सुरक्षा को बड़ा खतरा होगा.
रिपोर्ट में कहा गया कि जब परिवारों को और अधिक वित्तीय सहायता की जरूरत होती है तो वे बच्चों की मदद लेते हैं.
इसमें कहा गया, ‘ब्राजील में माता-पिता का रोजगार छिनने पर बच्चों को अस्थायी तौर पर मदद देने के लिए आगे आना पड़ा. ग्वाटेमाला, भारत, मैक्सिको तथा तंजानिया में भी ऐसा देखने को मिला.’
इस रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कारण गरीबी में वृद्धि हो सकती है जिससे परिवार बाल मजदूरी की दिशा में जाने को मजबूर होंगे क्योंकि कोई भी परिवार जीवित रहने के लिए हर उपलब्ध साधन का उपयोग करना चाहेगा.
कुछ अध्ययनों के मुताबिक अनेक देशों में गरीबी में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी से बाल श्रम में कम से कम 0.7 प्रतिशत की वृद्धि होती है.
इसमें कहा गया कि वैश्विक महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने से भी बाल श्रम बढ़ा है. एजेंसियों ने कहा कि स्कूलों के अस्थायी तौर पर बंद होने से 130 से अधिक देशों में एक अरब से अधिक बच्चे प्रभावित हो रहे हैं.
इसमें कहा गया, ‘जब कक्षाएं शुरू होंगी तब भी शायद कुछ अभिभावक खर्च उठाने में सक्षम नहीं होने के कारण बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाएंगे.’
रिपोर्ट के अनुसार, इसका परिणाम यह होगा कि और ज्यादा बच्चे अधिक मेहनत तथा शोषण वाले काम करने को मजबूर होंगे. लैंगिक असमानताएं और ज्यादा गहरी हो सकती हैं, विशेष रूप से कृषि और घरेलू कार्यों में लड़कियों का शोषण और बढ़ जाएगा.
आईएलओ महानिदेशक गाय राइडर ने कहा, ‘जब महामारी का प्रकोप परिवार की आय पर पड़ेगा तो कई लोग बाल श्रम अपना सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘संकट के समय सामाजिक सुरक्षा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सबसे अधिक कमजोर लोगों को मदद मिलती है.’
रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के संकट से गरीबी बढ़ सकती है ओर बाल श्रम भी बढ़ सकता है.
यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने कहा, ‘बाल श्रम अनेक परिवारों के लिए संकट का मुकाबला करने का साधन बन जाता है. जैसे-जैसे गरीबी बढ़ती है, स्कूल बंद होते हैं और सामाजिक सेवाओं की उपलब्धता कम होती जाती है, तब अधिक बच्चों को मजदूरी में लगा दिया जाता है.’
उन्होंने कमजोर समुदायों पर आर्थिक मंदी, अनौपचारिक क्षेत्र में बेरोजगारी, जीवन स्तर में गिरावट, स्वास्थ्य असुरक्षा और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों जैसे दबावों से पीड़ित होने की आशंका जताई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)