जीटीबी अस्पताल कोविड-19 के लिए अधिकृत अस्पताल है, जहां भर्ती कोरोना संक्रमितों के परिजनों का कहना है कि स्टाफ बमुश्किल ही मरीज़ों के वॉर्ड में जाता है. खाने-पीने से लेकर शौचालय जाने तक में मदद के लिए मरीज़ अपने परिवार पर निर्भर है.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली का जीटीबी अस्पताल कोरोना इलाज के लिए अधिकृत अस्पताल है, लेकिन यहां भर्ती मरीजों के परिवार वालों का आरोप है कि अस्पताल का स्टाफ जरूरत के समय मरीजों की मदद नहीं करता. ऐसी स्थिति में संक्रमण के जोखिम के बीच परिवार के सदस्य ही मदद को आगे आते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आरोप है कि परिवार के सदस्य ही आइसोलेटेड वॉर्ड में मरीज को खाने-पीने और शौचालय लाने-ले जाने में मदद करते हैं.
इन्हीं में से एक शख्स हैं विपिन श्रीवास्तव, जिन्होंने अख़बार को बताया कि उनकी बहन अस्पताल में अपने पति की इसी तरह मदद कर रही है जबकि अस्पताल प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है.
विपिन कहते हैं कि उनकी बहन दिन भर यहीं रहती हैं, केवल रात में घर जाती हैं. उनके पति को सात दिन पहले ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
वह कहते हैं, ‘अस्पताल में भर्ती मरीजों को समय पर भोजन और पानी नहीं दिया जा रहा. उन्हें शौचालय जाने में भी मदद नहीं की जा रही. वे सिर्फ हमारी ही मदद पर निर्भर रह सकते हैं.’
अख़बार के अनुसार, इसी तरह के पांच और परिवारों के सदस्य अस्पताल परिसर के छोटे से पार्क में मौजूद हैं जो लगातार संबंधित मरीज की मदद कर रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि वे सुरक्षा के नाम पर सिर्फ मास्क के साथ ही वॉर्ड में जाते हैं.
वहां मौजूद एक शख्स ने बताया कि उनकी मां की तबियत बहुत खराब है और वह फिलहाल आईसीयू में हैं.
उन्होंने बताया, ‘मैं कह सकता हूं कि उन्हें वहां तो कम से कम कुछ इलाज मिल रहा है. वह जब वॉर्ड में थीं, तो उन्हें भी अन्य सभी मरीजों की तरह नजरअंदाज किया गया. मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए वॉर्ड जाना पड़ता था कि वह ठीक हैं कि नहीं. अस्पताल का स्टाफ बमुश्किल ही मरीजों को देखने वॉर्ड में जाता है. हम (परिवार) ही उनकी देखभाल करते हैं.’
अख़बार के मुताबिक, अस्पताल में किसी को कोविड-19 वॉर्ड में अंदर जाने से रोकने में लिए कुछ ही गार्ड हैं, जो शायद ही किसी को रोकते हैं. ग्राउंड फ्लोर पर इमरजेंसी वॉर्ड के पास दुर्घटना और कैजुअल्टी वॉर्ड में मरीज अंदर-बाहर आते-जाते दिखते हैं, कई बार स्ट्रेचर के साथ परिवार के सदस्य भी होते हैं.
हालांकि जीटीबी के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुनील कुमार ने वॉर्ड में मरीजों की मदद के लिए परिवार के सदस्यों के वॉर्ड में जाने की बात से इनकार करते हुए कहा, ‘यहां कड़ी सुरक्षा है. मरीजों को छोड़कर कोई भी अंदर नहीं जा सकता.’
ड्यूटी पर तैनात मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने नाम बताने से इनकार करते हुए कहा, ‘हम वॉर्ड में किसी भी रिश्तेदार को आने की मंजूरी नहीं देते, मेरी निगरानी में तो ऐसा हर्गिज नहीं होता. नर्सिंग स्टाफ मरीजों की जरूरतों का ध्यान रखता है.’
संक्रमित होने के खतरे को लेकर इन परिवार के सदस्यों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन ने उनकी कोरोना जांच करने के आग्रह को ठुकरा दिया है.
विकास सिंह के भाई को आठ दिन पहले ही इस अस्पताल में भर्ती किया गया है. विकास का कहना है, ‘हम घर पर पांच लोग हैं लेकिन किसी भी का भी कोरोना टेस्ट नहीं हुआ. अस्पताल हमसे निजी क्लीनिक में टेस्ट कराने को कह रहा है. हमारा घर भी सैनिटाइज नहीं हुआ है.’
सिंह ने कहा कि मरीजों के इलाज और उनकी सेहत को लेकर उनके परिवार के साथ अस्पताल का किसी तरह का कोई संपर्क नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हम खुद ही अस्पताल जाकर उनकी खोज-खबर ले लेते हैं.’
सुधीर सिंह का बताते हैं कि अस्पताल ने उनके 61 साल के पिता के बारे में कोई अपडेट नहीं दिया. उन्हें बीते रविवार की रात को उन्हें भर्ती कराया था और शुक्रवार दोपहर उनकी मौत हो गई थी.
सुधीर ने कहा, ‘उन्हें दो दिनों से बुखार था, जिसके बाद हम उन्हे निजी क्लीनिक में ले गए. क्लीनिक ने उन्हें ये कहकर लौटा दिया कि उनकी जांच की जरूरत है. हम रविवार शाम को जीटीबी पहुंचे और उन्हें कोरोना संदिग्ध केस के तहत भर्ती किया गया. इसके बाद अस्पताल ने मुझे किसी तरह की जानकारी नहीं दी.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे यह भी नहीं पता कि क्या उनका कोरोना टेस्ट हुआ था या नहीं. मैंने अपने पिता से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन सांस लेने में दिक्कत की वजह से वह सही तरह से बात नहीं कर पा रहे थे.’
दिल्ली में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामलों के बाद यह वो पहला अस्पताल था, जिसे केवल कोविड मरीजों के इलाज के लिए चिह्नित किया गया था. दिल्ली सरकार की वेबसाइट के अनुसार शुक्रवार शाम तक यहां 228 मरीज भर्ती थे.
दिल्ली में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और पहली बार शुक्रवार को दो हजार से ज्यादा मामले सामने आए, यहां अब तक कोरोना संक्रमण के 36,824 मामले सामने आए हैं और 1,214 लोगों की मौत हो चुकी है.