एक अफ्रीकी नागरिक के लिए ‘नीग्रो’ शब्द का इस्तेमाल करने पर पंजाब पुलिस को फटकार लगाते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिसकर्मियों को इन मुद्दों पर संवेदनशील बनाया जाना चाहिए और आगाह किया जाना चाहिए, ताकि किसी व्यक्ति को उसके रंग के आधार पर हवालात में न डाला जाए.
चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस दस्तावेजों में एक अफ्रीकी नागरिक के लिए नस्लीय शब्द का इस्तेमाल करने पर पंजाब पुलिस को फटकार लगाई और कहा है कि भारत के लिए यह शर्मिंदगी की बात है.
अदालत ने कहा कि पुलिस की यह सोच ही भयावह है कि हर काला व्यक्ति मादक पदार्थ तस्कर है. अदालत ने कहा कि उस महाद्वीप के नागरिकों को भी सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए.
जस्टिस राजीव नारायण रैना की एकल पीठ ने पंजाब के पुलिस महानिदेशक से इस संबंध में निर्देश जारी करने को कहा ताकि काले लोगों का जिक्र करते हुए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाए.
जस्टिस रैना ने कहा कि वह मादक पदार्थों से जुड़े एनडीपीएस कानून के तहत एक मामले में निचली अदालत के समक्ष अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत प्रस्तुत चालान पत्रों में एक अफ्रीकी नागरिक के लिए ‘नीग्रो’ शब्द को देखकर अचंभित हैं.
उन्होंने 12 जून के अपने आदेश में कहा, ‘दुनियाभर में यह अत्यंत अपमानजनक शब्द है और किसी को इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इसलिए निर्देश दिया जाता है कि चालान समेत किसी भी पुलिस दस्तावेज में या जांच रिपोर्ट समेत केस डायरी में कहीं भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाए जिन्हें प्रकाशित नहीं किया जा सकता.’
अदालत ने व्यवस्था दी कि अफ्रीकी मूल के लोगों को मामले उनके मूल देश के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए.
अदालत ने निर्देश दिया कि पुलिसकर्मियों को इन मुद्दों पर संवेदनशील बनाया जाना चाहिए और आगाह किया जाना चाहिए, ताकि किसी व्यक्ति को उसके रंग के आधार पर हवालात में नहीं डाला जाए.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मामले में आरोपी की तरफ से पेश वकील साहिल पुरी ने कहा, ‘पुलिस ने चालान/आरोपपत्र और अन्य आधाकारिक दस्तावेजों में ‘नीग्रो’ शब्द का इस्तेमाल किया था. अपने बयान में एक आरोपी ने कहा है कि उसने दिल्ली में एक ‘नीग्रो’ से हेरोइन खरीदी है.’
जस्टिस रैना ने कहा, ‘यह भारत के लिए शर्मिंदगी की बात है और इससे देश के लिए नफरत पैदा होती है. ऐसा लगता है कि पुलिस ने मान लिया है कि हर काला व्यक्ति मादक पदार्थ का तस्कर है और उससे ऐसा ही बर्ताव होना चाहिए. यह भयावह सोच है.’
आदेश में कहा गया है, ‘वे अफ्रीका से भारत में आंगतुक या छात्रों के रूप में आने पर एक विदेशी धरती पर सम्मान के हकदार हैं जहां वे अस्थायी रूप से रह रहे हैं. यह श्वेत से लेकर काले, हर रंग के अनेक लोगों के लिए अपने आप में गर्व की बात है.’
पीठ ने कहा, ‘सारे अफ्रीकी हमारे दोस्त हैं और जब वे आंगतुक या छात्र के रूप में भारत आते हैं तो हमारे मूल्यवान मेहमान हैं और हमें याद रखना चाहिए कि भारत की मेहमान नवाजी और अतिथि सत्कार की समृद्ध परंपरा है और हमें इस पर गर्व होता है.’
जस्टिस रैना ने आगे कहा कि दो दशक तक दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए महात्मा गांधी की राजनीतिक सोच विकसित हुई और उन्होंने रंगभेदी आंदोलन की अगुवाई की तथा वर्ण के आधार पर भेदभाव के खिलाफ एवं काले कानूनों के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए लड़े.
अदालत ने कहा, ‘हमें इस प्रेरक सिद्धांत का पालन करना चाहिए और एक दूसरे को तथा अन्य लोगों को उचित सम्मान देना चाहिए.’
अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 18 जून की तारीख तय की.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)