भीमा-कोरेगांव मामले से जुड़े नौ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को स्पाइवेयर से निशाना बनाया गया: रिपोर्ट

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भीमा गोरेगांव मामले में गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए काम करने वाले नौ लोगों को स्पाइवेयर का निशाना बनाया गया था. उन्होंने मांग की है कि इसकी स्वतंत्र जांच हो और पता लगाया जाए कि क्या इन स्पाइवेयर अभियानों और किसी ख़ास सरकारी एजेंसी के बीच कोई संबंध है.

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शालिनी गेरा, डिग्री प्रसाद चौहान, पार्था सरोथी राय और निहाल सिंह राठौड़.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भीमा गोरेगांव मामले में गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए काम करने वाले नौ लोगों को स्पाइवेयर का निशाना बनाया गया था. उन्होंने मांग की है कि इसकी स्वतंत्र जांच हो और पता लगाया जाए कि क्या इन स्पाइवेयर अभियानों और किसी ख़ास सरकारी एजेंसी के बीच कोई संबंध है.

शालिनी गेरा, डिग्री प्रसाद चौहान, पार्था सरोथी राय और निहाल सिंह राठौड़.
शालिनी गेरा, डिग्री प्रसाद चौहान, पार्थसारथी राय और निहाल सिंह राठौड़.

नई दिल्लीः भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई के लिए काम करने वाले नौ लोगों को साल 2019 में दुर्भावनापूर्ण ईमेल के साथ एक स्पाइवेयर का निशाना बनाया गया था.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निगरानी रखने वाली सिटिजन लैब और एमनेस्टी इंटरनेशनल की साझा एक रिपोर्ट में यह जानकारी मिली है.

इनमें जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद और पत्रकार शामिल हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, इन नौ में से तीन को पिछले साल उनके वॉट्सऐप एप्लिकेशन के जरिये पेगासस सॉफ्टवेयर ने भी निशाना बनाया था. ईमेल में ऐसे लिंक होते हैं, जिन्हें खोले जाने पर नेटवायर नामक एक स्पाइवेयर सिस्टम या डिवाइस में आ जाता है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘कुछ लोगों को कई बार निशाना बनाया गया जो दिखाता है कि भीमा-कोरेगांव मामले में शामिल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को चिंतनीय तरीके से स्पाइवेयर हमलों से परेशान करने वाला पैटर्न है.’

जांच में पाया गया कि जनवरी से अक्टूबर 2019 के बीच ऐसे गलत उद्देश्य से 12 व्यक्तिगत ईमेल भेजे गए, जो उनके कंप्यूटर या मोबाइल पर स्पाइवेयर से जोड़ देते हैं.

इस मामले में ईमेल में पीडीएफ दस्तावेज की तरह दिखने वाली सामग्री भेजी गई थी जो कि वास्तव में ऐसे दुर्भावनापूर्ण विंडोज प्रोग्राम थे जो डिवाइस पर नेटवायर इंस्टॉल कर देते. नेटवायर हमलावर को डिवाइस पर होने वाले काम और उससे किए जाने वाले संपर्क की निगरानी करने का अधिकार दे देते.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘गलत इरादे से भेजे गए ईमेल और स्पाइवेयर बताते हैं कि यह साइबर-क्राइम हमला नहीं है, बल्कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उपकरणों से समझौता करने के लिए स्पाइवेयर अभियान है.’

रिपोर्ट में इन हमलों की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच की मांग की गई है. इसके साथ ही पता लगाने की भी मांग की गई है कि क्या इन स्पाइवेयर अभियानों और किसी खास सरकारी एजेंसी के बीच कोई संबंध है.

नेटवायर नामक स्पायवेयर 15 डॉलर प्रति महीने के हिसाब से ऑनलाइन उपलब्ध है. इसे साल 2012 में वर्ल्ड वायर्ड लैब्स नामक कंपनी ने विकसित किया था.

ईमेल के माध्यम से निहाल सिंह राठौड़, डिग्री प्रसाद चौहान, युग मोहित चौधरी, रागिनी आहूजा, पार्थसारथी, पीके विजयन, एक अनाम पत्रकार, ईशा खंडेलवाल और जगदलपुर कानूनी सहायता समूह को निशाना बनाया गया.

बता दें कि इस स्पाइवेयर अभियान का सबसे पहले खुलासा द वायर  ने दिसंबर 2019 की अपनी एक रिपोर्ट में किया था.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘इनमें से तीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को साल 2019 के शुरुआत में एनएसओ समूह के पेगासस स्पाइवेयर द्वारा निशाना बनाया गया था. पेगासस स्पाइवेयर एक ऐसा वाणिज्यिक उत्पाद है जिसे सिर्फ सरकारी एजेंसियों को बेचा जाता है.’

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