मणिपुर में भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल नेशनल पीपुल्स पार्टी के नेता और उपमुख्यमंत्री वाई. जॉयकुमार सिंह समेत चार मंत्रियों के इस्तीफ़े बाद सरकार संकट में आ गई है. जॉयकुमार का कहना है कि भाजपा अपने ही सहयोगियों पर हमला करती रहती है, हम ऐसे व्यवहार को कैसे स्वीकार कर सकते हैं.
इम्फाल: मणिपुर के उपमुख्यमंत्री वाई. जॉयकुमार सिंह समेत नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के चार मंत्रियों ने बुधवार को प्रदेश की भाजपा नीत सरकार से इस्तीफा दे दिया.
सिंह के अलावा जनजातीय और पर्वतीय क्षेत्र विकास मंत्री एन काइशी, युवा मामले एवं खेल मंत्री लेतपाओ हाओकिप और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री एल. जयंत कुमार सिंह ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को अपना इस्तीफा सौंपा.
जॉयकुमार सिंह ने संवाददाताओं से कहा, ‘हमने मुख्यमंत्री को अपने इस्तीफे सौंप दिए हैं.’ इस्तीफा देने वाले बाकी विधायकों में तीन भाजपा के, एक ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के और एक निर्दलीय विधायक हैं.
इन भाजपा विधायकों ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली है और एनपीपी नेताओं ने भी कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही है.
Manipur: S Subhashchandra Singh, TT Haokip & Samuel Jendai resigned as BJP MLAs & joined Congress today in Imphal. https://t.co/nhzIgLhach pic.twitter.com/47DkPWVvgt
— ANI (@ANI) June 17, 2020
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओकराम इबोबी सिंह राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर एन. बीरेन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का आग्रह करेंगे.
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ कुल ताकत अब 28 है, जिसमें 20 कांग्रेस से, 4 एनपीपी, 2 भाजपा से (जिन्होंने दिन में पार्टी छोड़ी), एक एआईटीसी और एक स्वतंत्र सदस्य है.
सुभासचंद्र, जो भाजपा के तीन विधायकों में से एक हैं, ने बुधवार को मणिपुर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.
सात कांग्रेसी विधायक, जो पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, को स्पीकर ट्रिब्यूनल और मणिपुर के उच्च न्यायालय में भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दलबदल-विरोधी मामलों का सामना करना पड़ रहा है.
भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल एक कांग्रेस विधायक को हाल ही में मणिपुर विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जिससे विधानसभा में 59 सदस्य रह गए.
2017 में मणिपुर में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 21 सीटें जीती थीं और 28 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी.
हालांकि इसके फौरन बाद ही एक कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल हो गए. फिर भाजपा को एक टीएमसी विधायक के साथ चार एनपीपी और नगालैंड में भाजपा की सहयोगी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के चार विधायकों का साथ मिला, जिसके बाद उत्तर-पूर्व के किसी राज्य में पहली बार भाजपा की सरकार बनी.
बुधवार को तीन भाजपा और एनपीपी विधायकों के साथ, टीएमसी और जिरीबाम से एक निर्दलीय विधायक ने अपना समर्थन वापस लिया है.
एंड्रो विधानसभा क्षेत्र के विधायक श्यामकुमार सिंह, जो कांग्रेस से भाजपा में गए थे, के अयोग्य घोषित होने के बाद मणिपुर विधानसभा में इस समय 59 विधायक हैं.
एन. बीरेन सरकार के लिए मुश्किलें मार्च से ही शुरू हो गई थीं, जब पार्टी के अंदर से ही उन्हें पद से हटाए जाने के प्रयास किए जाने लगे थे. इसका समाधान केंद्र के भाजपा नेताओं के हस्तक्षेप के बाद ही हो सका था.
इसके बाद 9 अप्रैल को मुख्यमंत्री द्वारा उपमुख्यमंत्री जॉयकुमार सिंह से उनके सभी प्रभार वापस ले लिए गए. आरोप था कि उन्होंने कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए हुए लॉकडाउन के दौरान मुख्यमंत्री एन. बीरेन के राज्य में खाद्य सामग्री की सप्लाई को लेकर दिए आश्वासन को ‘झूठा’ बताया था.
अब जॉयकुमार सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘मुख्यमंत्री ने सभी को पांच किलो चावल देने का वादा किया था और कहा था कि लॉकडाउन में कोई कमी नहीं होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मैंने यही बात उठाई… लेकिन कुछ ही दिन बाद उन्होंने मुझसे सारे प्रभार ले लिए. भाजपा नेताओं ने हमें सरकार से इस्तीफ़ा देने को कहा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अभी कुछ समय पहले बीरेन ने हमें कहा कि राज्यसभा चुनाव के बाद एनपीपी के सभी मंत्रियों को कैबिनेट से हटा दिया जायेगा. भाजपा अपने ही सहयोगियों पर हमला करती रहती है. हम ऐसे व्यवहार को कैसे स्वीकार कर सकते हैं.’
संयोग से जॉयकुमार कांग्रेस के ओकराम इबोबी सिंह के कार्यकाल के समय मणिपुर पुलिस के डायरेक्टर जनरल रहे हैं और उनके करीबी माने जाते हैं.
वहीं, अब इबोबी सिंह का दावा है कि कांग्रेस के पास 30 विधायकों का समर्थन है, जिसमें 20 खुद उनके हैं. चुनाव के बाद दल-बदलने वाले कांग्रेस के एक विधायक के अलावा सात ऐसे विधायक भी थे, जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए एन. बीरेन को समर्थन दिया था.
इबोबी सिंह ने इस अखबार से बात करते हुए कहा, ‘विधानसभा में आधिकारिक तौर पर तो वे कांग्रेस के विधायक हैं. मामला अदालत में है- या तो वे अयोग्य साबित होंगे या वे कांग्रेस के विधायक हैं. दोनों ही मामलों में वे भाजपा के विधायक तो नहीं ही कहलाएंगे.’
उन्होंने आगे कहा कि नए विधायकों के समर्थन के बाद कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश करेगी.
इबोबी सिंह का कहना है, ‘सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने में कोई समस्या नहीं है क्योंकि हमने अपने कार्यकाल में 100 सीट वाली विधानसभा बनवाई थी, और अब (विधानसभा में निषिद्ध सात विधायकों को छोड़कर) 52 विधायक हैं, जो असल में वोट कर सकते हैं. अगर भाजपा को अपनी विधायक संख्या को लेकर यकीन है, तब भी हमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन उन्हें यह साबित करने दीजिए.’
उधर तीन विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद भाजपा के पास अब 19 विधायक हैं. साथ ही उन्हें एक लोजपा और चार एनपीएफ विधायकों का समर्थन प्राप्त है.
संपर्क किए जाने पर एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने इस अख़बार से कहा, ‘जहां तक संख्या की बात है, तो कुछ मुश्किल जरूर है लेकिन हमें नहीं लगता कि कोई खतरा है.’
बता दें कि इस बीच मणिपुर में 19 जून को एक राज्यसभा सीट के लिए चुनाव होगा. दोनों भाजपा और कांग्रेस ने उच्च सदन की अकेली सीट के लिए उम्मीदवार खड़े किए हैं.
भाजपा ने मणिपुर के तीतर राजा लिसेम्बा संजाओबा को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार टी. मंगू बाबू हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)