क्या केंद्र दार्जिलिंग में अशांति ख़त्म करने की ज़रूरत नहीं समझता: उच्च न्यायालय

पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के बीच कलह को लेकर नाखुशी ज़ाहिर करते हुए पीठ ने कहा, हालात तभी सुधर सकते हैं जब दोनों पक्ष साथ बैठें और मतभेद सुलझाएं.

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पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के बीच कलह को लेकर नाखुशी ज़ाहिर करते हुए पीठ ने कहा, हालात तभी सुधर सकते हैं जब दोनों पक्ष साथ बैठें और मतभेद सुलझाएं.

Gorkhalamd PTI
(फोटो: पीटीआई)

कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बीते शुक्रवार को सवाल किया कि क्या केंद्र सरकार ऐसा नहीं सोचती कि पृथक गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में चल रहे आंदोलन को इस इलाके की रणनीतिक स्थिति को देखते हुए जल्द शांत किए जाने की ज़रूरत है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति निशिता म्हात्रे ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा, भूराजनीतिक क्षेत्र को देखते हुए क्या केंद्र सरकार यह नहीं सोचती है कि इस आंदोलन को तत्काल शांत किए जाने की ज़रूरत है.

अदालत ने यह सवाल उस वक्त किया है जब भूटान के डोकलाम में भारत और चीन की सेना आमने-सामने हैं. यह स्थान दार्जिलिंग से बहुत दूर नहीं है.

न्यायमूर्ति म्हात्रे और न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के अधिकारियों को निर्देश दिया कि गृह मंत्रालय के साथ बैठकर ज़मीनी हकीकत के हिसाब से अर्धसैनिक बलों की ज़रूरत के बारे में निर्णय करे.

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केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की ज़रूरत को लेकर राज्य और केंद्र के बीच कलह को लेकर नाखुशी ज़ाहिर करते हुए पीठ ने कहा, हालात तभी सुधर सकते हैं जब दोनों साथ बैठें और मतभेदों को सुलझाएं.

अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से कहा कि वे 11 जुलाई से पहले सीएपीएफ की ज़रूरत को लेकर सहमति बना लें. मामले की अगली सुनवाई को 11 जुलाई को होगी.

बता दें कि अलग राज्य की मांग को लेकर दार्जिलिंग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की ओर से की जा रही अनिश्चितकालीन हड़ताल को तकरीबन तीन हफ्ते हो चुके हैं.

हड़ताल के चलते इलाके में खाने पीने के सामनों की आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित हुई है. दवा की दुकानों को छोड़कर बाकी दुकानें, स्कूल, कॉलेज बंद रहे और इंटरनेट सेवाएं 21वें दिन भी बाधित रही.

सिक्किम ने पश्चिम बंगाल सरकार के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाने का मन बनाया

इधर, गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जिलिंग में हो रही हड़ताल की वजह से पड़ोसी राज्य सिक्किम भी प्रभावित हो रहा है. सिक्किम सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार पर नुकसान के लिए मुक़दमा करने की रणनीति बना रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट सिक्किम के सरकारी प्रतिनिधियों की ओर से दावा किया गया है कि दार्जिलिंग में विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद से पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस जान बूझ कर सिक्किम में आने वाले सामानों की आपूर्ति रोक रही है. इसका प्रमुख कारण सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग का गोरखालैंड आंदोलन को समर्थन देना है.

सिक्किम से एकमात्र सांसद पीडी राय का कहना है, हम इस मामले पर अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में जाने का विचार कर रहे हैं. सिक्किम आने वाली खाद्यान्न आपूर्ति और अन्य सभी आवश्यक वस्तुओं को बंद कर दिया गया है. सिलीगुड़ी में हमारे कई ट्रकों को सिविल कपड़े में मौजूद पुलिस ने रोक दिया गया है, ऐसा हमारी पुलिस ने देखा है. ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि हम एक विशेष मांग के लिए सालों से खड़े हैं.

दरअसल उत्तर बंगाल के सिलिगुड़ी को गंगटोक से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 10 एकमात्र हाइवे है जो सिक्किम को पूरे देश से जोड़ता है. एनएच 10 दार्जिलिंग और कैलिमपोंग से होकर गुज़रता है. दार्जिलिंग में अनिश्चिकालीन बंद के चलते यह हाईवे पिछले 15 जून से बंद है.

रिपोर्ट में राय ने दावा किया है कि पिछले 30 वर्षों में ऐसे अवरोधों के चलते सिक्किम को 60,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. वे कहते हैं, हम चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार इस घाटे की पूर्ति करे. इतना ही नहीं उन्होंने कहा यह भी कहा कि पिछले 20 दिनों में सिक्किम को 200 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो चुका है.

इससे पहले सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग ने एक बयान में कहा कि हम पश्चिम बंगाल और चीन के बीच सैंडविच बनने के लिए भारत में शामिल नहीं हुए हैं. उन्होंने कहा था, ‘एनएच 10 सिक्किम की जीवनरेखा है और यह राज्य का कमजोर बिंदु भी है. पिछले 30 सालों में गोरखालैंड आंदोलन के कारण एनएच 10 कई बार बंद हो चुका है. जिससे राज्य को काफी नुकसान हुआ है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)