बलात्कार के आरोपी को ज़मानत देते हुए कोर्ट ने कहा, महिला ने ऐसे व्यवहार नहीं किया कि रेप हुआ हो

कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित ने बलात्कार के एक आरोपी की अग्रिम ज़मानत मंज़ूर करते हुए शिकायतकर्ता को लेकर कई ऐसी टिप्पणियां की हैं, जो उनके चरित्र पर सवाल खड़ा करती हैं.

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कर्नाटक हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित ने बलात्कार के एक आरोपी की अग्रिम ज़मानत मंज़ूर करते हुए शिकायतकर्ता को लेकर कई ऐसी टिप्पणियां की हैं, जो उनके चरित्र पर सवाल खड़ा करती हैं.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को बलात्कार के एक मामले में शिकायतकर्ता महिला के चरित्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि महिला का यह कहना कि वह ‘बलात्कार के बाद सो गई थी किसी भारतीय महिला के लिए अशोभनीय है.’

हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित की एकल पीठ ने अपने फैसले में महिला के चरित्र के बारे में कई आक्षेप लगाए हैं.

उन्होंने महिला की शिकायत की सत्यता पर यह कहते हुए संदेह जाहिर किया है कि ‘महिला का कहना कि वह अपराध के बाद थकी हुई थी और सो गई थी, एक भारतीय महिला के लिए अशोभनीय है. महिलाएं बलात्कार के बाद ऐसे व्यवहार नहीं करती हैं.’

लाइव लॉ के अनुसार, कर्नाटक हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता पर सवाल उठाते हुए मामले के आरोपी की अग्रिम जमानत मंजूर कर दी है.

मामला बेंगलुरु का है, जहां 27 वर्षीय आरोपी पिछले दो साल से 42 वर्षीय शिकायतकर्ता की कंपनी में काम करता था. आरोप है कि उसने शादी का झूठा वादा करके शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, आरोपी ने मई के शुरुआत में शिकायतकर्ता के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया था. इस संबंध में बेंगलुरु के आरआर नगर पुलिस स्टेशन में दो मई को शिकायत दर्ज कराई गई थी.

इसके बाद आरोपी पर आईपीसी की धारा 376 (यौन उत्पीड़न), 420 (धोखाधड़ी) और 506 (आपराधिक धमकी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66-बी के तहत मामला दर्ज किया गया.

इसके बाद आरोपी ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया गया है कि घटना की रात आरोपी उनकी कार में उनके साथ उनके दफ्तर गया, जहां उसने बलात्कार किया.

इस बारे में अदालत ने कहा कि ‘ऐसी परिस्थिति में यह यकीन करना कठिन है कि शिकायतकर्ता के साथ शादी का झूठा वादा करके इस अवस्था में बलात्कार किया गया होगा.’

इस मामले के बारे में जस्टिस दीक्षित ने कई ऐसी टिप्पणियां की हैं, जिनका आरोप से कोई संबंध नहीं है, लेकिन उनसे ऐसा इंगित किया गया है कि शिकायतकर्ता सुबह तक आरोपी के साथ समय बिताने के लिए तैयार हुई थीं.

जस्टिस दीक्षित ने कहा, ‘शिकायतकर्ता ने यह नहीं बताया है कि वो रात के 11 बजे उनके दफ्तर क्यों गई थीं, उन्होंने आरोपी याचिकाकर्ता के साथ एल्कोहल लेने पर कोई एतराज नहीं जताया और उन्हें अपने साथ सुबह तक रहने दिया; शिकायतकर्ता का यह कहना कि अपराध होने के बाद वह थकी हुई थीं और सो गईं, भारतीय महिलाओं के लिए अनुपयुक्त है.’

22 जून को आरोपी की याचिका सुनते हुए जस्टिस दीक्षित ने आगे कहा, ‘हमारी महिलाएं बलात्कार होने के बाद ऐसे व्यवहार नहीं करती हैं.’ हालांकि किसी महिला या भारतीय नागरिक को बलात्कार के बाद कैसे व्यवहार करना चाहिए, यह अदालत ने नहीं बताया है.

यह मानते हुए कि आरोपी पर लगाए गए बलात्कार, धोखाधड़ी, और धमकाने के आरोप गंभीर हैं, अदालत ने कहा, ‘अपराध की गंभीरता नागरिक की स्वतंत्रता छीनने का एकमात्र मापदंड नहीं है, वो भी तब जबकि पुलिस की ओर से प्रथमदृष्टया कोई मामला दर्ज नहीं किया गया.’

अदालत ने एक पत्र का भी संज्ञान लिया, जिसमें कथित तौर पर शिकायतकर्ता ने समझौता करने की शर्त पर शिकायत वापस लेने की बात कही है.

अदालत ने यह भी कहा, ‘शिकायतकर्ता द्वारा इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है कि उन्होंने अदालत से शुरुआत में संपर्क क्यों नहीं किया जब आरोपी ने कथित तौर पर उन पर यौन संबंध के लिए दबाव बनाया था.’

जज ने यह भी कहा कि उनके पास आरोपी की जमानत नामंजूर करने की कोई वजह नहीं है क्योंकि महिला ने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि जब वे आरोपी के साथ खाना खाने गईं, उसने एल्कोहल का सेवन किया और उनकी गाड़ी में आकर बैठा, तब उसके व्यवहार के बारे में उन्होंने पुलिस या किसी अन्य व्यक्ति को आगाह क्यों नहीं किया.

अदालत ने आरोपी को एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी और कहा कि वह पूर्व अनुमति के बिना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की सीमा नहीं छोड़ेगा और प्रत्येक शनिवार को संबंधित पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा. साथ ही वह सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा.

यह पहली बार नहीं है जब किसी अदालत द्वारा बलात्कार की शिकायत करने वाले के ‘सामान्य व्यवहार करने’ को लेकर सवाल उठाए गए हैं.

मिसाल के तौर पर, अक्तूबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के दोषियों को बरी करते हुए पीड़िता पर यकीन न करते हुए कहा था, ‘इस कथित अपराध के समय उसका व्यवहार बलात्कार के पीड़ित की तरह नहीं था, यह कुछ-कुछ विनम्र और सहमतिपूर्ण लगता है. अगर सामान्य व्यक्ति के तौर पर इसे देखा जाये, तो जैसा उसने (महिला ने) बताया कि उनके और आरोपियों के बीच जो हुआ वो ऐसा नहीं है जो किसी अनिच्छुक, डरे हुए पीड़ित के साथ जबरन दुष्कर्म में होता है.’

उस समय कई वकीलों द्वारा कथित घटना के बाद महिला के व्यवहार के बारे में टिप्पणी करने पर आपत्ति जताई गई थी. उस समय वकील फ्लेविया एग्नेस ने द वायर  से कहा था, ‘अदालत स्पष्ट तौर पर यह सोचती है कि रेप के बाद आपको एक निश्चित व्यवहार करना चाहिए और यह उनके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. मुझे यह बेहद गलत लगता है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)