लॉकडाउन के दौरान मज़दूरों को उनके घर ले जा रहीं श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में हुई मुसाफ़िरों की मौतों की आलोचना के बाद रेलवे ने अधिकतर मामलों में मृतकों की पुरानी बीमारियों और उनकी शारीरिक अवस्था को ज़िम्मेदार ठहराया था.
लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए देशभर में चलाई गईं श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में लगातार मुसाफिरों की मौत की ख़बरें आई थीं.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, रेलवे 1 मई से चली इन ट्रेनों में हुई मौतों के बारे में राज्यों से लेकर डेटा इकठ्ठा कर रहा है, जिन्होंने मृतकों का पोस्टमार्टम करवाया था.
हालांकि उत्तर प्रदेश (यूपी) और बिहार जहां सर्वाधिक श्रमिक ट्रेने पहुंची हैं, वहां के सूत्रों ने इस अख़बार को बताया कि अब तक यह आंकड़ा सौ से ऊपर पहुंच चुका है, जबकि कई राज्यों द्वारा इस बारे में पूरी जानकारी नहीं दी गयी ही.
रेलवे ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि वे अब तक आंकड़े जमा करने की प्रक्रिया में ही हैं क्योंकि कई राज्यों में वांछित जानकारी नहीं भेजी है.
दिल्ली में मौजूद एक सूत्र के अनुसार, संसद का मानसून सत्र आने वाला है, ऐसे में केंद्र द्वारा राज्यों से डेटा लेने की प्रक्रिया में तेजी आ सकती है. उन्होंने यह इशारा भी किया कि इस डेटा में रेलवे परिसर में हुई मौतों को भी गिना जायेगा. यह भी बताया गया है कि चूंकि ये ट्रेनें अब भी चल रही हैं, इसलिए इसमें समय लग रहा है.
इससे पहले लगभग महीने भर पहले श्रमिक ट्रेनों में हुई मौतों के बारे में सामने आये आंकड़ों के अनुसार 9 मई से 27 मई के बीच 80 मुसाफिरों की मौत हुई थी.
यह आंकडे रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) ने जारी किए थे, जिसके अनुसार 9 मई से 27 मई के बीच ये मौतें पूर्व मध्य रेलवे जोन, उत्तर पूर्व रेलवे जोन, उत्तर रेलवे जोन और उत्तर मध्य रेलवे जोन सहित कई जोन में दर्ज की गईं.
इन ट्रेनों में चार वर्ष से लेकर 85 वर्ष तक के यात्रियों की मौत हुई. इस सूची में कुछ मामलों में रोगियों और दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को भी शामिल किया गया. हालांकि आरपीएफ ने 1 मई से 8 मई तक आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए थे.
तब रेल मंत्रालय की ओर से इससे दूरी बरती गई थी और अधिकतर लोगों की मौत का कारण पुरानी बीमारियों को बताया था.
लेकिन तब रेलवे के बयान के विपरीत एक जोनल रेलवे अधिकारी ने कहा कि इन ट्रेनों में सवार यात्रियों को प्राथमिक तौर पर गर्मी, उमस और प्यास का सामना करना पड़ा.
इससे पहले विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से कम से कम 40 श्रमिक ट्रेनों के रास्ता भटकने या उनका रूट बदले की भी बात सामने आई थी.
हालांकि इसके बाद सोशल मीडिया पर हुई तीखी आलोचना के बाद रेलवे ने कहा कि कई मौतों की वजह पहले से हुई बीमारी या शारीरिक अवस्था थी.
शुक्रवार को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव ने इस बारे में कहा, ‘यह राज्यों का विषय है. उनकी जांच पूरी हो जाने के बाद वे इस बारे में जानकारी साझा करेंगे… सभी राज्यों द्वारा अब तक सूचनाएं नहीं दी गई हैं.’
मुआवजे के बारे में उन्होंने रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया के तहत ‘केस टू केस’ आधार की बात की. ट्रिब्यूनल के एक पूर्व अध्यक्ष ने इस अख़बार को बताया कि मुआवजा ‘एगशेल नियम’ पर आधारित होता है, जिसके आधार पर ट्रेन में मारे गए मुसाफिर के रिश्तेदार को मुआवजा दिया जाता था.