पालघर लिंचिंग मामले और लॉकडाउन के बीच बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर प्रवासी श्रमिकों की भीड़ जमा होने पर भड़काऊ टिप्पणियों के लिए दर्ज मामले को सुनते हुए अदालत ने कहा कि अर्णब गोस्वामी पर लगे आरोपों से मानहानि का मामला बन सकता है, लेकिन इसे किसी धार्मिक समुदाय के ख़िलाफ़ नहीं माना जा सकता है.
नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते मंगलवार को रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी के खिलाफ दायर दो प्राथमिकियों पर कार्यवाही को निलंबित कर दिया.
पालघर में पीट-पीटकर हत्या के मामले और लॉकडाउन के बीच बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर प्रवासी श्रमिकों की भीड़ जमा होने के संबंध में कथित उकसावे और भड़काऊ टिप्पणियों के लिए उनके खिलाफ यह प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं.
पालघर मामले पर अपने एक डिबेट कार्यक्रम गोस्वामी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर टिप्पणियां की थीं, जिसके बाद कई कांग्रेस नेताओं ने देश भर में कई जगह एफआईआर दर्ज करवाई थीं.
19 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक को मुंबई स्थानांतरित करते हुए बाकी सभी एफआईआर को रद्द कर दिया था.
लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस उज्जल भूयां और जस्टिस रियाज चांगला की एक खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि प्राथमिक तौर पर गोस्वामी के खिलाफ कोई अपराध नही बनता है और उनका इरादा समाजिक सौहार्द्र बिगाड़ने या हिंसा भड़काने का नहीं था.
गोस्वामी की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि अंतिम सुनवाई होने और याचिका के निपटारे तक बलपूर्वक कोई कार्रवाई न करें.
गोस्वामी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा इस्तेमाल की भाषा कठोर हो सकती है और इसके कारण यह किसी के लिए बुरा या किसी की मानहानि हो सकती है. लेकिन इसके चलते आईपीसी की धारा 153, 153ए, 153बी और 295ए के तहत केस नहीं दर्ज किया जा सकता है.
हाईकोर्ट की पीठ ने नोट किया कि अर्णब गोस्वामी कांग्रेस पार्टी और इसके अध्यक्ष पर हमला कर रहे थे.
आदेश में कहा गया, ‘इसमें मुस्लिम समुदाय या ईसाई समुदाय का कोई उल्लेख नहीं था. यह कहना बहुत मुश्किल होगा कि बहस में दो धार्मिक समुदाय शामिल थे. वास्तव में, मुस्लिम समुदाय या ईसाई समुदाय का कोई संदर्भ नहीं था.’
जजों ने आगे कहा, ‘हमें याचिकाकर्ता द्वारा ऐसा कोई बयान नहीं मिलता है जिसे मुस्लिम समुदाय या ईसाई समुदाय के खिलाफ माना जा सके.’
यह कहते हुए कि भारत ‘अब एक परिपक्व लोकतंत्र है’, आदेश में कहा गया है, ‘हम सार्वजनिक बहस करते समय एक पत्रकार के सिर पर तलवार नहीं लटका सकते हैं.’
आदेश में कहा गया कि अर्णब गोस्वामी द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा से सोनिया गांधी या कांग्रेस पार्टी की मानहानि हो सकती है, लेकिन आपराधिक मानहानि के अपराध को एफआईआर के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए क्योंकि शिकायत किए जाने के बाद इस अपराध पर संज्ञान मजिस्ट्रेट द्वारा ही लिया जा सकता है.
शिकायकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि बांद्रा स्टेशन के बाहर इकट्ठा हुई प्रवासियों की भीड़ को मस्जिद के बाहर इकट्ठा होने की बात करके गोस्वामी ने मामले का सांप्रदायीकरण किया है.
इस पर पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले ही ये स्पष्ट कर दिया है कि उनका उद्देश्य किसी समुदाय को निशाना बनाना नहीं था.