दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कहा गया था कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 सिर्फ़ अंग्रेज़ी और हिंदी में प्रकाशित किया गया है, जबकि इसका असर पूरे देश पर और कई उद्योगों पर होगा और पूरे देश से राय मांगी गई है. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि नई अधिसूचना पर्यावरण विरोधी और हमें समय में पीछे ले जाने वाला है.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह सुनिश्चित करे कि पर्यावारण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना-2020 का मसौदा 10 दिनों के भीतर संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में प्रकाशित हो.
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ ने ईआईए-2020 के मसौदे पर सुझाव देने की तारीख 11 अगस्त तब बढ़ाने के साथ यह निर्देश दिया.
अदालत ने कहा कि सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया के दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए हमारा विचार है कि यदि मसौदे का अन्य भाषाओं- कम से कम संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं में अनुवाद की व्यवस्था की जाए, तो प्रस्तावित अधिसूचना के प्रभावी प्रसार में यह सहायक होगा.
पीठ ने कहा कि अनुवाद का कार्य स्वयं केंद्र कर सकता है या व्यवस्था के अनुसार राज्य सरकारों के सहयोग से कर सकता है.
अदालत ने यह निर्देश पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड की याचिका पर दिया, जिन्होंने ईआईए-2020 के मसौदे पर सुझाव देने की मियाद सितंबर तक या कोविड-19 महामारी काबू में आने तक के लिए बढ़ाने का अनुरोध किया था.
तोंगड ने कहा कि मसौदा केवल अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित किया गया है, जबकि प्रस्तावित अधिसूचना का असर पूरे देश पर और कई उद्योगों पर होगा और पूरे देश से राय मांगी गई है.
उनके वकील गोपाल शंकरनरायणन ने कहा कि पहले भी केंद्र सरकार ने अधिसूचना का मसौदा कई अन्य भाषाओं में भी जारी किया था.
इससे पहले कोर्ट ने इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए इस अधिसूचना पर जनता से टिप्पणियां प्राप्त करने की समयसीमा बढ़ाकर 11 अगस्त 2020 कर दी थी. केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय ने ईआईए नोटिफिकेशन, 2020 पर जनता से आपत्तियां या सुझाव प्राप्त करने की आखिरी तारीख 30 जून 2020 निर्धारित की थी.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दलील दी थी कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते पोस्टल सुविधाएं बंद रहने जैसी समस्याओं के कारण कई लोग इस विवादित नोटिफिकेशन पर अब तक अपना विचार नहीं दे पाए हैं. उन्होंने कहा कि यदि इसकी समयसीमा नहीं बढ़ाई जाती है तो लोग इस पर्यावरण अधिसूचना पर अपनी राय देने से महरूम रह जाएंगे.
इस विवादास्पद अधिसूचना में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.
याचिका में कहा गया, ‘मसौदा अधिसूचना में कुछ मामलों में जनता की राय को पूरी तरह नजरअंदाज करने, जनता की राय मांगने की अवधि 45 दिन से घटाकर 40 दिन करने और परियोजनाओं के लिए काम शुरू होने के बाद मंजूरी देने सहित मौजूदा नियमों में बदलाव करने जैसे कदम प्रस्तावित हैं.’
जैसा कि द वायर ने पहले ही रिपोर्ट कर बताया था कि लोगों द्वारा भेजे गए सुझावों के आधार पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने प्रस्ताव रखा था कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए अधिसूचना पर सुझाव और आपत्तियां भेजने की आखिरी तारीख को 60 दिन बढ़ाकर 10 अगस्त 2020 किया जाना चाहिए.
हालांकि पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एकतरफा फैसला लेते हुए इस मांग को खारिज कर दिया था और बिना कोई कारण बताए अधिसूचना पर राय देने की समयसीमा 30 जून 2020 तय की.
द वायर ने अपनी एक अन्य रिपोर्ट में बताया था कि बहुत बड़ी संख्या में लोग इसका विरोध कर रहे हैं और ईआईए अधिसूचना भारत के राजपत्र में प्रकाशित होने के सिर्फ 10 दिन के भीतर सरकार को 1190 पत्र सिर्फ ईमेल के जरिये प्राप्त हुए, जिसमें से 1144 पत्रों में इसका विरोध किया गया और पर्यावरण मंत्रालय से इसे वापस लेने की मांग की गई है.
कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का कहना है कि ईआईए अधिसूचना, 2006 में बदलाव करने के लिए लाया गया 2020 का ये नई अधिसूचना पर्यावरण विरोधी और हमें समय में पीछे ले जाने वाला है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)