गुजरात: फिर विवादों में क्यों है स्टैच्यू ऑफ यूनिटी?

केवड़िया के पास नर्मदा नदी के पास बनी 182 मीटर ऊंची इस प्रतिमा के आस-पास रहने वाले ग्रामीणों का आरोप है कि राज्य सरकार ने उनके पूर्वजों से ज़मीन बांध बनाने के लिए ली थी, लेकिन अब इसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है. इसलिए या तो उन्हें उचित मुआवज़ा दिया जाए या फिर उनकी ज़मीन लौटाई जाए.

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स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (फोटो: पीटीआई)

केवड़िया के पास नर्मदा नदी के पास बनी 182 मीटर ऊंची इस प्रतिमा के आस-पास रहने वाले ग्रामीणों का आरोप है कि राज्य सरकार ने उनके पूर्वजों से ज़मीन बांध बनाने के लिए ली थी, लेकिन अब इसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है. इसलिए या तो उन्हें उचित मुआवज़ा दिया जाए या फिर उनकी ज़मीन लौटाई जाए.

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (फोटो: पीटीआई)
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ एक बार फिर से विवादों में है.

गुजरात की भाजपा सरकार ने मूर्ति के आस-पास के क्षेत्रों में निगरानी बढ़ा दी है और इसके चारों ओर कंटीले तार लगाए जा रहे हैं क्योंकि हाल ही में यहां के गांव वालों ने विरोध के रूप में यहां पर खेती करने की कोशिश की थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की 143वीं जयंती पर 31 अक्टूबर 2018 को वडोदरा से सौ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित केवड़िया के पास नर्मदा नदी के पास बनी 182 मीटर ऊंची इस प्रतिमा का अनावरण किया था.

ग्रामीणों का आरोप है कि राज्य सरकार ने उनके पूर्वजों से ये जमीन बांध बनाने के लिए ली थी, लेकिन अब इसका इस्तेमाल अन्य कॉमर्शियल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए किया जा रहा है.

उनका कहना है कि इसके चलते उन्हें उचित मुआवजा दिया जाए या उनकी जमीन लौटाई जाए. यहां के कुल छह गांवों- गोरा, नवागाम, लिमड़ी, वघादिया, केवड़िया और कोठी- के लोग इसका विरोध कर रहे हैं.

दरअसल गुजरात सरकार ने साल 1961 में नर्मदा बांध नहर बनाने के लिए इन गांवों की जमीन ली थी. बाद में इसे सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (एसएसएनएनएल) को ट्रांसफर कर दिया गया. 

यह गुजरात सरकार के स्वामित्व वाली सरकारी कंपनी है और सरदार सरोवर बांध परियोजना को लागू करने के लिए मार्च 1989 में इसे बनाया गया था.

एसएसएनएनएल उस ट्रस्ट का हिस्सा थी, जिसने गुजरात सरकार की ओर से 182 मीटर ऊंची सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति बनाई थी और इसकी देखरेख करती है.

एसएसएनएनएल ने इस भूमि के चारों ओर कंटीले तार लगाने का कार्य लगभग पूरा कर लिया है लेकिन इस जमीन के करीब 250 वास्तविक मालिक और उनके परिजनों ने एसएसएनएनएल द्वारा दिए गए मुआवजे को अभी तक स्वीकार नहीं किया है.

ग्रामीणों को भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का समर्थन प्राप्त हैं, जिसके संस्थापक छोटू वसावा ने ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को ‘स्टैच्यू ऑफ डिस्प्लेसमेंट’ कहा है. कांग्रेस ने भी इसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया है.

इन छह गांवों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की थी और कहा था कि सरकार द्वारा मुहैया कराया गया मुआवजा मामूली है.

हालांकि मई महीने में हाईकोर्ट ने ये याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद से एसएसएनएनएल ने इसके चारों ओर कंटीले तार लगाने का कार्य शुरू किया.

हाल फिलहाल में जबरन इस क्षेत्र में लोगों के द्वारा घुसने के कारण संस्था ने इसकी निगरानी के भी इंतजाम किए हैं.

केवड़िया के डिप्टी कलेक्टर और प्रशासक निकुंज पारिख का कहना है कि वह एसएसएनएनएल द्वारा अधिग्रहित भूमि की रक्षा के लिए कर्तव्यबद्ध हैं क्योंकि केवड़िया के प्रशासक ‘एसएसएनएनएल भूमि के संरक्षक’ होते हैं.

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘कोई भी सरकारी भूमि पर खेती नहीं कर सकता है. जबरन इस क्षेत्र में घुसने वालों के खिलाफ हम कानूनी कार्रवाई करेंगे.’

वहीं एसएसएनएनएल का कहना है कि उन्होंने कानूनन ये भूमि अधिग्रहित की है और इसका मुआवजा भी दिया है.

हाईकोर्ट को दिए अपने जवाब में एसएसएनएनएल ने कहा कि सरकार ने पांच गांवों की 1814.65 एकड़ भूमि ली है और इसका मुआवजा दिया है. लेकिन चूंकि भूमि का उपयोग नहीं किया गया था इसलिए ग्रामीण अपनी भूमि पर लौट आए थे और बाद में जमीने के मूल मालिकों की मृत्यु हो गई.

एसएसएनएनएल के अनुसार साल 1979 के नर्मदा जल विवाद विवाद न्यायाधिकरण (एनडब्ल्यूडीटी) के फैसले के मुताबिक इन छह गांवों के कुल 238 भू-मालिक थे, जिनमें से लगभग 105 मूल मालिकों ने अभी तक मुआवजा पैकेज पर सहमति नहीं जताई है.

इसी तरह जमीन के मूल मालिकों के बेटों, कुल 241 लोगों को लाभार्थी माना गया था और इनमें से लगभग 120 ने मुआवजा अभी स्वीकार नहीं किया है.

मुआवजा पैकेज

नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) के दिशानिर्देशों के अनुसार एक जमीन मालिक के पुरुष उत्तराधिकारी, जो परियोजना के कारण विस्थापित हैं और जिनकी आयु 1 नवंबर 1989 तक 18 वर्ष थी, को दो हेक्टेयर या उनके जमीन जितनी भूमि, जो भी इसमें से बड़ी होगी, दी जानी है.

इसके साथ ही पशुपालन के लिए 250 वर्ग फुट का एक प्लॉट भी देने का प्रावधान है. ग्रामीणों को ये भी विकल्प दिया गया है कि वे भूमि के बदले में नकद मुआवजा 7.5 लाख प्रति हेक्टेयर (2.4 एकड़) की दर से ले सकते हैं.

हालांकि यहां के निवासियों का कहना है कि इस समय इस भूमि की कीमत 35 लाख रुपये प्रति एकड़ है.

एसएसएनएनएल ने ‘आदर्श वसाहट’ परियोजना के तहत 1,000 परिवारों के पुनर्वास का प्रस्ताव किया है. इसके लिए गोरा गांव में एसएसएनएनएल की 16 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर निर्माण कार्य किया जाना है.

इसके अलावा एसएसएनएनएल ने एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में उन लोगों के लिए दुकानें आवंटित करने की पेशकश की है, जिनकी दुकानें अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान तोड़ दी गई थीं.

इनके अधिकारियों का कहना है कि इसमें वे प्रभावित परिवार भी शामिल होंगे जो लाभार्थियों की मूल सूची में शामिल नहीं थे.

आदिवासी अधिकार

नर्मदा जिले के नांदोड़ तालुका में केवड़िया कॉलोनी संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आती है, जिस पर पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार), अधिनियम, 1996 (पेसा) के प्रावधान लागू हैं.

पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून के तहत क्षेत्रीय अखंडता के अधिकार प्रदान किए गए हैं, जहां पर आदिवासी पंचायतें विकास और भूमि अधिग्रहण के संबंध में फैसला लेती हैं. इस कानून के तहत आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी कार्यों के इस्तेमाल पर रोक है.

हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि इस क्षेत्र को विकसित करते एक टूरिस्ट हब बनाने के फैसले में उन्हें शामिल नहीं किया गया है.