आप पर भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप है. हो सकता है क़ानूनी लड़ाई में वह आरोप ग़लत सिद्ध हो लेकिन अभी छवि-युद्ध में आपकी पीठ दीवार से लगी है.
प्रिय श्री तेजस्वी यादवजी,
मैं जानता हूं कि अभी आप एक बहुत ही मुश्किल स्थिति का सामना कर रहे हैं. आपके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है और आपकी सरकार पर यह दबाव डाला जा रहा है वह आपसे इस्तीफ़ा ले. आप भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर हैं. वह लगातार आप पर हमला कर रही है. वह आपके सहयोगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रलोभन दे रही है कि वे अगर आपसे अलग हो जाएं तो वह उनकी सरकार को बाहर रहकर संभाले रखेगी.
नीतीश कुमार क्या फ़ैसला करेंगे इससे न सिर्फ़ उनकी राजनीतिक परिपक्वता बल्कि राजनीतिक नैतिकता का भी पता चलेगा. थोड़ी देर पहले उनके एक प्रवक्ता ने बयान दिया है कि वे अपनी छवि से कोई समझौता नहीं करेंगे. यह दिलचस्प बयान है. यह नहीं कहा गया कि वे अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे, बल्कि दुहाई छवि की है.
बिहार में और कोई भले न जाने, पत्रकार और अफ़सर जानते हैं कि नीतीशजी छवि को लेकर वैसे ही सावधान हैं जैसे हम अपने कुरते का कलफ नहीं टूटने देना चाहते. और हम यह भी जानते हैं कि छवि व्यक्ति से बिल्कुल अलग भी बनाई जा सकती है. उस छवि के पीछे व्यक्ति की असलियत छिपी भी रह सकती है.
कभी-कभी यह भी होता है कि हम जब छवि के पीछे के व्यक्ति को खोजने चलें तो हाथ सिर्फ़ मुखौटा आता है.
लेकिन अभी हम नीतीशजी की बात नहीं कर रहे. बिहार में पिछले बारह बरस से यह यह ख़बर आम है कि सामान्य सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार सौ गुना बढ़ा है, यह भी कि शराबबंदी के बाद थानों की आमदनी कितनी बढ़ गई है. आप पटना और दूसरी जगहों पर चाहें तो शराब हासिल कर ही सकते हैं. बावजूद इसके नीतीशजी पर कभी भी भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगेगा. यह छवि निर्माण का जादू है.
बात नीतीशजी की नहीं, अभी आपकी है. आप पर आरोप भ्रष्टाचार का है. तर्क दिया जा सकता है कि भ्रष्टाचार एक बड़ा ही सापेक्षिक मामला है. आप बड़े उद्योगपतियों को फ़ायदा देने के वायदे के बदले अगर उनसे धन वसूल करें और उनके हवाई जहाज़ पर चलें तो इसे राजनीति का क़ायदा और उसकी ज़रूरत बताया जाता है. उसपर कभी कोई हंगामा भी नहीं खड़ा होता.
आपके साथ दिक्कत आपके परिवार की है. सबसे बढ़कर आपके पिता के इतिहास की. क़ानूनी और तकनीकी नुक़्तों को छोड़ दें, उनपर भ्रष्टाचार का दाग जनता की नज़र में पक्का है. विरोधियों, समर्थकों दोनों में.
समर्थक इसकी वकालत यह कहकर करते हैं कि क्या सिर्फ़ वही कमा रहे हैं! लेकिन कहते हुए भी हम जानते हैं कि यह सीनाजोरी है. हम जैसे लोग राजनीति में आपके पिता के साहस के कायल हैं, ख़ासकर धर्मनिरपेक्षता के मामले में और तब भी जब उन्होंने सोनिया गांधी का साथ न छोड़ा, उनके विदेशी मूल का सवाल उठने पर अलोकप्रियता का ख़तरा उठाकर भी.
लेकिन हम जैसे लोगों को उन्होंने निराश भी उतना ही किया. अपने परिवार और सालों के मोह में वे भूल गए कि वह एक बहुत तंग दायरा है जिसके हितों को उन्होंने बिहार के उन करोड़ों लोगों के ऊपर रखा जिन्होंने अपना पूरा विश्वास उन्हें दिया था. लालूजी ने उस जनता के साथ विश्वासघात किया. इसकी सज़ा उन्हें मिली. लेकिन उससे ज़्यादा बिहार की जनता को.
नया मौक़ा दो साल पहले मिला. उस वक़्त भी आपके पिता ने पुराने सामंती अंदाज़ में जनता के मत को परिवार का क़ैदी बना दिया. आप दो भाइयों का मंत्रिमंडल में आना बिल्कुल ग़ैर मुनासिब था. फिर भी वह हुआ. जनमत का मज़ाक कैसे बनाया जा सकता है, यह हमने देखा.
लेकिन इस बीच हमने आपको देखा और आपके बारे में सुना भी. आपकी नई उम्र के बावजूद, या शायद उसी की वजह से आप बिल्कुल अलग ढर्रे पर पार्टी को ले जाना चाहते हैं, आप वैचारिक आधार को आवश्यक मानते हैं, संजीदा इंसान हैं और नया जानने और सीखने को तत्पर हैं, यह सबकुछ सुना. आपके भाई के होने के बावजूद आपसे आशा बनी. उन्हें आपके लिए बर्दाश्त करने को लोग तैयार थे.
अभी लेकिन एक बिल्कुल नई परिस्थिति है. आप पर भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप है. हो सकता है क़ानूनी लड़ाई में वह आरोप ग़लत सिद्ध हो लेकिन अभी छवि-युद्ध में आपकी पीठ दीवार से लगी है.
क्या आप अभी हिम्मत दिखा पाएंगे? क्या आप अपनी पार्टी को यह कह पाएंगे कि आपने हम पर भरोसा जताया, शुक्रिया लेकिन मसला कहीं बड़ा है. कुछ बहुत बड़ी चीज़ दांव पर है. इसलिए मैं इस्तीफ़ा देता हूं. क्या आप अपने पिता और मां को यह कह पाएंगे कि जनता ने जो विश्वास आपमें जताया है, वह आपकी राजनीति के कारण, न कि आपके परिवार की महानता के कारण और उसका सम्मान किया जाना चाहिए.
क्या आप कह पाएंगे कि आपके दल में अनेक लोग हैं, नीतीशजी के दल से उलट जो जनता के इस विश्वास का वहन करने में सक्षम हैं, कि अब्दुल बारी सिद्दीक़ी जैसे तज़ुर्बेकार व्यक्ति उपमुख्यमंत्री पद के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं.
क्या आप अभी पद छोड़कर बाहरी राजनीतिक मैदान में कूदने की हिम्मत रखते हैं? क्योंकि आपका असल इम्तहान वहीं होगा. वहीं आपको भारतीय जनता पार्टी को परास्त करना है.
बिहार को एक असली राजनेता की ज़रूरत है. नए ख़ून की भी, जिसे अपने कुव्वत पर भरोसा हो और जिसके अपने जीवन मूल्य हों, जो दिखावे के नहीं.
आपको अपने पिता से कई क़दम आगे बढ़ना होगा. वे शायद अपने दौर की राजनीति की असुरक्षा के कारण अपने दायरे में बंध गए. आप उस असुरक्षा से मुक्त हैं.
जानता हूं कि अगर आपने इस्तीफ़ा दिया तो भारतीय जनता पार्टी आसमान सर पर उठा लेगी, दावा करेगी कि वह जीत गई, उसके दबाव के चलते अपने इस्तीफ़ा दिया. लेकिन सवाल इस छोटी हार जीत का नहीं. सवाल हिंदुस्तान का है. क्या वह पूरी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हवाले कर दिया जाए? सवाल उन करोड़ों लोगों का है जो बिहार में अपनी उम्मीद लगाए बैठे हैं. 2019 के लिए भी.
आप सत्ता से बाहर आकर ही राजनेता बन सकेंगे और जननेता भी. यह विपत्ति वरदान हो सकती है अगर उसके संदेश को समझने की सलाहियत हो. हम देखना चाहते हैं कि जवानी ख़तरा उठा सकती है या उसके सीने पर बुढ़ापा जम कर बैठ गया है.
आशा में,
बिहार और भारत का एक निवासी