सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2015 में दिए एक फ़ैसले का हवाला देते हुए एनजीटी ने दिल्ली सरकार से कहा कि प्रदूषित पानी छोड़कर पानी को गंदा करने वाले दिल्ली के रहवासियों से पर्यावरणीय मुआवज़ा वसूल किया जाए.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया है कि यमुना में अशोधित जल-मल गिराने के एवज में वह राष्ट्रीय राजधानी के सभी मकानों पर सीवेज शुल्क लगाए.
अधिकरण ने कहा कि दिल्ली की अवैध कालोनियों में रहने वाले 2.3 लाख लोगों ने सीवेज का कनेक्शन नहीं लिया है जिसके कारण नदी में प्रदूषक तत्व जा रहे हैं.
अधिकरण ने कहा कि ‘प्रदूषक भरपाई करता है’ के सिद्धांत पर प्रत्येक व्यक्ति अपने घर से प्रदूषित पानी छोड़कर प्रदूषण फैला रहा है.
एनजीटी के अध्यक्ष एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘दिल्ली सरकार सीवेज शुल्क लगाने और उसकी वसूली करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के 24 अक्टूबर, 2019 के आदेश को लागू करे.’
अधिकरण ने 2015 में उक्त सिद्धांत के आधार पर ही प्रशासन को निर्देश दिया था कि वह दिल्ली के प्रत्येक मकान से पर्यावरणीय मुआवजा वसूल करे.
बाद में इस फैसले पर उच्चतम न्यायालय ने भी मुहर लगा दी थी. एनजीटी इस मामले में अगली सुनवाई 27 जनवरी, 2021 को करेगा.
एनडीटीवी के मुताबिक, एनजीटी ने कहा कि यमुना प्रदूषित होने के लिए सीवेज के अशोधित जल-मल, औद्योगिक अपशिष्टों और अन्य प्रदूषक तत्व बड़ी समस्या बने हुए हैं.
पीठ ने कहा, ‘यमुना को पुनर्जीवित करना तभी संभव होगा जब एकीकृत नाली प्रबंधन के जरिए सभी नालियों को जोड़कर यमुना में अनुपचारित मल के निर्वहन को रोकने के लिए कार्यों को प्रभावी ढंग से अमल करते हैं.’
पीठ ने कहा कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रदूषणकारी उद्योगों को रोका जाए और नए उद्योगों को सुरक्षा उपायों के बिना अनुमति न दी जाए.
ट्रिब्यूनल ने कहा कि दूसरा प्रमुख मुद्दा बाढ़ इलाकों की रक्षा करना और अन्य बहाली के उपाय करना है, जिसके लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण को प्रभावी तरीके से जिम्मेदारी निभाना होगा.
पीठ ने कहा, ‘फिलहाल ज्यादातर बाढ़ इलाका अतिक्रमण के अधीन है इसलिए पर्याप्त आर्द्रभूमि और ऐसी अन्य उपयोगी गतिविधियों की स्थापना एक दूर का सपना है.’
यमुना के पर्यावरणीय प्रवाह के संबंध में एनजीटी ने कहा कि इस मुद्दे पर प्रशासनिक स्तर पर काम किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘दिल्ली के अधिकारियों के अलावा हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं. जागरूकता कार्यक्रम चलाना और नागरिक समाज को शामिल करना जरूरी है. प्रभावी संस्थागत निगरानी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए.’
पीठ ने कहा कि यह निर्विवाद है कि यमुना निगरानी समिति (वाईएमसी) की सिफारिशों के संदर्भ में आगे की कार्रवाई करने के लिए दिल्ली, हरियाणा और यूपी को निर्देश दिया गया है कि पारिस्थितिक बहाली और अतिक्रमणों को हटाने का काम बड़ी मात्रा में अधूरा है.
ट्रिब्यूनल ने कहा कि वाईएमसी अपने पहले के निर्देशों के अनुपालन की निगरानी करना जारी रखेगा और कार्यालय सहित समिति को प्रदान की जाने वाली सुविधाएं जारी रहेंगी ताकि यह प्रभावी ढंग से संचालित हो सके.
वाईएमसी का कार्यकाल, जिसमें सेवानिवृत्त विशेषज्ञ सदस्य बीएस सजवान और दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा शामिल थे, जिसे 2018 में न्यायाधिकरण द्वारा नियुक्त किया गया था, उनका कार्यकाल जून में समाप्त हो गया था.
बता दें कि हाल ही में एनजीटी द्वारा गठित एक समिति ने कहा था कि यमुना की सफाई की निगरानी में सबसे बड़ी चुनौती ‘आधिकारिक उदासीनता’ है, क्योंकि वैधानिक प्रावधानों और काफी उपदेशों के बावजूद जल प्रदूषण प्राथमिकता नहीं है.
यमुना सफाई को लेकर एनजीटी के विशेषज्ञ सदस्य बीएस साजवान और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की दो सदस्यीय यमुना निगरानी समिति ने एनजीटी को सौंपी अपनी अंतिम रिपोर्ट में बीते 23 महीनों के दौरान अपने अनुभव को साझा किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)