नगालैंड सरकार का यह निर्णय राज्यपाल आरएन रवि के उस पत्र बाद आया है, जिसमें उन्होंने राज्य की क़ानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए थे और कहा था कि राज्य में संगठित गिरोह अपनी समानांतर सरकार चला रहे हैं.
नई दिल्लीः नगालैंड सरकार ने राज्य के सभी कर्मचारियों से एक फॉर्म भरकर यह सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है कि क्या उनके परिवार का कोई सदस्य या संबंधी राज्य में सक्रिय हथियारबंद संगठन से जुड़ा हुआ है या नहीं.
इसे राज्य सरकार का अपनी तरह का ऐसा पहला औपचारिक कदम माना जा रहा है, जिसमें वह सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही तय करने जा रहा है.
राज्यपाल आरएन रवि द्वारा मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो को लिखे पत्र के कुछ दिनों बाद ही रियो सरकार की ओर से ये निर्देश दिए गए हैं.
19 जून को मुख्यमंत्री को लिखे गए इस साढ़े तीन पेज के पत्र में राज्यपाल रवि ने कहा है कि आधा दर्जन से अधिक हथियारबंद संगठित गिरोह रोजाना उपद्रव कर रहे हैं और अपनी तथाकथित सामानांतर सरकार चला रहे हैं.
उन्होंने पत्र में कहा कि वे राज्य की कानून एवं व्यवस्था से किसी भी तरह के प्रतिरोध के बिना सरकार की वैधता को चुनौती दे रहे हैं जिससे विश्वास का संकट पैदा हो गया है.
यह पत्र 25 जून को मीडिया में लीक हो गया था. बता दें कि राज्यपाल रवि नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिज्म (एनएससीएन-इसाक-मुइवाह) और सात अन्य नगा राष्ट्रवादी राजनीतिक समूह (एनएपीजी) के बीच चल रही शांति वार्ता के वार्ताकार भी हैं.
उन्होंने कहा कि वे राज्य की कानून एवं व्यवस्था मशीनगरी से प्रतिरोध और प्रणाली में विश्वास का संकट पैदा कर राज्य सरकार की वैधता को चुनौती दे रहे थे.
राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 371ए के तहत अपनी शक्तियों का हवाला देते हुए कहा कि अधिकारियों की पोस्टिंग और उनके तबादले जैसे कानून एवं व्यवस्था के महत्वपूर्ण फैसले जिला या उससे ऊपर के स्तर पर राज्यपाल की मंजूरी के बाद ही होंगे.
उन्होंने 22 जून को राज्य कैबिनेट के साथ एक बैठक भी की थी.
हालांकि, सात एनएनपीजी और एनएससीएन (आई-एम) प्रमुख मुइवाह ने इस पत्र पर नाराजगी जताई है क्योंकि इस पत्र में उनके बारे में संगठित हथियारबंद गिरोह लिखा गया था. इतना ही नहीं इन समूहों ने उगाही के आरोपों को नकारते हुए इसे लेकर अलग-अलग बयान भी जारी किए हैं.
एनएससीएन (आई-एम) ने जनता, सरकारी कर्मचारियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से कर संग्रह को न्यायोचित ठहराते हुए इसे एक संप्रभु राष्ट्र और इसके लोगों का निहित अधिकार बताया है.
उन्होंने कहा, ‘कर आजीविका का स्रोत है, जो नगा राजनीतिक आंदोलन को इतनी दूर तक लेकर आया है. इसके पहले के वार्ताकारों और खुद भारतीय प्रशासन ने भी इसे वैधता से स्वीकार किया है और यह कभी भी मुद्दा नहीं रहा.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन आज स्वतंत्रता सेनानियों की आड़ में कुछ समूहों द्वारा की जा रही उगाही ने इस स्थिति को जटिल बना दिया है. एनएससीएन ने कभी भी वसूली नहीं की है, वह सिर्फ लोगों से वैध कर वसूलता है.’
मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने भी राज्य में खराब होती कानून एवं व्यवस्था को लेकर राज्यपाल के आरोपों से इनकार किया है.
उन्होंने पत्रकारों को बताया कि 1960 और 1990 के दशकों में हथियारबंद समूहों के साथ युद्धविराम समझौतों पर केंद्र के हस्ताक्षर से पहले की तुलना में अब स्थिति में व्यापक सुधार हुआ है.
राज्यपाल के इस पत्र के बाद राज्य के मुख्य सचिव तेमजन टॉय ने सात जुलाई को दिशानिर्देश जारी किए थे, जिसमें विभागों के सभी प्रशासनिक प्रमुखों और सभी विभागों के प्रमुखों से अपने विभागों और कार्यालयों के अधीन सभी सरकारी मुलाजिमों से यह जानकारी प्राप्त करने को कहा था, क्या उनके परिवार के सदस्य या संबंधी किन्हीं भूमिगत संगठनों से जुड़े हुए हैं या नहीं.
इसके लिए सरकार ने एक फॉर्म तैयार किया है और इन सरकारी कर्मचारियों को ये सूचनाएं विधिवत रूप से फॉर्म में भरकर राज्य के गृह मंत्रालय को सौंपनी है.
इस फॉर्म में सरकारी कर्मचारी से न सिर्फ किसी भूमिगत समूह से उसके संबंधों के बारे में पूछा गया है बल्कि उस संगठन में उस व्यक्ति की रैंक या पद के बारे में भी जानकारी मांगी गई है. यह स्पष्ट करता है कि परिवार के सदस्यों से मतलब पत्नी या पति, बेटे या बेटियों, भाई-बहन और परिजन से होगा.
इन दिशानिर्देशों को लेकर राज्य के सरकारी कर्मचारियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई है. कुछ का कहना है कि सरकार के इस कदम से कोई भी कर्मचारी अपने किसी भी संबंधी की वजह से संदेह के घेरे में आ सकता है जबकि कुछ ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि इससे कोई भी अधिकारी इन हथियारबंद समूहों की मदद करने की स्थिति में नहीं होगा.
इस बीच हाल ही में स्थानीय समाचार पत्रों को जारी किए गए प्रेस नोट में एनएससीएन (आई-एम) ने कोरोना संकट और आर्थिक मंदी को ध्यान में रखते हुए पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ नागालिम (जीपीआरएन) सरकार को दिए जाने वाले पांच फीसदी कर को तत्काल प्रभाव से घटाकर तीन फीसदी कर दिया है.
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