लॉकडाउन में स्कूल फीस में छूट की मांग वाली याचिका पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

विभिन्न राज्यों के अभिभावकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों की तीन महीने की फीस माफ़ करने और नियमित स्कूल शुरू होने तक फीस नियंत्रित किए जाने की मांग की थी.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

विभिन्न राज्यों के अभिभावकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों की तीन महीने की फीस माफ़ करने और नियमित स्कूल शुरू होने तक फीस नियंत्रित किए जाने की मांग की थी.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन की अवधि के लिए छात्रों को स्कूल फीस से छूट देने के लिए बच्चों के अभिभावकों की याचिका पर शुक्रवार को विचार करने से इनकार कर दिया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस राहत के लिए याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाना होगा.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई करते हुए कहा, ‘फीस बढ़ाए जाने का मामला राज्य के उच्च न्यायालयों में उठाया जाना चाहिए था. यह उच्चतम न्यायालय में क्यों आया है?’

पीठ ने कहा कि इसे लेकर प्रत्येक राज्य और यहां तक कि प्रत्येक जिले की अलग समस्याएं हैं.

विभिन्न राज्यों में स्कूल जाने वाले बच्चों के अभिभावकों ने शीर्ष अदालत में यह याचिका दायर कर अनुरोध किया था कि कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान स्कूल की फीस के भुगतान में छूट देने अथवा इसे स्थगित रखने का निर्देश दिया जाए.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक राजस्थान, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली और महाराष्ट्र के छात्रों के अभिभावकों के द्वारा दायर याचिका में वित्तीय कठिनाइयों का हवाला दिया गया है और लॉकडाउन अवधि में स्कूल फीस के भुगतान पर रोक लगाने की मांग की गई है.

अभिभावकों ने याचिका में लाकडाउन के दौरान निजी स्कूलों की तीन महीने की (एक अप्रैल से जून तक की) फीस माफ करने और नियमित स्कूल शुरू होने तक फीस नियंत्रित किए जाने की मांग की थी.

यह भी मांग की गई कि फीस न देने के कारण बच्चों को स्कूल से न निकाला जाए, क्योंकि कोरोना महामारी के चलते राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में रोजगार बंद होने से बहुत से अभिभावक फीस देने में असमर्थ हो गए हैं.

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन और मयंक क्षीरसागर ने कहा कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्कूलों को बढ़ी हुई फीस लेने की अनुमति दे दी है.

इस पर पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर कर सकते हैं. वह इस याचिका पर विचार की इच्छुक नहीं है और याचिकाकर्ता चाहें तो इसे वापस लेकर उच्च न्यायालयों में जा सकते हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट में ट्यूशन फीस माफ़ करने संबंधी याचिका दाखिल

दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है, जिसमें आम आदमी पार्टी सरकार को कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर लागू लॉकडाउन के दौरान कक्षाएं नहीं लगने के कारण राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों द्वारा ली गई ट्यूशन फीस को माफ करने के लिए कदम उठाने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

याचिका में अप्रैल से ट्यूशन फीस लौटाने का अनुरोध भी किया गया है जिनकी अदायगी अभिभावक कर चुके हैं.

मुख्य न्यायाधीश डीएच पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ ने शुक्रवार को मामले की संक्षिप्त सुनवाई के बाद इसे चार अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

इससे पहले दिल्ली सरकार के स्थायी वकील रमेश सिंह ने पीठ से कहा कि उच्च न्यायालय इस वर्ष अप्रैल में इसी तरह के एक मामले को देख चुका है.

याचिकाकर्ता नरेश कुमार के वकील ने यह पता लगाने के लिए वक्त मांगा कि क्या याचिका में उठाए गए मुद्दों पर उच्च न्यायालय अप्रैल में गौर कर चुकी है.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि स्कूलों को ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करने के लिए शिक्षिकों को भुगतान करना होता है, साथ ही ऐसी कक्षाओं को चलाने के लिए उपकरणों, सॉफ्टवेयर और इंटरनेट कनेक्शन जैसी जरूरी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना पड़ता है.

अधिवक्ता एन. प्रदीप शर्मा ने याचिकाकर्ता की पैरवी की. पीठ ने याचिकाकर्ता से जानना चाहा अगर स्कूल कहते हैं कि ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करने की कीमत सामान्य कक्षाएं आयोजित करने की तुलना में अधिक है तो क्या वह ज्यादा फीस देने के लिए तैयार हैं.

याचिकाकर्ता ने याचिका में दिल्ली सरकार के 17 अप्रैल की उस अधिसूचना को भी चुनौती दी, जिसमें स्कूलों को केवल ट्यूशन फीस लेने की अनुमति दी गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)