भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ़्तार गौतम नवलखा ने यह कहते हुए ज़मानत याचिका दायर की थी कि वे 90 से अधिक दिनों से हिरासत में हैं लेकिन उनके ख़िलाफ़ आरोपपत्र दायर नहीं किया गया है. हालांकि अदालत ने इसे ख़ारिज कर दिया.
नई दिल्ली: मुंबई की विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को 22 जुलाई तक एनआईए की हिरासत में भेज दिया है.
इससे पहले अदालत ने नवलखा की जमानत याचिका भी खारिज कर दी थी.
नवलखा ने यह दावा करते हुए अपराध दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 के तहत वैधानिक जमानत मांगी थी कि वह 90 से अधिक दिनों से हिरासत में हैं लेकिन उनके खिलाफ आरोपपत्र दायर नहीं किया गया है.
A special judge for NIA at Bombay has remanded Gautam Navlakha to Police Custody till 22.07.2020.#BhimaKoregaon#NIA
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) July 14, 2020
उन्होंने इस साल 14 अप्रैल को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के सामने आत्मसमर्पण किया था. वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में हैं.
गौतम नवलखा 2018 में 29 अगस्त से एक अक्टूबर तक घर में नजरबंद थे. कार्यकर्ता के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को नजरबंद रखे जाने को भी जांच एजेंसियों की हिरासत की अवधि मानना चाहिए.
दूसरा, जांच एजेंसी ने 90 दिनों की निर्धारित अवधि में आरोपपत्र दायर भी नहीं किया है. एनआईए की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि नवलखा की यह अर्जी विचार योग्य नहीं है.
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने नजरबंदी का आदेश दिया था और यह अवधि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत हिरासत नहीं होगी.
एनआईए की बातों से सहमत होते हुए विशेष न्यायाधीश दिनेश कोठालिकर ने यह दलील खारिज कर दी कि नजरबंदी को हिरासत अवधि माना जाए.
अदालत ने कहा कि नवलखा नजरबंदी के दौरान जांच एजेंसियों की हिरासत में कभी नहीं रहे. नवलखा को अदालत ने दस दिनों के लिए एनआईए की हिरासत में भेजा था.
जांच एजेंसी ने यह कहते हुए हिरासत की मांग की थी कि उसे इस मामले में साजिश का खुलासा करने के लिए उनसे पूछताछ करने की जरूरत है.
अदालत ने नवलखा और अन्य आरोपी दलित अधिकार कार्यकर्ता डॉ. आनंद तेलतुम्बड़े के खिलाफ आरोपपत्र दायर करने के लिए 90 दिनों को बढ़कर 180 दिन करने की एनआईए की मांग मान ली.
पुलिस का आरोप है कि नवलखा ने 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एलगार परिषद में भड़काऊ भाषण दिया था, जिसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी.
इस साल जनवरी में यह मामला पुणे पुलिस से लेकर एनआईए को सौंपा गया था.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से मुंबई ट्रांसफर करने पर एनआईए को रिकॉर्ड पेश करने को लेकर दिए गए दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि नवलखा की जमानत याचिका पर सुनवाई करना दिल्ली हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है.
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा था कि एनआईए ने गौतम नवलखा की जमानत अर्जी लंबित रहने के दौरान उन्हें दिल्ली की अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर ले जाने के लिए बेवजह जल्दबाजी में काम किया था.
नवलखा और तेलतुम्बड़े के अलावा 28 अगस्त 2018 को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था.
महाराष्ट्र पुलिस का आरोप है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के कथितमाओवादियों से संबंध हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)