सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और कार्यकर्ता एवं वकील प्रशांत भूषण की तरफ से दायर याचिका के संबंध में अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा है कि इस मामले को जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ के सामने क्यों सूचीबद्ध नहीं किया गया?
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और कार्यकर्ता एवं वकील प्रशांत भूषण की तरफ से दायर उस याचिका को सूचीबद्ध करने को लेकर संबंधित अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा है, जिसमें उन्होंने आपराधिक अवमानना से जुड़े एक कानूनी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.
उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर बीते शनिवार सुबह में लगाई गई कॉज लिस्ट के मुताबिक, याचिका पर दस अगस्त को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई होनी थी, हालांकि अब इसे लिस्ट से ‘डिलीट’ कर दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने बताया कि याचिका को स्थापित परंपरा के मुताबिक इस तरह के मामलों पर सुनवाई करने वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए था.
जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ ने भूषण के खिलाफ दो आपराधिक अवमानना मामलों पर चार और पांच अगस्त को सुनवाई की थी और इस पर अपने फैसलों को सुरक्षित कर लिया है.
इसमें से एक मामला प्रशांत भूषण के उन दो ट्वीट्स से जुड़ा हुआ है, जो उन्होंने 27 और 29 जून को ट्वीट किए थे. वहीं दूसरा मामला साल 2009 का है, जिसमें आरोप लगाया है कि तहलका मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने अदालत का अपमान किया था.
पिछले महीने 22 जुलाई को कोर्ट ने ट्वीट वाले मामले में भूषण को नोटिस जारी किया और पांच अगस्त सुनवाई की तारीख तय की. वहीं 24 जुलाई को कोर्ट ने 2009 वाले मामले के लिए सुनवाई की तारीख चार अगस्त तय की.
दोनों अवमानना मामलों की सुनवाई की तारीख तय किए जाने के बाद भूषण ने एक याचिका दायर कर उस नोटिस को चुनौती दी जो कि उनके ट्वीट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की गई थी.
यह मामला जस्टिस मिश्रा की अगुवाई वाली उसी पीठ के सामने सूचीबद्ध किया गया जो कि अवमानना मामले को सुन रही थी और पांच अगस्त को पीठ ने भूषण की इस याचिका को खारिज भी कर दिया था.
बाद में राम, शौरी और भूषण ने एक और याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(सी)(आई) को चुनौती दी. यह मामला 10 अगस्त को सुनवाई के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस जोसेफ की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था.
एक विश्वस्त सूत्र ने बताया, ‘परंपरा और प्रक्रिया के मुताबिक इस मामले को ऐसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए था, जो इस तरह के मामलों की पहले से सुनवाई कर रही हो, लेकिन इसे परंपरा और प्रक्रिया की अनदेखी कर सूचीबद्ध किया गया है. इस बारे में संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा गया है.’
बहरहाल, कुछ समय बाद मामले को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट की कॉज लिस्ट से हटा दिया गया.
राम, शौरी और भूषण ने अपनी याचिका में ‘अदालत की निंदा’ के लिए आपराधिक अवमानना से जुड़े एक कानूनी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है और कहा है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)