अप्रैल में बांद्रा स्टेशन पर लॉकडाउन में ट्रेन बहाल होने की अफवाह पर कामगारों की भीड़ जुट गई थी. इस बारे में एक टीवी पत्रकार पर कथित ग़लत जानकारी देने का मामला दर्ज किया गया था. पुलिस ने इस बारे में अपनी क्लोज़र रिपोर्ट में कहा है कि पत्रकार की रिपोर्ट ग़लत नहीं थी, पर देखने वालों ने इसे ग़लत संदर्भ में लिया.
महाराष्ट्र की मुंबई पुलिस ने न्यूज चैनल एबीपी माझा के पत्रकार के खिलाफ दर्ज मामला लगभग तीन महीने बाद बंद कर दिया है.
पत्रकार के खिलाफ उस खबर को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें कथित तौर पर कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान ट्रेन सेवाएं बहाल होंगी, जिसके कारण 14 अप्रैल को बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर प्रवासी मजदूरों की भारी भीड़ जमा हो गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एबीपी माझा के पत्रकार राहुल कुलकर्णी (43) के खिलाफ बांद्रा स्टेशन से प्रवासी मजदूरों के लिए रवाना हो रही ट्रेन के बारे में कथित तौर पर गलत जानकारी देने के लिए मामला दर्ज किया गया था.
बताया गया था कि इन मजदूरों को लगा कि बांद्रा स्टेशन से उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए ट्रेन रवाना होने वाली है.
पुलिस ने इसके बाद कुलकर्णी को हिरासत में लेते हुए कहा था कि उन्होंने रिपोर्ट में कहा था कि सरकार ट्रेनों की बहाली पर विचार कर रही है, जिससे लोगों में संदेह पैदा हुआ.
पुलिस ने इस मामले में 21 जुलाई को बांद्रा अदालत में क्लोजर रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि कुलकर्णी की रिपोर्ट गलत नहीं थी लेकिन इसे देखने वाले लोगों ने इसे गलत संदर्भ में लिया.
क्लोजर रिपोर्ट के मुताबिक, ‘जब कुलकर्णी को एक दिन के लिए पुलिस हिरासत में रखा गया, तब उन्होंने पुलिस को बताया कि उनकी न्यूज रिपोर्ट रेलवे की प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन शुरू करने की योजना को लेकर आंतरिक सूचना पर आधारित थी.’
क्लोजर रिपोर्ट में कहा गया कि कुलकर्णी ने अपनी रिपोर्ट में कहीं भी बांद्रा स्टेशन का जिक्र तक नहीं किया था.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘उनकी न्यूज रिपोर्ट में रेलवे स्टेशनों का नाम शामिल नहीं था. यह बताया गया था कि प्रवासियों के लिए ट्रेनों की व्यवस्था करने पर विचार किया जा रहा है.’
क्लोजर रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि प्रवासी मजदूरों के बीच एक संदेश बहुत वायरल हुआ, जिसमें कहा गया कि ‘बांद्रा रेलवे स्टेशन जाना है जल्दी चलो, न्यूज चैनल पर भी सरकार ने गांव भेजने के लिए ट्रेन चालू कर दी है,’ लेकिन कुलकर्णी की रिपोर्ट में इसका भी जिक्र नहीं था.
क्लोजर रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘लोगों ने विश्वास किया कि उनके गृहनगरों तक ले जाने के लिए लंबी दूरी की ये ट्रेन उपनगरीय लाइन स्टेशन से रवाना नहीं होंगी, बल्कि बांद्रा स्टेशन से चलेंगी इसलिए वे बांद्रा टर्मिनस के बाहर इकट्ठा हुए.’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे लगे कि कुलकर्णी ने गलत रिपोर्टिंग की, बल्कि इसे लोगों द्वारा गलत संदर्भ में लिया गया.
इसके बाद पुलिस ने सिफारिश की कि मामले को बंद कर देना चाहिए और इसे ‘सी समरी’ के तौर पर वर्गीकृत किया जाना चाहिए, जिसका अर्थ होता है कि गलती से मामला दर्ज हुआ.
इस मामले पर कुलकर्णी ने कहा, ‘अदालत ने पुलिस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है और मुझे राहत मिली है. मामला दर्ज होने के बाद मैंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का दरवाजा खटखटाया था. मेरे माता-पिता ने भी वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया था और पुलिस के इस व्यवहार को लेकर लिखित शिकायत दर्ज कराई थी.’
उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ही खतरनाक ट्रेंड है, जहां सरकार अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलना चाहती है जबकि इसे बचाकर रखना चाहिए.’
वहीं, एबीपी मांझा के संपादक राजीव खांडेकर ने कहा, ‘सत्यमेव जयते, सत्य की जीत हुई.’
इसके अलावा मुंबई पुलिस ने उसी समय बांद्रा उपनगर में प्रवासी कामगारों की भीड़ जुटने के मामले में दो अन्य एफआईआर दर्ज की थी.
इनमें से एक मुंबई के निवासी विनय दुबे के खिलाफ है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने बांद्रा रेलवे स्टेशन पर मजदूरों के इकट्ठा होने के लिए सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड किया था.
जबकि एक अन्य एफआईआर प्रवासी शख्स के खिलाफ दर्ज की गई थी, जिसने कथित तौर पर यह अफवाह फैलाई थी. पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले में गिरफ्तार विनय दुबे अफवाह फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं.