‘बेटी को खोए हुए तीन साल हो गए लेकिन अब भी अगस्त आते ही डर लगने लगता है’

विशेष: साल 2017 में 10 से 11 अगस्त के बीच गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से क़रीब 34 बच्चों की मौत हुई थी. जान गंवाने वाले बच्चों में शहर के जाहिद की पांच साल की बेटी ख़ुशी भी थी.

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विशेष: साल 2017 में 10 से 11 अगस्त के बीच गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से क़रीब 34 बच्चों की मौत हुई थी. जान गंवाने वाले बच्चों में शहर के जाहिद की पांच साल की बेटी ख़ुशी भी थी.

Gorakhpur Oxygen tragedy Jahid Photo Manoj Singh
ख़ुशी की तस्वीर के साथ जाहिद. (फोटो: मनोज सिंह)

‘ऐसा तीन सालों से हो रहा है. जब अगस्त का महीना आता है, मेरी पत्नी रेहाना की घबराहट व बेचैनी बढ़ जाती है. उन्हें अगस्त महीने से डर लगता है क्योंकि इसी महीने की 11 तारीख को हमारी बेटी खुशी बीआरडी मेडिकिल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से गुजर गई. 11 अगस्त को खुशी को गुजरे तीन साल हो जाएंगे, लेकिन उसको खोने का जख्म अभी भी ताजा है. ’

जाहिद यह कहते हुए भावुक हो गए. गोरखपुर शहर के बिछिया में रहने वाले जाहिद की पांच वर्ष की बेटी खुशी की 11 अगस्त की शाम बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई थी.

यह वही समय था जब मेडिकल कॉलेज में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति ठप हो गई थी. जम्बो सिलेंडर से काम चलाया जा रहा था और इंसेफेलाइटिस वार्ड, नियोनेटल वार्ड में ऑक्सीजन संकट खड़ा हो गया.

खुशी इंसेफेलाइटिस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) से बीमार होकर इंसेफेलाइटिस वार्ड में भर्ती हुई थी.

10 अगस्त 2017 की रात साढ़े सात बजे जब अस्पताल में लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई रुक गई और जम्बो सिलेंडर से ऑक्सीजन की आपूर्ति बहाल करने का प्रयास किया जा रहा था, उस समय मेडिकल कॉलेज से करीब 15 किलोमीटर दूर गोरखपुर शहर के बिछिया मोहल्ले में रहने वाले मोहम्मद जाहिद की बेटी खुशी को तेज बुखार हुआ.

दो दिन पहले उसे उल्टी हुई थी. उसने मोहद्दीपुर में एक निजी चिकित्सक को दिखाया था और बेटी ठीक हो गई थी. तेज बुखार होने पर जाहिद खुशी को लेकर फिर उसी डाॅक्टर के पास गए.

चिकित्सक ने उसे बेतियाहाता में एक निजी अस्पताल में भेज दिया. वहां खुशी को दो घंटे रखा गया. रात दस बजे अस्पताल से कहा गया कि बच्ची को मेडिकल कॉलेज ले जाएं.

जाहिद रात 11 बजे मेडिकल कॉलेज पहुंचे. डाॅक्टरों ने उन्हें देखा और वार्ड नंबर 12 में भर्ती कर दिया. इस वार्ड में इंसेफेलाइटिस बीमारी से ग्रस्त बच्चों को रखा जाता है.

जाहिद उस पल को याद करते हुए आज भी दहल जाते हैं. वे बताते हैं कि खुशी को तेज बुखार तो था ही, उसे सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. सुबह छह बजे बच्ची को ऑक्सीजन मिलना बंद हो गया.

उन्होंने बताया कि एक नर्स ने उन्हें अम्बू बैग दिया और बताया कि इसका कैसे इस्तेमाल किया जाता है. उसके बाद से वे, उनकी पत्नी रेहाना और रेहाना के भाई शाम पांच बजे तक अम्बू बैग से खुशी को ऑक्सीजन देते रहे लेकिन उसकी हालत बिगड़ती गई.

शाम छह बजे के करीब उसका शरीर नीला पड़ने लगा, शरीर में कोई हरकत नहीं थी. जाहिद अपनी बेटी खो चुके थे, लेकिन डाॅक्टर कह रहे थे कि इलाज चल रहा है. रात दस बजे बताया गया कि बेटी की मौत हो गई.

बेटी की मौत के बाद उनसे बात करने के लिए घर पर मीडियाकर्मियों का कई दिन तक तांता लगा रहा. यह सिलसिला रुक-रुककर एक वर्ष तक चलता रहा.

देश-विदेश के मीडियाकर्मियों ने उनसे बेटी की मौत और ऑक्सीजन हादसे से संबंध के बारे में बातचीत की.

जाहिद कहते हैं कि वह मीडिया से अपनी व्यथा को बार-बार सुनाते तंग आ गए. उन्होंने बताया, ‘रेहाना गहरे डिप्रेशन में चली गई. मोहल्ले के लोग अजीब नजरों से देखने लगे थे कि आखिर उनके यहां मीडिया वाले क्यों इतना आते हैं. कई मीडियाकर्मियों को तो बात करने से साफ मना कर दिया.’

जाहिद का बहुत साफ मानना था कि उनकी बेटी की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई. उन्होंने मीडियाकर्मियों को भी स्पष्ट रूप से यही कहा.

आज भी उनका विश्वास है कि अगर उस रोज ऑक्सीजन की कमी नहीं हुई होती तो खुशी उनकी जिंदगी से कभी नहीं जाती.

जाहिद शहर के विजय चौराहे के पास एक हार्डवेयर की दुकान पर काम किया करते थे. लाॅकडाउन में यह काम छूट गया है. अब वह प्लंबर का काम करने लगे हैं.

खुशी के गुजरने के करीब 22 महीने बाद इस परिवार में दूसरे रूप में ‘खुशी’ का आगमन हुआ.  रेहाना ने मई 2019 को बेटे आहिद को जन्म दिया. यह संयोग ही है कि बेटे का जन्म उसी तारीख को हुआ जिस तारीख को खुशी पैदा हुई थी.

जाहिद कहते हैं, ‘रेहाना जब उम्मीद से हुई तो मुझे यही लगा कि ऊपरवाले की दुआ से खुशी फिर से हमारे घर में आ रही है. मुझे पक्का विश्वास था कि बेटी ही जन्म लेगी. बेटे का जन्म हुआ तो मान लिया कि खुशी दूसरे रूप में हमारे घर लौट आई है.’

एक संयोग यह भी है कि बेटे का जन्म बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ही हुआ, जहां उन्होंने बेटी को खोया था. जाहिद ने बताया कि वे किसी भी सूरत में पत्नी की डिलीवरी बीआरडी मेडिकल कॉलेज में नहीं कराना चाहते थे.

उन्होंने बताया कि वे रेहाना को जिला अस्पताल ले गए. वहां से डॉक्टरों ने मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया पर पिछले कटु अनुभवों के चलते उन्होंने मना कर दिया। समझाने-बुझाने पर अस्पताल गए तो सही, लेकिन बेटे के जन्म से लेकर उसके घर आने तक आशंकित ही रहे.

जाहिद का बड़ा बेटा वाहिद आठवीं कक्षा में पढ़ता है. घर में नए सदस्य के आने से घर में स्थायी रूप से पसरा अवसाद कुछ छंटा है. रेहाना अब थोड़ी खुश दिखती हैं.

जाहिद खुशी पर जान छिड़कते थे, कहते हैं, ‘उसे कभी नहीं भुला पाउंगा. उसके लिए दुकान से जल्दी घर भाग आता था. वो जिद करके दुकान ले जाती और चॉकलेट खरीदती. फिर उसे बाइक पर बिठाकर घुमाने ले जाता.’

जाहिद ने अपनी बाइक के आगे खुशी का नाम लिखवाया था. उसकी मौत के बाद मन उचाट हो गया. दुकान जाना बंद कर दिया, बाइक को छुआ तक नहीं।

उदास स्वर में वे वह कहते हैं, ‘जब भी बाइक देखता उस पर बेटी का नाम दिखता और आंसू निकलने लगते. बाइक को ढंक कर खड़ा कर दिया था ताकि उस पर लिखवाया नाम न दिख सकें.’

उन्होंने बताया कि अब जब बेटे का जन्म हुआ है तो फिर बाइक चलाना शुरू कर दिया है. आज भी उसके आगे ‘खुशी’ लिखा हुआ है.

जाहिद कहते हैं, ‘जख्म भरता कहां है! आहिद के आने ने जिंदगी के दुख को कम जरूर किया है. लेकिन अगस्त का महीना आते ही रेहाना को बेचैनी, घबराहट, अनजाना डर सताने लगता है, यह शायद ही कभी खत्म हो.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)