असम समझौते के खंड छह को लागू करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित 14 सदस्यीय समिति के चार सदस्यों ने फरवरी में राज्य सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी थी.
असम के मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बुधवार को कहा कि असम समझौते के खंड 6 के कार्यान्वयन पर 14 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इसकी सिफारिशें इस साल फरवरी से दो साल के भीतर लागू की जानी चाहिए.
बता दें कि इस साल फरवरी में 14 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट असम सरकार को सौंपी गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, शर्मा ने यह भी कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित समिति स्वयं ‘असमिया लोगों’ की परिभाषा निर्धारित नहीं कर सकती है और यह सिफारिश लागू होने से पहले विधानसभा द्वारा स्वीकार की जानी चाहिए.
असम के वरिष्ठ मंत्री ने मंगलवार को समिति के चार सदस्यों द्वारा रिपोर्ट के स्वतंत्र रिलीज की आलोचना की.
बता दें कि ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के तीन सदस्यों और समिति के एक अन्य सदस्य और अरुणाचल प्रदेश के महाधिवक्ता निलय दत्ता ने रिपोर्ट मंगलवार को मीडिया को दी थी.
बुधवार को शर्मा ने पत्रकारों से कहा, ‘समिति ने अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिए दो साल का समय दिया है. उन्होंने रिपोर्ट में इसे स्पष्ट रूप से लिखा है. रिपोर्ट का खुलासा करने से मामले में केवल जटिलताएं बढ़ी हैं.’
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार समझौते के खंड 6 के प्रावधानों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है.
इसमें कहा गया, ‘संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा, जैसा कि उचित हो, असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रदान किया जाएगा.’
हालांकि समझौते में ‘असमिया लोगों’ को परिभाषित नहीं किए जाने के कारण समिति ने आरक्षण की सिफारिश करने से पहले एक परिभाषा निर्धारित करने की मांग की.
समिति ने सिफारिश की है कि 1951 को कट-ऑफ वर्ष मानते हुए ‘असमिया लोगों’ का निर्धारण किया जाना चाहिए.
पूर्वोत्तर के प्रमुख भाजपा नेता शर्मा ने कहा कि यह रिपोर्ट इस बारे में चुप है कि असम में कोई व्यक्ति 1951 से पहले रह रहा है इसका निर्धारण कैसे होगा.
उन्होंने सवाल किया कि क्या 1951 के कट-ऑफ के लिए एक नया राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) होगा या हम कैसे तय करेंगे कोई व्यक्ति 1951 के पहले ये असम में रह रहा है? समिति इस पर चुप है.
उन्होंने कहा, ‘इसका निर्धारण करने के लिए क्या हम एनआरसी देखेंगे या जमीन के कागज? बहुत से स्वदेशी लोगों के पास 1951 से पहले के जमीन के कागजात नहीं हो सकते हैं.’
उन्होंने कहा कि ‘असमिया लोगों’ को परिभाषित करने का अधिकार राज्य विधानसभा के पास है. उन्होंने कहा, ‘विधानसभा द्वारा परिभाषा की पुष्टि करने तक केंद्र के पास इस मामले में करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. जब विधानसभा चर्चा के बाद परिभाषा की पुष्टि करती है तो केंद्र की भूमिका होगी.’
विधानसभा में रिपोर्ट पेश किए जाने के संबंध में पूछे जाने पर शर्मा ने कहा, ‘हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या हमारे कार्यकाल के अंतिम समय में हम असमी लोगों के लिए एक परिभाषा निर्धारित करने के लिए सक्षम हैं. एक नई असम विधानसभा एक परिभाषा तय करती है तो बेहतर होगा. हमारे पास अभी छह महीने और हैं.’
लेकिन उन्होंने कहा, ‘यह विधानसभा में चर्चा के लिए आएगा.’ उन्होंने कहा, ‘अगर विधानसभा को लगता है कि हमारे कार्यकाल के अंत में भी हमें एक परिभाषा की पुष्टि करनी चाहिए… तो हम इसका विरोध नहीं कर रहे हैं.’
इसमें राज्य से संसद की सीटों में 80-100 प्रतिशत आरक्षण का सुझाव तथा असम में उच्च सदन बनाने की भी सिफारिश की गई है.
बता दें कि मंगलवार को मीडिया को रिपोर्ट जारी करते हुए समिति के चारों सदस्यों ने कहा था कि वे इसे केवल इसलिए जारी कर रहे हैं क्योंकि ‘सरकार सिर्फ हाथ पर हाथ रखकर बैठी है.’
आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने कहा, ‘हमें रिपोर्ट सौंपे पांच महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है. लोग हमसे रोज पूछ रहे हैं, उसका क्या हुआ. हमने आखिरकार इसे जारी करने का फैसला किया, क्योंकि लोगों को जानने का अधिकार है.’
पिछले साल दिसंबर में पूरे असम नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे, तब सर्बानंद सोनोवाल की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने इन प्रदर्शनों को रोकने के उद्देश्य और ‘स्वदेशी’ लोगों के हितों की रक्षा के एक उपाय तौर पर धारा 6 को जल्द से जल्द लागू करने का वादा किया था.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले साल जनवरी में सेवानिवृत्त केंद्रीय सचिव एमपी बेजबरुआ की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था, लेकिन नौ सदस्यों में से छह ने इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था.
उसके बाद 16 जुलाई, 2019 को समिति का पुनर्गठन किया गया, जिसमें जस्टिस (सेवानिवृत्त) शर्मा अध्यक्ष बनाए गए और 14 अन्य सदस्य रखे गए.