एनआईए ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रेम कुमार विजयन और राकेश रंजन को पूछताछ के लिए बुलाया है. इससे पहले 28 जुलाई को एजेंसी ने इस मामले में डीयू के प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी को गिरफ़्तार किया था.
नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव मामले के संबंध में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग के एक प्रोफेसर प्रेम कुमार विजयन को समन जारी किया.
वह एक महीने से भी कम समय में मामले में पूछताछ किए जाने वाले विश्वविद्यालय के दूसरे प्रोफेसर हैं.
विजयन ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘मुझे शुक्रवार सुबह दिल्ली मुख्यालय में बुलाया गया है. मुझे समन नोटिस मिला है.’
जांच एजेंसी के नोटिस के मुताबिक विजयन को नई दिल्ली में पुलिस उपाधीक्षक, एनआईए के समक्ष पेश किया जाएगा.
Posted @withregram • @dalitcamera #NIA Now PK Vijayan, Delhi University professor summoned by NIA in connection with Bhima Koregaon case.
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— The Real Anand Teltumbde (@TeltumbdeA) August 13, 2020
एजेंसी द्वारा इसके अलावा डीयू के शिक्षक राकेश रंजन को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया है. वे श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (एसआरसीसी) के छात्र रहे हैं.
इन समनों के जारी होने के कुछ समय बाद ही ढेरों डीयू छात्रों और फैकल्टी सदस्यों ने एनआईए की आलोचना करते हुए ऑनलाइन कैंपेन शुरू किए हैं.
इससे पहले 28 जुलाई को एनआईए ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमटी हेनी बाबू को गिरफ्तार किया था. वे विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में भी पढ़ाते हैं और उन्हें जाति-विरोधी कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है.
हेनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना ने तब द वायर को बताया था कि पूछताछ के दौरान बाबू पर अपने सहयोगी को फंसाने के लिए दबाव डाला गया था.
रोवेना ने कहा था, ‘अधिकारी उनसे (बाबू) लगातार पूछ रहे थे कि क्या उन्हें अपने छात्रों, साथ काम करने वालों या और किसी पर शक है. वे (एनआईए) चाहते थे कि इस मामले में और लोगों को फंसाया जाए. एनआईए का आरोप है कि बाबू भीमा कोरेगांव मामले में सह साजिशकर्ता हैं और माओवादियों की विचारधारा और गतिविधियों का प्रचार कर रहे थे.’
दिल्ली पुलिस ने बीते बुधवार को बाबू की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के आयोजन के लिए छह छात्रों पर मामला दर्ज किया.
बाबू के कई छात्रों और नागरिक अधिकार समूहों ने उनकी गिरफ्तारी की आलोचना की है और इसे बुद्धिजीवियों की आवाज को दबाने की कोशिश बताया है.
हेनी बाबू जाति व्यवस्था के विरोध में मुखर रूप से अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं और जीएन साईबाबा डिफेंस कमेटी के सक्रिय सदस्य भी हैं. बाबू की तरह ही विजयन ने भी साईबाबा के समर्थन में कई लेख लिखे हैं.
मालूम हो कि डीयू के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को माओवादी आंदोलन से कथित तौर पर जुड़े होने का दोषी पाया गया था. शारीरिक रूप से 90 फीसदी अक्षम साईबाबा इस समय नागपुर केंद्रीय जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं.
पिछले साल 10 सितंबर 2019 को पुणे पुलिस ने हेनी बाबू के घर पर भी छापा मारा था और उनके इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे कि लैपटॉप और उनका मोबाइल फोन वगैरह जब्त किए थे.
पुलिस ने बिना वॉरंट के छापा मारा था और उनके सोशल मीडिया अकाउंट और ईमेल इस्तेमाल करने से भी रोका गया था. इसके बाद इस साल जुलाई महीने में एनआईए ने बाबू को पूछताछ के लिए अपने मुंबई ऑफिस में बुलाया था.
पिछले महीने की 28 जुलाई को हेनी बाबू को गिरफ्तार करने के बाद एनआईए ने उनकी पत्नी डॉ. जेनी रोवेना के घर पर दो अगस्त 2020 को छापा मारा था.
रोवेना दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. हेनी बाबू एमटी भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार होने वाले बारहवें शख्स हैं.
मालूम हो कि पिछले कुछ सालों में कई अधिकार कार्यकर्ताओं, अकादमिक जगत के लोगों, वकीलों, पत्रकारों आदि के घरों पर पुलिस द्वारा अचानक छापा मारा गया है और उन्हें ‘अर्बन नक्सल’ करार देकर गिरफ्तार किया गया है.
साल 2018 से पुलिस ने कम से कम 11 ऐसे कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था और उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने से लेकर माओवादियों के साथ संबंध रखने जैसे आरोप लगाए गए हैं.
शुरू में इन मामलों की जांच महाराष्ट्र की पुणे पुलिस कर रही थी. लेकिन पिछले साल दिसंबर में राज्य में जैसे ही कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना की सरकार आई, इस मामले को आनन-फानन में एनआईए को दे दिया गया. इसे लेकर विपक्षी दलों ने आलोचना भी की थी.
गौरतलब है कि पुणे के ऐतिहासिक शनिवार वाड़ा में 31 दिसंबर 2017 को कोरेगांव भीमा युद्ध की 200वीं वर्षगांठ से पहले एल्गार सम्मेलन आयोजित किया गया था.
पुलिस के मुताबिक इस कार्यक्रम के दौरान दिए गए भाषणों की वजह से जिले के कोरेगांव-भीमा गांव के आसपास एक जनवरी 2018 को जातीय हिंसा भड़की थी.
एनआईए ने एफआईआर में 23 में से 11 आरोपियों को नामजद किया है, जिनमें कार्यकर्ता सुधीर धावले, शोमा सेन, महेश राउत, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्विस, आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा शामिल हैं.
तेलतुम्बड़े और नवलखा को छोड़कर अन्य को पुणे पुलिस ने हिंसा के संबंध में जून और अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया था.