नगालैंड के राज्यपाल और शांति वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे आरएन रवि ने स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने संदेश में प्रदेश सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में पूरा देश आगे बढ़ रहा है लेकिन ‘निजी हितों’ की वजह से नगालैंड पीछे छूट गया है.
नगा बागी संगठनों के अगुआ नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुईवाह (एनएससीएन-आईएम) और केंद्र सरकार के बीच चल रही शांति वार्ता की प्रक्रिया पर संकट के बादल गहरा गए हैं.
नगालैंड के राज्यपाल और इस वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे आरएन रवि ने स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने संदेश में बागी संगठनों को आड़े हाथ लेते हुए राज्य सरकार को फटकार लगाई है.
रवि ने अपने भाषण में नगालैंड को ‘विकास के सभी मानकों पर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य’ बताया.
साथ ही एनएससीएन-आईएम की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘अविश्वसनीय रूप से निजी हितों के लिए काम करने वाले नेटवर्क ने… शांति के साधनों का दुरूपयोग किया और उन्हें जनता तक नहीं पहुंचने दिया. यहां बड़े पैमाने पर अशांति है और नगालैंड के लोगों की उम्मीदों और सपनों को कुचला जा रहा है. यह असहनीय और अस्वीकार्य है.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इससे पहले राज्य के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में नगा मुद्दे के जल्द एक सम्मानजनक समाधान की जरूरत और इसमें राज्य सरकार की भूमिका के बारे में बात की थी.
रियो ने कहा, ‘दशकों से नगाओं ने असल शांति चाही है और वे चाहते हैं कि इसके लिए जल्द ही सम्मानजनक और स्वीकार्य समाधान लाया जाए जिससे हर तरह की प्रगति और विकास का रास्ता प्रशस्त हो सके.’
उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए उनकी सरकार समाज के सभी वर्गों से सलाह-मशविरा कर रही है.
राज्यपाल आरएन रवि ने 15 अगस्त के अपने संदेश में यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में पूरा देश आगे बढ़ रहा है लेकिन ‘निजी हितों’ की वजह से नगालैंड पीछे छूट गया है.
उन्होंने कहा कि संसाधनों की प्रचुरता और पिछले कुछ दशकों की शांति के बावजूद ऐसा हुआ है.
गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है.
सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई. नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं.
18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए गए.
एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुलिंगलेंग मुईवाह और वार्ताकार आरएन रवि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में तीन अगस्त, 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
तीन साल पहले केंद्र ने एक समझौते (डीड ऑफ कमिटमेंट) पर हस्ताक्षर कर आधिकारिक रूप से छह नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) के साथ बातचीत का दायरा बढ़ाया था.
अक्टूबर 2019 में आधिकारिक तौर पर इन समूहों के साथ हो रही शांति वार्ता खत्म हो चुकी है, लेकिन नगालैंड के दशकों पुराने सियासी संकट के लिए हुए अंतिम समझौते का आना अभी बाकी है.
बता दें कि एनएससीएन-आईएम नेतृत्व इस समय दिल्ली में है और पिछले कुछ दिनों में आधिकारिक स्तर की वार्ता हुई है.
बीते हफ्ते उन्होंने आरएन रवि पर पर नगा राजनीतिक मुद्दों के अंतिम समाधान में बाधक बनने का आरोप लगाते हुए शांति वार्ता आगे बढ़ाने के लिए नए वार्ताकार को नियुक्त किए जाने की मांग की थी.
संगठन की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि नगा मुद्दों पर रवि के तीखे हमलों की बदौलत शांति समझौते की प्रक्रिया तनावपूर्ण स्थिति में पहुंच गई है.
मालूम हो कि इस शांति प्रक्रिया में भारत सरकार के वार्ताकार और पूर्व आईबी अधिकारी आरएन रवि को बीते साल जुलाई में नगालैंड का राज्यपाल बनाया गया था.
एनएससीएन-आईएम का कहना है कि उनके इस पद पर आने के बाद किए गए फैसलों से उनको लेकर ‘भरोसे में भारी कमी’ हुई है.
बीते कुछ समय में आरएन रवि को लेकर एनएससीएन-आईएम ने अपनी असहजता कई बार जाहिर की है.
ज्ञात हो कि बीते जून में राज्यपाल आरएन रवि ने बागी नगा संगठनों को ‘हथियारबंद’ और ‘अंडरग्राउंड समूह’ कहते हुए मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो को एक पत्र लिखकर राज्य की कानून-व्यवस्था पर चिंता जाहिर की थी और दावा किया था कि ये समूह समानांतर सरकार चला रहे हैं.
तीन अगस्त को फ्रेमवर्क समझौते पर दस्तखत होने के पांच साल पूरे होने के बाद संगठन द्वारा एक बयान जारी किया गया था, जिसमें उन्होंने रवि के इस तरह के शब्द इस्तेमाल करने पर नाराजगी जाहिर की थी.
इस बयान में एनएससीएन-आईएम ने ‘ऐतिहासिक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट साइन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व की सराहना की थी, लेकिन एग्रीमेंट को संभालने के ‘भ्रामक तरीके’ के लिए आरएन रवि की तीखी आलोचना भी की गई थी.
इसमें कहा गया था कि ‘वे धोखेबाजी से वार्ताकार के दायरे से बाहर जाकर नगाओं को विभाजित करने की कोशिश में लिप्त होकर इस समझौते की नींव ही कमजोर कर रहे हैं.’
उन्होंने आरोप लगाया कि रवि की गलत हरकतों ने शांति वार्ता के लिए पक्षों के बीच तनावपूर्ण स्थिति पैदा कर दी और स्थिति अब एक कठिन बिंदु तक पहुंच रही है.
इसके बाद एक बयान में संगठन के प्रमुख टी. मुईवाह ने कहा कि अलग झंडे, संविधान और ग्रेटर नगालिम के बिना कोई समाधान नहीं निकल सकता.
मुईवाह ने बीते शुक्रवार को कहा कि सात दशकों पुराने हिंसक आंदोलन का सम्मानजनक समाधान बिना झंडे और संविधान के मुमकिन नहीं है.
मुईवाह ने कहा, ‘नगा लोग भारत के साथ संप्रभु अधिकारों को साझा करते हुए सह-अस्तित्व में रहेंगे, जैसा कि फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में स्वीकृत और परिभाषित किया गया, लेकिन वो भारत के साथ विलय नहीं करेंगे.’
2015 में केंद्र सरकार के साथ हुए समझौता मसौदे के बाद यह पहली बार है जब मुईवाह ने यह कहा है कि अलग झंडे और संविधान को लेकर वे कोई समझौता नहीं करेंगे.
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एग्रीमेंट में सभी नगा इलाकों को एक साथ लाकर ‘ग्रेटर नगालिम’ बनाने की बात भी हुई है.
बता दें कि ग्रेटर नगालिम में असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के भी क्षेत्र आते हैं. इन राज्यों में इस प्रस्ताव का भारी विरोध होता रहा है.
बताया गया है कि केंद्र सरकार पहले ही संगठन की इन मांगों पर असहमति जता चुकी है, ऐसे में इस पूरी शांति प्रक्रिया के बेपटरी होने के आसार बनते दिख रहे हैं.