बीते 14 अगस्त को अवमानना के दोषी ठहराए गए प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने बयान में कहा कि उन्हें दुख है कि जिस अदालत की महिमा क़ायम रखने के लिए वे तीन दशकों से काम करते आ रहे हैं, उन्हें उसी की अवमानना का दोषी माना गया है. कोर्ट ने भूषण को अपने बयान पर 2-3 दिन पुनर्विचार कर जवाब देने को कहा है.
नई दिल्ली: वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को उनके महज दो ट्वीट के चलते अदालत की अवमानना का दोषी करार दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को मामले में सजा निर्धारित करने पर जोरदार बहस हुई.
भूषण ने अपना बयान पेश करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सहा कि वे माफी नहीं मागेंगे और न ही उनके प्रति किसी भी तरह की उदारता बरतने की अपील करते हैं. उन्होंने कहा कि कोर्ट जो भी सजा उन्हें देगा, उसे वे स्वीकार करेंगे.
वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रशांत भूषण का साथ दिया और कोर्ट से अपील की कि उन्हें कोई सजा न दी जाए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि जब तक भूषण अपना बयान नहीं बदलते हैं, तब तक कोर्ट उन्हें सजा देने से इनकार नहीं कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रशांत भूषण को उनके बयान पर पुनर्विचार करने के लिए 2-3 दिन का समय दिया है. हालांकि वरिष्ठ वकील ने कहा कि उन्होंने बहुत सोच-समझकर अपना बयान पेश किया है और इस तरह बेवजह समय देना कोर्ट के समय को बर्बाद करना होना.
उन्होंने कहा कि उनके बयान में परिवर्तन होने की संभावना नहीं है. पूरी सुनवाई के दौरान पीठ इस बात पर जोर देती रही कि यदि भूषण गलती मान लेते हैं या उन्हें अपनी गलती का बोध होता है, तो कोर्ट माफ करने की दिशा में सोच सकता है.
दो ट्वीट्स के चलते अदालत की अवमानना का दोषी करार दिए जाने पर प्रशांत भूषण ने कोर्ट में विस्तार से कहा:
मैंने इस माननीय कोर्ट के पूरे फैसले को पढ़ा है. इस बात का मुझे बहुत दुख है कि मुझे कोर्ट की अवमानना का दोषी करार दिया गया है. वही कोर्ट जिसकी महिमा को बरकरार रखने के लिए पिछले तीन से ज्यादा दशकों से मैं- एक दरबारी या जय-जयकार करने वाले के रूप में नहीं, बल्कि एक विनम्र रक्षक के रूप में- कार्य करता आ रहा हूं. मैं इसलिए दुखी नहीं हूं कि मुझे सजा दी गई है, बल्कि इसलिए दुखी हूं कि मुझे काफी गलत समझा गया है.
मैं हैरान हूं कि अदालत ने मुझे न्याय के प्रशासन की संस्था पर ‘दुर्भावनापूर्ण, अपमानजनक, सुनियोजित हमला’ करने का दोषी ठहराया है. मैं इस बात से निराश हूं कि अदालत इस तरह का हमला करने के पीछे मेरे उद्देश्यों का कोई सबूत प्रदान किए बिना इस निष्कर्ष पर पहुंची है.
मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि मैं निराश हूं कि अदालत ने मुझे उस शिकायत की एक प्रति भी देना जरूरी नहीं समझा जिसके आधार पर स्वत: संज्ञान नोटिस जारी किया गया था और मेरे जवाबी हलफनामे में उठाई गईं बातों तथा मेरे वकील द्वारा दी गई दलीलों का भी जवाब देना आवश्यक नहीं समझा.
मेरे लिए यह विश्वास करना बहुत मुश्किल है कि कोर्ट ने पाया है कि मेरे ट्वीट में ‘भारतीय लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण संस्थान की नींव को हिलाने की क्षमता है.’
मैं सिर्फ वही बात दोहरा सकता हूं कि ये दोनों ट्वीट मेरे निजी विचार और अभिव्यक्ति हैं, जिसकी इजाजत किसी भी लोकतंत्र में दी जानी चाहिए.
दरअसल न्यायपालिका के स्वस्थ कामकाज के लिए सार्वजनिक जांच जरूरी है. मेरा मानना है कि संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिए लोकतंत्र में किसी भी संस्था की खुली आलोचना आवश्यक है.
हम अपने इतिहास में उस क्षण से गुजर रहे हैं, जब उच्च सिद्धांतों को नियमित दायित्वों से आगे निकलना चाहिए, जब संवैधानिक व्यवस्था को बचाने की कोशिश व्यक्तिगत और व्यावसायिक हितों से पहले होनी चाहिए, जब भविष्य के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते वक्त वर्तमान का विचार आड़े नहीं आना चाहिए. आवाज न उठाने का मतलब कर्तव्य का अपमान होगा, विशेष रूप से मेरे जैसे अदालत के एक अधिकारी के लिए.
मेरे ट्वीट्स कुछ नहीं बल्कि हमारे गणतंत्र के इतिहास के इस मोड़ पर अपनी जिम्मेदारी निभाने की एक छोटी सी कोशिश थी. मैंने बिना सोचे समझे ये ट्वीट नहीं किए थे. मेरे द्वारा किए गए ट्वीट के लिए माफी मांगना निष्ठाहीन और अवमानना होगा, जिसे लेकर अब भी मेरे विचार वही हैं और उसमें मेरा विश्वास है.
इसलिए मैं विनम्रतापूर्वक उसी बात को दोहरा सकता हूं, जो कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने ट्रायल के दौरान कही थी:
मैं क्षमा नहीं मांग रहा हूं. मैं उदारता की अपील नहीं करता हूं. मैं यहां इसलिए हूं ताकि अदालत द्वारा निर्धारित अपराध के लिए मुझे कानून के अनुसार दिए गए किसी भी दंड को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर सकूं और यह मेरे लिए एक नागरिक का सर्वोच्च कर्तव्य प्रतीत होता है.
मालूम हो कि जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया है और सजा पर निर्णय लिया जाना अभी बाकी है.
27 जून को एक ट्वीट करते हुए भूषण ने पिछले छह सालों में औपचारिक आपातकाल के बिना लोकतंत्र की तबाही के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायाधीशों- जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जेएस खेहर की भूमिका की आलोचना की थी.
इसके अलावा एक अन्य ट्वीट उन्होंने भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे द्वारा एक नेता के बेटे की मोटरसाइकिल पर सवार होने को लेकर किया था.
गुरुवार को कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण की इस विनती को खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही में सजा तय करने संबंधी दलीलों की सुनवाई शीर्ष अदालत की दूसरी पीठ द्वारा की जाए.
जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने भूषण को विश्वास दिलाया कि जब तक उन्हें अवमानना मामले में दोषी करार देने के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर निर्णय नहीं आ जाता, तब तक सजा संबंधी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.
खास बात ये है कि इस मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी प्रशांत भूषण का समर्थन किया और कोर्ट से गुजारिश की कि वे उन्हें कोई सजा न दें.
वेणुगोपाल ने कहा, ‘मेरे पास नौ जजों की लिस्ट है, जिन्होंने कहा है कि न्यायपालिका के उच्च पदों में भ्रष्टाचार है. मैंने खुद 1987 में कहा था.’
हालांकि इस मामले में पीठ ने अटॉर्नी जनरल को नहीं सुना. कोर्ट ने कहा कि 14 अगस्त के फैसले के संबंध में प्रशांत भूषण अपने बयान पर 2-3 दिन विचार करके जवाब दायर करें.