लॉकडाउन के बाद गृह राज्यों से केरल पहुंच रहे कामगारों का कहना है कि नियमानुसार उन्हें 14 दिन के अनिवार्य क्वारंटीन में रहना है, लेकिन इसके लिए उनसे पैसे मांगे जा रहे हैं और न दे पाने की स्थिति में वापस लौटने को कहा जा रहा है.
तिरुवनंतपुरमः कोरोना वायरस के मद्देनजर लॉकडाउन के दौरान अपने-अपने गृहराज्य लौट चुके प्रवासी मजदूर अब धीरे-धीरे फिर काम पर लौटने लगे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां काम के लिए राज्य वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों को क्वारंटीन सेंटर में रहने के लिए भी भुगतान करने को मजबूर किया जा रहा है, ऐसा नहीं करने पर उन्हें वापस उनके गृहराज्य भेजा जा रहा है.
पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर के बिक्रम सिंघा (26) ने काम की तलास में केरल के कोझिकोड लौटने का फैसला किया था. वह लॉकडाउन से पहले कोझिकोड में बीते चार सालों से दिहाड़ी मजदूरी कर रहे थे.
बिक्रम की योजना किराये पर क्वार्टर लेने की थी, जहां वह लॉकडाउन से पहले रहते थे, लेकिन नियमों के अनुरूप उन्हें दोबारा काम ढूंढने से पहले दो हफ्ते क्वारंटीन में बिताना अनिवार्य है.
बिक्रम के 19 जुलाई को कोझिकोड स्टेशन पहुंचने पर राजस्व अधिकारी और पुलिस ने उन्हें रोककर वापस अपने गृह राज्य जाने को कहा. इसके लिए केरल में कोविड-19 की खराब स्थिति का हवाला दिया गया.
इसके बाद बिक्रम अगले दिन ट्रेन पकड़कर वापस घर लौट गए.
हालांकि, केरल में अंतरराज्यीय यात्रा प्रतिबंधों में ढील की वजह से राज्य में प्रवासी मजदूर वापस लौट रहे हैं लेकिन राज्य में कोरोना के मामले बढ़ने की वजह से पलक्कड़, त्रिशूर, एर्नाकुलम और कोट्टायम जैसे ग्रामीण इलाकों में प्रवासी मजदूरों के क्वारंटीन सेंटर में रहने का विरोध हो रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार ने राजस्व विभाग से राज्य लौट रहे लोगों को नि:शुल्क क्वांरटीन सेंटर में भेजने का इंतजाम करने का निर्देश दिया है लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से प्रवासी मजदूरों को वापस लौटने या क्वारंटीन के लिए पैसे चुकाकर रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
गुजरात के आणंद के रहने वाले सोहेल निजामुद्दीन शेख (32) बीते 10 सालों से केरल में पेंटिंग का काम कर रहे हैं. उन्होंने लॉकडाउन से पहले ही केरल छोड़ दिया था.
वह कहते हैं, ‘मैंने जब केरल में रोजगार के बारे में सुना तो मैंने वापस आने का फैसला किया. कोझिकोड से 30 किलोमीटर दूर चैथमंगलम के एक मकान में जहां मैं पहले रह रहा था, वहां का मकान मालिक मुझे वहां क्वारंटीन में रहने को लेकर सहमत हो गया.’
वह कहते हैं, ‘जब मैं कोझिकोड पहुंचा तो मुझे वापस जाने के लिए टिकट खरीदने को मजबूर किया गया.’
शेख कहते हैं, ‘मैंने कोझिकोड में अपने कुछ दोस्तों को फोन किया, जिन्होंने सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क किया, जिसके बाद मेरे यहां रहने पर अधिकारी मान गए, लेकिन तब तक मकान मालिक मन बना चुका था. उसका कहना था कि स्थानीय लोग खुश नहीं हैं, इसलिए मुझे प्रतिदिन के हिसाब से 900 रुपये का भुगतान कर एक होटल में रहने को मजबूर किया गया.’
वे आगे कहते हैं, ‘14 दिन बाद भी मुझे काम पर बाहर जाने की मंजूरी नहीं दी गई और न ही मेरा कोरोना टेस्ट कराया गया. वहां 24 दिन रहने के बाद मैंने विरोध किया, जिसके बाद मुझे जाने की मंजूरी दी गई. अब मेरे पास कोई काम नहीं है और मेरा बहुत सारा पैसा भी खर्च हो गया है.’
श्रम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यह प्रवासी मजदूरों को राज्य में लाने वाले ठेकेदारों की जिम्मेदारी है कि वे उनके क्वारंटीन की व्यवस्था सुनिश्चित करें. जो प्रवासी मजदूर खुद से आए हैं, उन्हें क्वारंटीन सेंटर ले जाने का जिला प्रशासन को निर्देश दिया गया है.
वहीं, कोझिकोड ब्लॉक के तहसीलदार प्रेमलाल का कहना है कि जो भी प्रवासी मजदूर क्वारंटीन में रहने के लिए पैसे नहीं चुका पा रहे हैं, उन्हें वापस भेजा जा रहा है. हम उन्हें रेलवे स्टेशन से ही वापस भेज रहे हैं.
लॉकडाउन से पहले कोट्टायम के पयप्पडू में लगभग 12,000 प्रवासी मजदूर थे. स्थानीय लोगों ने मजदूरों के तंग क्वार्टर में इनके लौटने का विरोध किया. इसके बाद अब इन मजदूरों ने एक एक्शन कमेटी का गठन किया है, जिसके तहत इन्होंने रिहायशी इमारतों के मालिकों से मजदूरों के लिए अलग से कमरे या क्यूबिकल्स सुनिश्चित करने को कहा है.
केरल के श्रम मंत्री टीपी रामकृष्णन का कहना है कि वह प्रवासी मजदूरों को जबरन वापस लाने से वाकिफ नहीं थे.
उन्होंने कहा, ‘हम प्रवासी मजदूरों को सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं. अगर कहीं प्रदर्शन होता है तो हम मामले को देखने के लिए तैयार हैं. केरल कभी भी किसी प्रवासी मजदूर को नहीं लौटाएगा. अगर ठेकेदार उन्हें क्वारंटीन के लिए जगह नहीं दे पाते हैं तो सरकार सुनिश्चित करेगी कि मजदूरों को रहने के लिए जगह मिले. अगर इस संबंध में शिकायत मिलती है तो हम मामले को जरूर देखेंगे.’
राजस्थान के जालौर से लौटे अशोक कुमार का कहना है कि वह तीन अन्य लोगों के साथ दिल्ली-एर्नाकुलम ट्रेन से केरल पहुंच थे.
वे कहते हैं, ‘लेकिन केरल पहुंचने पर हमें वापस जाने को कहा गया, इसलिए हमने वापसी की टिकट बुक की. हमारे पास कोई विकल्प नहीं था. इस तरह हमारे लगभग 20,000 रुपये बर्बाद हो गए.’
प्रोग्रेसिव वर्कर्स एसोसिएशन के सह-समन्वयक जॉर्ज मैथ्यू का कहना है कि मजदूरों के क्वारंटीन की व्यवस्था के लिए सरकार और नियोक्ता दोनों को एक साथ आगे आना चाहिए.
वे कहते हैं, ‘क्वारंटीन सेंटर्स के लिए भुगतान करने के शोषण को रोका जाना चाहिए. कई प्रवासी मजदूर केरल वापस लौट रहे हैं क्योंकि उनके अपने गृहराज्यों में कोई रोजगार नहीं था लेकिन क्वारंटीन के लिए भुगतान करना और केरल पहुंचने पर उन्हें वापस लौटाने की इस प्रक्रिया को बंद किया जाना चाहिए.’