भोपाल में मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा के एक वर्षीय अभिनय प्रशिक्षण कोर्स के 2019-20 सत्र के विद्यार्थी बीते दो सप्ताह से अधिक समय से प्रबंधन के ख़िलाफ़ आंदोलनरत हैं. उनका कहना है कि कोरोना के चलते उनके बैच को प्रमोशन देकर नया सत्र शुरू किया जा रहा है जबकि उनका प्रशिक्षण अभी तक पूरा नहीं हुआ है.
‘हम पढ़ना चाहते हैं. इसमें क्या गलत मांग रहे हैं? अगर मुझे मेरी शिक्षा नहीं मिलेगी तो अनुरोध ही तो करूंगी न कि मुझे पढ़ने दीजिए. इसके लिए क्या हमें सजा दी जाएगी?’
यह कहना है मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा (एमपीएसडी) की छात्रा केतकी अशड़ा का, जो संस्थान के ‘एक वर्षीय अभिनय प्रशिक्षण कोर्स’ के 2019-20 सत्र की छात्रा हैं.
मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित एमपीएसडी में पिछले 17 दिनों से स्कूल के छात्र प्रबंधन के खिलाफ आंदोलनरत हैं.
उनकी मांग है कि मार्च माह में कोरोना संक्रमण के कारण शिक्षण संस्थान के बंद होने के चलते जो पढ़ाई उनकी बीच में अधूरी छूट गई है, उसे पूरा कराया जाए.
जबकि प्रबंधन उन्हें जनरल प्रमोशन देकर नया सत्र शुरू करने की सूचना जारी कर चुका था.
एक छात्र प्रियम जैन कहते हैं, ‘यह हमारा एक साल का डिप्लोमा कोर्स है जिसमें अब तक आठ महीने ही कक्षाएं लगी हैं. हमारा 2019-20 सत्र 15 जुलाई से शुरू हुआ था और कोरोना के कारण 16 मार्च से संस्थान बंद हो गए थे, जिसके चलते हमारी चार माह की कक्षाएं छूट गई थीं. हम बस वो चार महीने की कक्षाएं मांग रहे हैं. जब भी स्कूल-कॉलेज खुलें, तब हमें हमारी कक्षाएं दी जाएं.’
आंदोलन 7 अगस्त को शुरु हुआ. छात्रों को तब जनरल प्रमोशन से इसलिए आपत्ति थी क्योंकि उनका कहना है कि उनका कोर्स, ट्रेनिंग कोर्स है जहां कक्षाओं में नाट्य की विधाओं को प्रैक्टिकल करके समझाया जाता है.
छात्र राजेश कुमार बताते हैं, ‘इस दौरान नाटक और सीन वर्क जैसी विभिन्न गतिविधियां होती हैं जिनका हिस्सा बनकर हम नाट्यकला की बारीकियों से रूबरू होते हैं. जब हमारी ट्रेनिंग ही पूरी नहीं होगी तो हम सीखेंगे क्या? अभिनय की बारीकियां ऑनलाइन नहीं समझी जा सकतीं. हमें इस दौरान मंच पर भी प्रस्तुति देनी होती है.’
छात्रों के मुताबिक, एक साल के कोर्स में उनके चार नाटक और छह सीन वर्क होते हैं लेकिन मार्च माह में कक्षाएं बंद होने तक केवल दो नाटक और तीन सीन वर्क ही हो पाए थे. यानी कि उनकी शिक्षा आधी ही पूरी हो पाई थी.
तब तक कोरोना संक्रमण ने प्रदेश ही नहीं, सारे देश में अपने पैर जमा लिए थे और प्रशासन के आदेश अनुसार राज्य के सभी शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए.
लॉकडाउन की घोषणा के करीब तीन महीने बाद जून माह में छात्रों ने अखबार में प्रबंधन की ओर से जारी एक सूचना पढ़ी. उक्त सूचनात्मक लेख में उल्लेख था कि प्रबंधन 2020-21 का नया सत्र शुरू करने जा रहा है.
लेख में एमपीएसडी के निदेशक आलोक चटर्जी के माध्यम से कहा गया कि सरकार की ओर से 15 अगस्त से संस्थान शुरू करने के निर्देश मिले हैं. ऐसे में गाइडलाइन का पालन करते हुए 2019-20 सत्र के छात्रों की 15 दिन की कक्षाएं लगाने या फिर उन्हें जनरल प्रमोशन देने का ही विकल्प है.
छात्र विनय बघेला बताते हैं, ‘उक्त लेख पढ़ कर हमने संस्थान के निदेशक से संपर्क किया. वे हमें बातों से गोल-गोल घुमाने लगे तो हम संस्कृति संचालनालय पहुंचे जो कि प्रदेश के संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करता है और एमपीएसडी को संरक्षण प्रदान करता है. लेकिन वहां से भी हमें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो हम संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर से मिले.’
वे आगे बताते हैं, ‘वहां भी हमें सिर्फ आश्वासन मिला लेकिन हमारी समस्या के समाधान के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई. तब हमने कुछ दिन इंतजार किया और तय किया कि हम अपनी मांग के समर्थन में प्रदर्शन करेंगे ताकि जिम्मेदारों की नजरों में आ सकें.’
अपने इसी प्रदर्शन को छात्रों ने ‘अनुरोध प्रदर्शन’ नाम दिया, जिसके तहत वे विभिन्न रचनात्मक तरीकों से स्कूल प्रबंधन का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं.
लेकिन इस प्रदर्शन के बाद भी उनकी मांग पर कोई विचार तो नहीं हुआ बल्कि आठ छात्रों को प्रबंधन द्वारा निष्कासित जरूर कर दिया गया है.
17 अगस्त को हुई निष्कासन की कार्रवाई में स्कूल प्रबंधन ने कहा है कि ‘छात्रों ने सोशल मीडिया पर फेसबुक के माध्यम से एवं अन्य माध्यम से ‘अनुरोध प्रदर्शन’ करके विद्यालय की आचार संहिता और नियमों का उल्लंघन किया है.’
साथ ही, जिन आठ छात्रों को निष्कासित किया गया है, उनके संबंध में लिखा है, ‘विद्यालय में अध्ययन की अवधि के दौरान भी आपका आचरण एवं व्यवहार विद्यार्थी अनुरूप तथा विद्यालय अनुरूप नहीं रहा था.’
केतकी अशड़ा, प्रियम जैन, विनय बाघेला, राजेश कुमार उन्हीं आठ छात्रों में से हैं. इनके अलावा घनश्याम सोनी, सौम्या भारती, राहुल कुशवाह और अंजलि सिंह को भी निष्कासित किया गया है.
घनश्याम सोनी बताते हैं, ‘हम तो संस्थान का कोई विरोध ही नहीं कर रहे थे, शांतिपूर्वक मुंह बंद किए अनुरोध कर रहे थे कि हमें पढ़ने दो. किसी के खिलाफ कुछ नहीं बोला. संस्थान के बाहर अनुरोध भी इसलिए शुरू किया ताकि एमपीएसडी के निदेशक की आते-जाते कभी हम पर नजर पड़ जाए.’
बहरहाल, 24 अगस्त को प्रबंधन ने यह निष्कासन की कार्रवाई रद्द तो कर दी है, लेकिन इस निष्कासन की कार्रवाई पर भी छात्रों के कुछ सवाल हैं.
विनय बाघेला कहते हैं, ‘हमारे द्वारा संस्थान में दाखिला लेते समय भरवाए गए जिस बॉन्ड के आधार पर हम पर आचार संहिता के उल्लंघन की कार्रवाई हुई, वह बॉन्ड तो 16 जुलाई 2019 से 15 जुलाई 2020 तक ही मान्य था. जबकि हमें 17 अगस्त को निष्कासित किया गया. साथ ही, उसमें ऐसी कोई बात नहीं लिखी थी कि फेसबुक पर अपनी बात नहीं रख सकते.’
वहीं, राहुल कुशवाह कहते हैं, ‘निष्कासित करते समय वे लिखते हैं कि हम सभी निष्कासित छात्रों का आचरण और व्यवहार अध्ययन के दौरान भी अर्थात आठ महीने खराब रहा था, तो फिर हमें उस दौरान क्यों निष्कासित नहीं किया या कोई दंड दिया? वे बस हमें निष्कासन का डर दिखाकर प्रदर्शन बंद कराना चाहते थे.’
छात्रों के निष्कासन के बाद जब मामला सुर्खियों में आया तो छात्रों को देश भर के रंगकर्मियों और संगठनों का समर्थन मिलना शुरू हो गया था. जिसमें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय छात्र संगठन, एफटीआईआई छात्र संगठन, फिल्म छात्र संगठन, भारतीय जन नाट्य संघ, रंगकोसी (बिहार), आर्टिस्ट यूनाइटेड संघ (हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी), ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन और प्रसिद्ध रंगकर्मी बापी बसु और संजय मेहता के नाम प्रमुख तौर पर शामिल हैं.
साथ ही, एमपीएसडी के पूर्व छात्र भी इन छात्रों के समर्थन में आ गए और ‘अनुरोध प्रदर्शन’ में भी शामिल हुए. शायद इसी दवाब के चलते प्रबंधन ने 21 अगस्त को एक और आदेश जारी किया, जिसमें उसने छात्रों के सामने एक नया प्रस्ताव रखा.
इसके तहत कोरोना संक्रमण काल के समाप्त होने के बाद स्थितियां सामान्य होने पर इन छात्रों को दो माह का अतिरिक्त प्रशिक्षण दिया जाएगा, लेकिन इस दौरान छात्रों को किसी भी प्रकार की स्कॉलरशिप नहीं दी जाएगी.
गौरतलब है कि इन छात्रों को संस्थान द्वारा 6,000 रुपये प्रतिमाह स्कॉलरशिप प्रदान की जाती है. छात्रों के मुताबिक, जब कोरोना के कारण संस्थान बंद था उस दौरान उन्हें स्कॉलरशिप मिल रही थी, इसलिए अब संस्थान का कहना है कि वह 12 महीने की अवधि की स्कॉलरशिप दे चुका है.
लेकिन छात्र इस नये प्रस्ताव पर भी राजी नहीं हैं. विनय बाघेला कहते हैं, ‘स्कॉलरशिप को भी अगर एक तरफ रख दें तो भी हमारे चार महीने का नुकसान हुआ है. फिर हमें दो महीने क्यों मिल रहे हैं?’
राहुल कहते हैं, ‘पहले तो 15 दिन ही दे रहे थे, अब दो महीने देने लगे. जब 15 दिन से बढ़कर दो महीने दे सकते हैं तो चार महीने देना भी संभव हो सकता है.’
छात्रों के समर्थन में आगे आए संस्थान के पूर्व छात्र भी प्रबंधन के इस रवैये से खफा हैं. 2018-19 सत्र के छात्र अक्षय सिंह ठाकुर कहते हैं, ‘एक नाटक की प्रक्रिया में डेढ़-दो महीने का वक्त लगता है. इनके अभी चार में से केवल दो नाटक और छह में से केवल 3 सीन वर्क पूरे हुए हैं. बताइए कि दो महीने में वे दो नाटक कैसे करा लेंगे? उन्हें चार महीने नहीं देंगे तो कैसे उनके तीन सीन वर्क कराएंगे?’
वे आगे बताते हैं, ‘संस्थान इंटर्नशिप भी देता है. लेकिन जब पढ़ाई ही आधी कराएंगे तो छात्र बाहर जाकर क्या करेंगे जब पूरी तरह से कुछ सीखा ही नहीं होगा? फिर तो इंटर्नशिप भी मत दीजिए.’
भोपाल निवासी गगन श्रीवास्तव और अविजित सोलंकी 2012-13 सत्र के छात्र हैं और वर्तमान में मुंबई में अभिनय क्षेत्र में कार्यरत हैं.
कोरोना के चलते आजकल वे भोपाल में ही हैं. जब उन्हें छात्रों की समस्या और ‘अनुरोध प्रदर्शन’ की जानकारी मिली, तो वे भी उनके साथ प्रदर्शन में शामिल हो गए.
गगन बताते हैं, ‘दुर्भाग्य इस बात का है कि प्रदर्शन को 17 दिन हो गए हैं लेकिन प्रबंधन की ओर से कोई भी छात्रों से आकर नही मिला है. निदेशक आलोक चटर्जी रोज कार्यालय आते हैं लेकिन सामने ही खड़े छात्रों से संवाद तक करना नहीं चाहते.’
उनके मुताबिक, निदेशक आलोक चटर्जी का ऐसा रवैया कोई नई बात नहीं है. 2018-19 के सत्र में भी छात्रों ने संस्थान में फैली अव्यवस्थाओं को लेकर 10 दिन तक प्रदर्शन किया था, तब भी उनका रवैया ऐसा ही रहा था. तब देशभर के पूर्व छात्र भोपाल में जुटे और मामले को निपटाया था.
गगन कहते हैं, ‘एमपीएसडी छात्रों के प्रदर्शन के लिए कभी नहीं जाना गया, लेकिन वर्तमान निदेशक के कार्यकाल में अब तक दो प्रदर्शन हो चुके हैं. लेकिन उन्होंने अपनी कार्यशैली में कोई सुधार नहीं किया है.’
2018-19 के प्रदर्शन के संबंध में तत्कालीन छात्र अक्षय बताते हैं, ‘आलोक चटर्जी अक्टूबर 2018 में निदेशक बनाए गए और आते ही बजट न होने के नाम पर शिक्षण कार्यों, सेवा और सुविधाओं में कटौती करना शुरू कर दिया. हाल यह थे कि शिक्षकों को हम अपने वाहन पर बिठाकर स्कूल लाते थे, तब पढ़ाई हो पाती थी. साजिशन हमसे हॉस्टल छीनने का प्रयास किया जिसका पर्दाफाश हो गया. मेस बंद करा दिया.’
वे आगे बताते हैं, ‘छात्रों का शैक्षणिक टूर रोक दिया. पीने तक पानी बाहर से खरीदते थे. पढ़ाने के लिए फैकल्टी नहीं थी. ऐसी ही अनेकों समस्याओं पर जब हमने प्रदर्शन किया तो कह दिया कि हम पूर्व निदेशक के चुने हुए छात्र हैं इसलिए नये निदेशक के खिलाफ साजिश कर रहे हैं. लेकिन, इस सत्र के छात्र तो स्वयं इन्होंने चुने, ये भी क्यों प्रदर्शन कर रहे हैं? सीधी-सी बात है कि कमी वर्तमान निदेशक के अंदर है. इस बार प्रदर्शन हुआ है, अगली बार भी होगा.’
पूर्व छात्रों का कहना है कि वर्तमान निदेशक ने एमपीएसडी के कल्चर का ही कत्ल कर दिया है. पिछले सत्र के छात्रों को आठ महीने तक इंटर्नशिप नहीं कराई.
जब वे एकजुट हुए तो जुलाई 2019 की इंटर्नशिप मार्च 2020 में शुरू कराई, जिसके चलते कई छात्र एनएसडी में प्रवेश से वंचित रह सकते हैं.
पिछले सत्र के छात्रों को नये सत्र के छात्रों से मिलवाने का कार्यक्रम भी खत्म कर दिया गया. वे कहते हैं, ‘यह सब वे बजट न होने का हवाला देकर करते हैं और सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल देते हैं. जबकि हम जब सरकारी अधिकारियों से मिले थे तो वे बजट की कमी की बात अस्वीकारते हैं.’
वर्तमान छात्रों की समस्या पर बात करें, तो बैच के 26 छात्रों में 8 को निष्कासित किया गया है और ऐसा प्रचारित किया गया कि केवल 8 छात्रों को आपत्ति है, बाकी के 18 छात्र तो जनरल प्रमोशन के लिए भी तैयार थे.
इस पर केतकी कहती हैं, ‘यह झूठ है. हम कुल 13 लोग थे जो सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफाइल से फोटो अपलोड करते थे. साथ ही, दो-तीन लोगों ने अलग से पोस्ट डाले कि उन्हें क्लासेज चाहिए. वहीं बात ये भी है कि जो लोग नहीं कह रहे कि क्लासेज चाहिए, वे लोग यह भी तो नहीं कह रहे कि क्लासेज नहीं चाहिए और जनरल प्रमोशन कर दो.’
वे आगे कहती हैं, ‘ऐसा कहकर वे बस आंदोलन दबाना चाहते हैं. और अहम बात ये है कि हम अपने लिए शिक्षा लेने आए थे, बाकियों के लिए नहीं. अब मुझे मेरी शिक्षा नही मिलेगी तो अनुरोध ही करूंगी न, विरोध तो हम कर ही नहीं रहे.’
वहीं, छात्रों का कहना है कि जब हमें 17 तारीख को निष्कासित किया जा चुका है तो हमारा निष्कासन रद्द किए बिना 21 तारीख को हमें ईमेल के माध्यम से दो महीने अतिरिक्त कक्षाएं लगाने की सूचना क्यों भेजी गई?
यहां गौर करने वाली बात है कि एक तरफ तो प्रबंधन निष्कासित छात्रों को ईमेल भेजकर दो महीने की कक्षाएं लगाने की बात कर रहा है, तो दूसरी तरफ 24 अगस्त को उनके अभिभावकों को पत्र लिखकर सूचित कर रहा है कि आपके बच्चों को आचार संहिता के उल्लंघन के चलते निष्कासित किया जा चुका है.
अभिभावकों को पत्र भेजने के बाद 24 तारीख की रात को ही छात्रों का निष्कासन रद्द भी कर दिया जाता है. इससे छात्र भी भ्रमित हैं कि आखिर प्रबंधन चाहता क्या है?
वहीं, छात्रों ने भी 24 तारीख को एक पत्र जारी किया है, अब वे चार महीने का सत्र तो चाहते ही हैं, साथ ही साथ पिछले दो सत्रों से विद्यालय में व्याप्त खामियों को भी दूर करना चाहते हैं. ताकि एमपीएसडी में भविष्य में आने वाले बच्चों को ऐसी अव्यवस्थाओं का सामना न करना पड़े.
इसमें छात्रों के लिए हॉस्टल और मेस की सुविधा उपलब्ध कराना, पीने के स्वच्छ पानी का इंतजाम, कक्षाओं की अव्यवस्था दूर करना और योग्य फैकल्टी उपलब्ध कराना.
छात्रों के मुताबिक, वर्तमान में संस्थान में केवल निदेशक आलोक चटर्जी ही वन मैन आर्मी बने हुए हैं. उनके अतिरिक्त कोई भी स्थायी फैकल्टी संस्थान में नहीं है और अधिकांश कक्षाएं वे स्वयं ही लेते हैं.
विद्यार्थियों ने उक्त पत्र में अनुरोध किया कि उनका निलंबन वापस हो, चार माह की कक्षाएं मिलें और साथ में स्कॉलरशिप भी. हालांकि, निलंबन वापस हो चुका है. बाकी मांगों के लिए संस्कृति संचालनालय का दो सदस्यीय दल छात्रों से बैठक करने वाला है.
इस पूरे मामले पर हमने एमपीएसडी के निदेशक आलोक चटर्जी से भी उनका पक्ष जानता चाहा, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका. वहीं, प्रदेश की संस्कृति मंत्री ने भी संपर्क किए जाने के बाद अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. इन दोनों का जवाब प्राप्त होने पर उसे रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)