मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले के एक किसान ने अक्टूबर 2018 में फसल के दाम न मिलने के चलते आत्महत्या कर ली थी. इसके बाद प्रशासन ने उनके परिवार को 10 लाख रुपये की सहायता राशि दिए जाने की घोषणा की थी, जिसे पाने के लिए उनका परिवार बीते दो सालों से संघर्ष कर रहा है.
वह सितंबर 2018 का महीना था. मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के भंडारपुर गांव के 35 वर्षीय किसान संत कुमार सनोडिया ने अपने खून से एक पत्र लिखा.
पत्र में चेतावनी थी जो इस प्रकार थी, ‘बुधरवाड़ा सोसायटी में मेरे द्वारा बेची चने की फसल का भुगतान अगर 26/09/2018 से 28/09/2018 तक नहीं मिला, तो मैं आत्महत्या कर लूंगा और इसके जवाबदार जिले के समस्त अधिकारी होंगे.’
संत कुमार के छोटे भाई ज्ञान सिंह सनोडिया के मुताबिक, 6 जून 2018 को उनके परिवार ने अपनी चने की फसल सिवनी की बुधरवाड़ा समिति को बेची थी. लेकिन समिति ने भुगतान के सरकारी पोर्टल पर सैकड़ों किसानों का नाम चढ़ाया ही नहीं और पोर्टल बंद हो गया, जिससे किसानों की फसलों का भुगतान रुक गया.
ऐसे करीब 726 किसान थे, जिनका भुगतान नहीं हुआ था. इस संबंध में सभी ने जिला कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री तक को पत्र भी लिखे और मांग के समर्थन में प्रदर्शन भी किया.
लेकिन, जब चार महीने तक कोई सुनवाई नहीं हुई तो आर्थिक तंगी से परेशान होकर संत कुमार ने अपने खून से पत्र लिखकर आत्महत्या की चेतावनी दी.
असल कहानी यहीं से शुरू हुई. संत कुमार के पत्र पर भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो 29 सितंबर 2018 को उन्होंने कीटनाशक खा लिया. तब जाकर शासन-प्रशासन सक्रिय हुए और संत कुमार को इलाज के लिए नागपुर भेजा गया.
लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. 2 अक्टूबर 2018 को संत कुमार ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. संत कुमार की मौत से आक्रोशित ग्रामीणों और परिजनों ने तब सिवनी के राष्ट्रीय राजमार्ग पर उनका शव रखकर चक्का जाम कर दिया.
मौके पर पहुंचे स्थानीय भाजपा विधायक दिनेश राय मुनमुन के हस्तक्षेप पर अधिकारियों ने मामले को शांत करने के लिए मृतक के परिजनों को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से 10 लाख रुपये सहायता राशि देने की लिखित घोषणा की.
इसके बाद राजमार्ग पर रास्ता तो खुल गया लेकिन संत कुमार और उनके परिवार के लिए उसके बाद शासन-प्रशासन ने अपने दरवाजे बंद कर लिए.
स्थिति ये है कि आज दो साल बाद भी वे सहायता राशि पाने के लिए कलेक्टर के लिखित आदेश की कॉपी लेकर दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.
ज्ञान सिंह बताते हैं, ‘5 अक्टूबर 2018 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सिवनी दौरा था. इसलिए प्रशासन ने आक्रोश को ठंडा करने के लिए जो दस लाख रुपये की घोषणा की थी, उसमे से पांच लाख रुपये तीन या चार अक्टूबर 2018 को ही दे दिए थे. बाकी पांच लाख रुपये अब तक नहीं मिले हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘अगर उस समय मुख्यमंत्री का दौरा नहीं होता तो शायद वो पांच लाख रुपये भी हमें नहीं दिए गए होते.’
संत कुमार के 65 वर्षीय पिता मक्खन लाल सनोडिया बताते हैं कि 5 लाख की राशि देते समय प्रशासन ने बाकी राशि देने के संबंध में कहा था कि दो दिन बाद मुख्यमंत्री आने वाले हैं, आपको शेष राशि उनके ही हाथों दिलवाई जाएगी.
लेकिन, मुख्यमंत्री तो आए पर परिवार को शेष राशि नहीं मिली. संत कुमार की मां रुक्मणी बाई बताती हैं, ‘जिस दिन मुख्यमंत्री आए, उस दिन पुलिस और अधिकारियों ने हमें एक तरह से घर में नजरबंद कर दिया था. हमें गुमराह करते हुए कहा कि कलेक्टर का फोन आएगा, तब हम तुम्हें कार्यक्रम स्थल पर ले चलेंगे. जब तक कार्यक्रम खत्म नहीं हो गया, वे लोग घर पर ही पहरा देते रहे और जैसे ही मुख्यमंत्री यहां से गए, वे लोग भी चले गए.’
उसके बाद से अब तक सिवनी में तीन कलेक्टर बदल चुके हैं और पीड़ित परिवार तीनों को पत्र लिखकर अपनी शेष सहायता राशि की मांग कर चुका है.
पहला पत्र मार्च 2019, दूसरा पत्र अगस्त 2019 और तीसरा पत्र इसी वर्ष 2 जुलाई को लिखा गया है. साथ ही, पीड़ित परिवार स्थानीय विधायक को भी उनका वादा याद करा चुका है.
ज्ञान सिंह बताते हैं, ‘मुआवजे की घोषणा करते समय सिवनी विधायक भी मौके पर मौजूद थे. उन्होंने बोला था कि यदि शासन-प्रशासन तुम्हें दस लाख रुपये नहीं देगा तो मैं अपनी जेब से दूंगा. मुझ पर भरोसा रखो.’
इस संबंध में सिवनी विधायक दिनेश राय मुनमुन द वायर से बातचीत में कहते हैं, ‘यह सही बात है कि परिवार को दस लाख रुपये देने की घोषणा हुई थी और अब तक पांच लाख ही मिले हैं. शेष राशि अब तक नहीं मिली है. लेकिन मृतक की पत्नी को मैं अपनी तरफ से अब तक डेढ़ पौने दो लाख रुपये दे चुका हूं. आगे भी अगर सरकार नहीं देगी तो मैं दूंगा और क्या करूंगा, गरीब के साथ अन्याय हो रहा है.’
यहां गौर करने वाली बात है कि उक्त शब्द कह रहे मुनमुन राय उसी भाजपा पार्टी से विधायक हैं, जिसकी मध्य प्रदेश में सरकार है.
हालांकि संत कुमार के परिजन विधायक के दावों को नकारते हुए कहते हैं कि विधायक ने अब तक केवल 50,000 रुपये की ही मदद की है.
इसके साथ ही परिजनों का कहना है कि उस समय लिखित तौर पर तो दस लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की ही गई थी, साथ में परिवार के आर्थिक हालातों को देखते हुए मौखिक तौर पर वादा किया गया था कि संत कुमार की पत्नी को कोई छोटा-पूरा रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा।
साथ ही दोनों बच्चों 9 वर्षीय बेटी भाग्यश्री और 7 वर्षीय बेटे दीपक की पढ़ाई का इंतजाम भी सरकार करेगी. लेकिन ये वादे भी सिर्फ बातों में ही रह गए.
संत कुमार की पत्नी लक्ष्मी सनोडिया कहती हैं, ‘थोड़ा-बहुत खेती-किसानी से कमाई हो जाती है, बाकी अब मजदूरी करके गुजारा कर रहे हैं. दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका भी पेट पालना है और पढ़ाई का भी इंतजाम करना है. कुछ तो करना पड़ेगा.’
संत कुमार और लक्ष्मी की बेटी भाग्यश्री छठवीं और बेटा दीपक चौथी कक्षा में गांव के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं.
परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब है और यह बात घटना के समय तत्कालीन कलेक्टर गोपाल चंद्र डाड ने भी स्वीकारी थी.
उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय को लिखे अपने पत्र में संत कुमार के परिवार की आर्थिक स्थिति को दयनीय बताते हुए दस लाख रुपये की आर्थिक सहायता की जरूरत बताई थी, बावजूद इसके परिवार को अपना हक पाने के लिए सरकारी दफ्तरों की ठोकर खानी पड़ रही हैं.
3 अक्टूबर 2018 को लिखे पत्र में तत्कालीन कलेक्टर ने लिखा था, ‘संत कुमार परिवार के मुखिया थे. इनकी मृत्यु उपरांत परिवार को आजीविका की समस्या उत्पन्न हो गई है. राजस्व अमले द्वारा उनके गृहग्राम में जाकर जानकारी प्राप्त की गई. मृतक की पारिवारिक एवं आर्थिक स्थिति खराब है. प्रभावित परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान किया जाना आवश्यक है.’
यह स्थिति तब है, जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं को ‘किसान पुत्र’ बताते हैं, लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में एक किसान ने न सिर्फ आत्महत्या की बल्कि उसके गुजरने के बाद परिवार के लिए घोषित मदद भी परिवार को नहीं मिल सकी.
इसके बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया और किसानों की समस्याओं को चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई. लेकिन इस किसान हितैषी सरकार में भी संत कुमार के परिजनों को मुआवजे की शेष राशि नहीं मिली.
इस दौरान संत कुमार का परिवार डेढ़ वर्ष तक तो यह भी मानता रहा कि शायद सत्ता परिवर्तन हो गया है इसलिए उन्हें शेष मुआवजा नहीं मिल पा रहा है, लेकिन अब तो पिछले छह महीने से राज्य में उन्हीं शिवराज की सरकार है जिनके पिछले कार्यकाल में यह घटना घटी थी.
लेकिन, पीड़ित परिवार की पीड़ा का समाधान अब भी नहीं हुआ है. लक्ष्मी कहती हैं, ‘जो लिखित में कागज दिए थे, हम उन्हें ही लेकर सिवनी जाते हैं. अफसरों को दिखाते हैं तो वे कहते हैं कि बार-बार यहां मत आया करो. पांच लाख मिल गया है, अब कुछ नहीं मिलेगा.’
ज्ञान सिंह बताते हैं, ‘शेष पांच लाख रुपये न देने के पीछे प्रशासन के अधिकारी तर्क देते हैं कि मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान सिर्फ पांच लाख रुपये ही होता है. आपका आंदोलन खत्म कराना था, इसलिए दस लाख रुपये की घोषणा कर दी थी. अब अगर शासन या मुख्यमंत्री की ओर से शेष राशि आती है तो हम दे सकते हैं.’
पूरे मामले के संबंध में हमने वर्तमान जिला कलेक्टर राहुल हरीदास फातिंग से भी संपर्क किया लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. यही हाल कृषि मंत्री कमल पटेल का रहा.
इस सबके बीच एक सवाल संत कुमार के जहर खाने पर मजबूर होने की स्थितियों के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई का भी है.
इस पर ज्ञान सिंह कहते हैं, ‘जो फसल क्रय समिति केंद्र था, उस पर मामला दर्ज होना था. उन सबने घोटाला किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. उल्टा उनकी मनमानी जारी रही और जिन किसानों का भुगतान नहीं हो पाया था, उन्हें भी 4500 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य के बजाय 3400 रुपये का भुगतान किया गया.’
इस संबंध में ज्ञान सिंह ने आरटीआई के माध्यम से पुलिस अधीक्षक कार्यालय से भी जानकारी मांगी कि मामले में पुलिस ने क्या कार्रवाई की है, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला.
विधायक मुनमुन राय का कहना है कि मामले की जांच चल रही है और जो भी दोषी होंगे, उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी.
वे कहते हैं, ‘जांच उसी समय बैठा दी गई थी लेकिन सरकार बदल गई और कांग्रेस ने जांच दबा दी क्योंकि संत कुमार को कांग्रेस के जिला पंचायत सदस्य ने ही मरवाया था. वो जहर जानबूझकर पिलाया गया था. इसका प्रमाण वह वीडियो है जब घटना के दो दिन पहले कांग्रेस ने अपनी रैली में उस किसान को आगे-आगे घुमाया था. अब जांच फिर से शुरू हुई है, किसी को बख्शा नहीं जाएगा.’
बहरहाल, केंद्र से लेकर राज्य सरकारें किसानों के हित में योजनाएं बनाने के खूब बढ़-चढ़कर दावे करती हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि संत कुमार जैसे किसानों को उनके फसलों के सही दाम नहीं मिलते हैं. निराश होकर वे आत्महत्या कर लेते हैं तो उस पर भी राजनीति होती है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)