सौ दिन से हो रहे गैस रिसाव में लगी आग दो और महीने जारी रह सकती हैः असम सरकार

तिनसुकिया ज़िले के बाघजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक कुएं में 27 मई से शुरू हुए गैस रिसाव में हफ्ते भर बाद आग लग गई थी, जिसे अब तक बुझाया नहीं जा सका है. वाणिज्य और उद्योग मंत्री चंद्रमोहन पटवारी ने विधानसभा में कहा कि कनाडा से विशेषज्ञों को बुलाया गया है, जिन्हें आग बुझाने में दो और महीने लग सकते हैं.

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जून 2020 में ऑयल इंडिया के कुएं में लगी आग. (फाइल फोटो: पीटीआई)

तिनसुकिया ज़िले के बाघजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक कुएं में 27 मई से शुरू हुए गैस रिसाव में हफ्ते भर बाद आग लग गई थी, जिसे अब तक बुझाया नहीं जा सका है. वाणिज्य और उद्योग मंत्री चंद्रमोहन पटवारी ने विधानसभा में कहा कि कनाडा से विशेषज्ञों को बुलाया गया है, जिन्हें आग बुझाने में दो और महीने लग सकते हैं.

ऑयल इंडिया के कुएं में लगी आग. (फोटो: पीटीआई)
ऑयल इंडिया के कुएं में लगी आग. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी: असम सरकार ने बुधवार को कहा कि बाघजान में ऑयल इंडिया के गैस के क्षतिग्रस्त कुएं में लगी आग को बुझाने में विशेषज्ञों को दो और महीने का समय लग सकता है. इस कुएं से पिछले 99 दिनों से अनियंत्रित तरीके से गैस निकल रही है.

शून्यकाल में कांग्रेस विधायक दुर्गा भूमिज के नोटिस के जवाब में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने बताया, ‘कनाडा से उन्नत उपकरण लेकर विशेषज्ञों की एक टीम असम आ रही है. वह ‘स्नबिंग टेक्नलॉजी’ के जरिए कुएं को बंद कर देंगे. इस प्रक्रिया को पूरा होने में छह-आठ हफ्ते लग सकते हैं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘इस बीच ऑयल इंडिया लिमिटेड एक डायवर्टर की मदद से क्षतिग्रस्त कुएं से निकल रही गैस की दिशा बदलते हुए इसे अस्थायी रूप से नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है.’

गौरतलब है कि 27 मई को राजधानी गुवाहाटी से करीब 450 किलोमीटर दूर तिनसुकिया जिले के बाघजान गांव में ऑयल इंडिया लिमिटेड के पांच नंबर तेल के कुएं में विस्फोट (ब्लोआउट) हो गया था, जिसके बाद इस कुएं से अनियंत्रित तरीके से गैस रिसाव शुरू हुआ था.

ब्लोआउट वह स्थिति होती है, जब तेल और गैस क्षेत्र में कुएं के अंदर दबाव अधिक हो जाता है और उसमें अचानक से विस्फोट के साथ और कच्चा तेल या प्राकृतिक गैस अनियंत्रित तरीके से बाहर आने लगते हैं.

कुएं के अंदर दबाव बनाए रखने वाली प्रणाली के सही से काम न करने से ऐसा होता है. इसके बाद नौ जून को यहां भीषण आग लग गई, जिसमें दो दमकलकर्मियों की मौत हो गई थी. तब से यह रिसाव और आग अब तक नियंत्रित नहीं की जा सकी है.

मंत्री ने बुधवार को बताया कि कुल तीन हजार परिवारों को राहत शिविरों में भेजा गया है. ओआईएल सरकार के साथ मिलकर उनका ध्यान रख रही है.

मंत्री ने आगे बताया, ‘इस आग में जो 12 घर पूरी तरह जल गए थे, उन सभी को 24 लाख रुपये की मदद पेश की गई है. कुएं के पास रहने वाले 1,484 परिवारों को 30 हजार रुपये दिए गए हैं, वहीं कुएं से थोड़ी दूर रहने वाले 1,197 परिवारों को 25 हजार रुपये दिए गए हैं.’

पटवारी ने सदन को बताया कि इसके अलावा जिला प्रशासन के अनुमोदन पर आग से प्रभावित 57 परिवारों को दस लाख रुपये दिए जाएंगे, आंशिक रूप से प्रभावित 561 परिवारों को ढाई लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी।

उन्होंने यह भी बताया कि स्थानीय लोग मुआवजा मिलने में देरी के कारण और आग को बुझाने में कंपनी की अक्षमता की वजह से बेचैन हो रहे हैं. वे 24 अगस्त से तिनसुकिया के उपायुक्त के दफ्तर के बाहर बैठे हुए हैं.

मंत्री ने आगे बताया, ‘ एक स्थानीय समूह बाघजान गांव मिलनज्योति युवा संघ के तत्वाधान में करीब 200 ग्रामीण प्रदर्शन कर रहे हैं. क्योंकि वे शांतिपूर्ण हैं इसलिए हमने उन्हें नाराजगी जाहिर करने की अनुमति दी हुई है. उनकी मांगों पर गौर करते हुए हमने विशेषज्ञों की समिति के माध्यम से एनजीटी के समक्ष मुद्दे उठाए हैं.’

इससे पहले सदन में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना का मुद्दा उठाया और कहा कि इसके चलते कई क्षेत्रों की यूनिट्स स्थापित करने के लिए पूर्व अनुमति लेने वाले नियम हटाए गए हैं.

उन्हने कहा, ‘तमिलनाडु, केरल और कई अन्य राज्यों ने पर्यावरण और कृषि भूमि की रक्षा के लिए स्थानीय कानून बनाए हुए हैं. हम असम सरकार से भी गुजारिश करते हैं कि हमारी जमीन को बचाने के लिए स्थानीय कानून बनाए जाएं।’

वहीं भूमिज ने भी इस बात की ओर इशारा किया कि बाघजान के गैस रिसाव और आग ने आसपास के पर्यावरण को बुरी रताः प्रभावित किया है.

मालूम हो कि विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि मई महीने से हो रहे गैस रिसाव के चलते भारी प्राकृतिक नुकसान हो रहा है. आसपास के संवेदनशील वेटलैंड, डिब्रु-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान और लुप्त हो रही प्रजातियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

स्थानीय रहवासियों ने बताया था कि उन्होंने पास के मागुरीबिल झील में डॉल्फिंस के शव पड़े देखे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आसपास के गांवों के धान के खेत, तालाब और वेटलैंड प्रदूषित हो चुके हैं और खतरा हर दिन बढ़ रहा है.

गांव वालों ने गैस रिसाव के बाद शुरुआती सप्ताह में बताया था कि उन्हें गैस की महक आ रही है और इस उद्यान में कई जगहों पर तेल फैल चुका है. कई छोटे चाय किसानों ने बताया कि गैस की परतें चाय बागान के ऊपर इकट्ठी हो गई हैं.

इसके बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इस आग पर काबू पाने में असफल रहने पर ऑयल इंडिया पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. अधिकरण का कहना है कि कुएं में लगी आग से पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है.

बता दें कि बीते 17 अगस्त को क्षतिग्रस्त कुएं को 83 दिनों बाद बंद कर दिया गया था. कंपनी ने बताया था कि गैस कुएं की आग को बुझाने की दिशा में पहले सफल कदम के तहत उसके मुंह पर लपटें रोकने वाला एक उपकरण ब्लो आउट प्रेवेंटर (बीओपी) रख दिया गया है.

बीओपी कई टन की धातु की बहुत भारी चादर होती है जिसे किसी भी गैस या तेल कुएं पर नीचे से ईंधन का रिसाव रोकने के लिए रखा जाता है.

कंपनी अपने तीसरे प्रयास में इस कुएं पर बीओपी रख पाई है. इससे पहले 31 जुलाई को भी कुएं का मुंह बंद करने की कोशिश की गई थी, लेकिन उस समय हाइड्रोलिक मशीन पलट गई थी.

इससे पहले बीते 10 जुलाई को गैस के क्षतिग्रस्त कुएं को बंद करने का दूसरा प्रयास विफल हुआ था. तीसरे प्रयास में ढक्कन को बैठाने में सफलता मिली.

कंपनी की ओर से इसके बाद कहा गया था कि वे अब कुएं को ‘खत्म’ यानी किल करने का प्रयास करेंगे, जिससे गैस रिसाव को रोका जा सके और आग पर काबू पाया जा सके.

कुएं को खत्म या किल करने के लिए तरल से भरे एक भारी कॉलम को कुएं में डाला जाता है, जिससे इसमें हो रहे रिसाव को बिना किसी दबाव  नियंत्रित करने के उपकरण के रोका जा सकता है.

इससे पहले बीते 22 जुलाई को सिंगापुर की एक कंपनी के तीन विदेशी विशेषज्ञों को ओआईएल और ओएनजीसी के विशेषज्ञों की मदद के लिए बुलाया गया था.

लेकिन तब कुएं में लगी आग को बुझाने के प्रयास के दौरान भीषण विस्फोट हुआ था जिसमें तीनों विशेषज्ञ घायल हो गए थे.

मालूम हो कि शुरुआत में कुएं में आग लगने की घटना के बाद मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए थे.

पीएसयू ने बताया था कि वर्तमान में ईआरएम इंडिया, टेरी और सीएसआईआर-एनआईईएसटी जैसी कई एजेंसियों द्वारा गांवों और आस-पास के वन क्षेत्रों में विस्फोट के विभिन्न आकलन और प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)