17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 1984 सिख विरोधी दंगों से संबंधित एक मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1984 सिख दंगा मामले में दोषी पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को जमानत देने से मना कर दिया.
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमनियम की पीठ ने कहा कि जब कोर्ट सामान्य रूप से अपना कामकाज शुरू करेगी, तब मामले में दोषी ठहराने वाले फैसले के खिलाफ उनकी अपील शीर्ष न्यायालय सुनेगा.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने अस्पताल में भर्ती कराने की भी उनकी मांग खारिज कर दी और कहा कि मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता है कि उन्हें इसकी जरूरत नहीं है.
सज्जन कुमार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि पीठ को उनकी जमानत याचिका पर विचार करना चाहिए, क्योंकि हाईकोर्ट का फैसला सही नहीं था. हालांकि कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया और जमानत देने से इनकार किया.
सीजेआई बोबडे ने कहा कि यह कोई ‘छोटा मामला’ नहीं था और इस मौके पर जमानत देने के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाएगा.
इसके बाद सज्जन कुमार के वकील ने कोर्ट से गुजारिश की कि उनकी स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए जमानत दिया जाए, लेकिन वरिष्ठ वकील एचएस फूल्का ने इसका विरोध किया और कहा कि सज्जन कुमार का अच्छे से ख्याल रखा जा रहा है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सज्जन कुमार को इस मामले में जमानत देने से लगातार इनकार करता आ रहा है. बीते 13 मई को भी कोर्ट ने इसी तरह की याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि एम्स द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं है, जिसके लिए जमानत की मांग की जा रही है.
उस समय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ये मामला हकीकत में ‘नरसंहार’ था और ‘सज्जन कुमार भीड़ की अगुवाई कर रहे थे.’
मालूम हो कि 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 1984 सिख विरोधी दंगों से संबंधित एक मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
कोर्ट ने कहा था कि ये दंगे राजनीतिक संरक्षण का आनंद लेने वाले लोगों द्वारा मानवता के खिलाफ अपराध थे.
ये मामला दक्षिण पश्चिम दिल्ली की पालम कॉलोनी में एक सिख परिवार के पांच सदस्यों की हत्या और एक गुरुद्वारे में आगे लगाने से जुड़ा हुआ है. दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि पीड़ित को यह एहसास कराना जरूरी है कि कितनी भी चुनौती आए, लेकिन सत्य की जीत होगी.