बीते दिनों अवमानना के दोषी ठहराए गए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि लोकतंत्र में न्याय प्रणाली और कोर्ट के कामकाज से वाक़िफ़ हर नागरिक को स्वतंत्र रूप से अपने विचार रखने में सक्षम होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से उसे अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला बताकर अवमानना के रूप में लिया जाता है.
नई दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया है कि न्यायपालिका के बारे में चर्चा रोकने या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने की कोशिश में न्यायालय की अवमानना की शक्ति का कभी-कभी दुरुपयोग किया जाता है.
उल्लेखनीय है कि न्यायालय की अवमानना को लेकर उच्चतम न्यायालय ने भूषण को हाल ही में दोषी ठहराया था और उन पर जुर्माना लगाया है.
भूषण ने बीते बुधवार को एक कार्यक्रम में न्यायालय की अवमानना अधिकार क्षेत्र को ‘बहुत ही खतरनाक’ बताया और कहा कि इस व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक, जो न्याय प्रणाली और उच्चतम न्यायालय के कामकाज को जानते हैं, स्वतंत्र रूप से अपने विचार अभिव्यक्त करने में सक्षम होना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से उसे भी अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला बताकर न्यायालय की अवमानना के रूप में लिया जाता है.’
फॉरेन कॉरेस्पॉन्डेंट्स क्लब ऑफ साउथ एशिया द्वारा ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं भारतीय न्यायपालिका’ विषय पर आयोजित वेब सेमिनार में भूषण ने कहा, ‘इसमें न्यायाधीश आरोप लगाने वाले अभियोजक और न्यायाधीश दोनों के रूप में कार्य करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ही खतरनाक अधिकार क्षेत्र है जिसमें न्यायाधीश खुद अपने ही मामले की सुनवाई करते हैं और यही कारण है कि दंडित करने की यह शक्ति रखने वाले सभी देशों ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया. यह भारत जैसे कुछ देशों में ही जारी है. ’’
शीर्ष अदालत ने न्यायपालिका के खिलाफ भूषण के दो ट्वीट को लेकर उन पर एक रुपये का सांकेतिक जुर्माना लगाया था.
न्यायालय ने उन्हें जुर्माने की राशि 15 सितंबर तक जमा करने का निर्देश दिया था और कहा था कि ऐसा करने में विफल रहने पर उन्हें तीन महीने की कैद की सजा और तीन साल तक वकालत करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है.
उन्होंने गुरुवार को कहा कि न्यायपालिका के बारे में मुक्त रूप से चर्चा या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने की कोशिश में न्यायालय की अवमानना की शक्ति का कभी-कभी दुरूपयोग किया जाता है.
भूषण ने कहा, ‘मैं यह नहीं कह रहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ अस्वीकार्य या गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले कोई आरोप नहीं लगाए जा रहे हैं. ऐसा हो रहा है. लेकिन इस तरह की बातों को नजरअंदाज कर दिया जाता है कि लोग इस बात को समझते हैं कि ये बेबुनियाद आरोप हैं.’
अपने ट्वीट के बारे में बात करते हुए भूषण ने कहा कि यह वही था, जो उन्होने शीर्ष अदालत की भूमिका के बारे में महसूस किया.
अधिवक्ता ने कहा कि न्यायालय की अवमानना की व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए और यही कारण है कि उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और वरिष्ठ पत्रकार एन. राम के साथ एक याचिका दायर कर आपराधिक मानहानि से निपटने वाले कानूनी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी.
उन्होंने कहा, ‘शुरूआत में यह याचिका जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष सूचीबद्ध थी और बाद में इसे उनके पास से हटा दिया गया और जस्टिस अरुण मिश्रा (बुधवार को सेवानिवृत्त) के पास भेज दी गई, जिनके इस अवमानना कानून पर विचार जगजाहिर हैं और इससे पहले भी उन्होंने मुझ पर सिर्फ इसलिए न्यायालय की अवमानना का आरोप लगाया था कि मैं पूर्व प्रधान न्यायाधीशों (सीजेआई) जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा और उनके बारे में यह कहा था कि उन्हें हितों में टकराव चलते एक मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए.’
मशहूर लेखक अरुंधति रॉय ने भी कार्यक्रम में इस विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही अफसोसजनक है कि 2020 के भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकार पर चर्चा के लिए एकत्र होना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा, ‘निश्चित रूप से यह लोकतंत्र के कामकाज में सर्वाधिक मूलभूत बाधा है.’
लेखक ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में अचानक नोटबंदी की घोषणा, जीएसएसटी लागू किया जाना, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द किया जाना और संशोधित नागरिकता कानून लाये जाने तथा कोविड-19 को लेकर लॉकडाउन लागू करने जैसे कदम देखे गये हैं.
उन्होंने कहा कि ये चुपके से किए गए हमले जैसा है.
भूषण ने कहा कि वे आशान्वित हैं कि न्यायालय को अपमानित करने के संबंध में शुरू हुई बहस के चलते कानून में बदलाव आएगा और आपराधिक अवमानना के इस भाग को खत्म किया जाएगा क्योंकि ये बोलने की आजादी को कम करने जैसा है.
मालूम हो कि अवमानना मामले में सजा सुनाए जाने के बाद प्रशांत भूषण ने कहा था कि अदालत की अवमानना को लेकर कोर्ट ने जो एक रुपये का जुर्माना लगाया है, उसे वे भर देंगे.
हालांकि इसके साथ उन्होंने ये भी कहा था कि इस फैसले के खिलाफ जाने के लिए उनके पास जो पुनर्विचार याचिका या रिट याचिका का अधिकार है, उसका भी वे इस्तेमाल करेंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)