बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन ने दावा किया कि स्वैच्छिक वीआरएस योजना लागू होने के बाद भी कंपनी अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रही है. पिछले 14 माह से भुगतान नहीं होने की वजह से 13 ठेका श्रमिक आत्महत्या कर चुके हैं. इस बारे में बीएसएनएल को भेजे गए सवालों का जवाब नहीं मिल पाया.
नई दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल ने अपनी सभी इकाइयों को ठेका कार्यों पर खर्चों में कटौती करने का निर्देश दिया है, इससे ठेकेदारों के जरिये कंपनी के लिए काम कर रहे 20,000 श्रमिक बेरोजगार हो जाएंगे. बीएसएनएल की कर्मचारी यूनियन ने शुक्रवार को यह दावा किया.
यूनियन ने यह भी दावा किया है कि कंपनी के 30,000 ठेका श्रमिकों को पहले ही बाहर किया जा चुका है. साथ ही ऐसे श्रमिकों का पिछले एक साल से अधिक का भुगतान नहीं किया गया है.
बीएसएनएल के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक पीके पुरवार को लिखे पत्र में यूनियन ने कहा है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के बाद कंपनी की वित्तीय स्थिति और खराब हुई है. विभिन्न शहरों में श्रमबल की कमी की वजह से नेटवर्क में खराबी की समस्या बढ़ी है.
यूनियन ने कहा कि वीआरएस के बाद भी बीएसएनएल अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रही है. यूनियन ने कहा कि पिछले 14 माह से भुगतान नहीं होने की वजह से 13 ठेका श्रमिक आत्महत्या कर चुके हैं. इस बारे में बीएसएनएल को भेजे गए सवालों का जवाब नहीं मिल पाया.
बीएसएनएल ने मानव संसाधन निदेशक की अनुमति से एक सितंबर को सभी मुख्य महाप्रबंधकों को आदेश जारी कर ठेका श्रमिकों पर खर्च को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा था. इसके अलावा ठेकेदारों के जरिये ठेका श्रमिकों से काम लेने में भी कटौती करने को कहा था.
आदेश में कहा गया था कि चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक चाहते हैं कि बीएसएनएल का प्रत्येक सर्किल ठेका श्रमिकों से काम नहीं लेने के बारे में तत्काल एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार करे.
बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन के महासचिव पी. अभिमनी ने कहा कि बीएसएनएल के करीब 30,000 ठेका श्रमिकों को पहले ही बाहर किया जा चुका है. करीब 20,000 और ठेका श्रमिकों को बाहर करने की तैयारी चल रही है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन की ओर से बीते तीन सितंबर को कंपनी के सीएमडी को भेजे गए पत्र में कहा गया है, ‘वीआरएस 2019 योजना के माध्यम से 79,000 कर्मचारियों को छुट्टी दे दी गई. इस योजना के लागू होने के बाद से ठेका श्रमिकों की जरूरत और बढ़ गई है. हालांकि, आपने हजारों ठेका श्रमिकों को हटाने का फैसला किया है, जिसकी वजह से फील्ड स्तर पर हमारे नेटवर्क के रखरखाव की स्थिति और खराब हुई है.’
यूनियन ने कहा है कि कर्मचारियों की संख्या घटने की वजह से बीएसएनएल की सेवाओं की गुणवत्ता और खराब हुई है और इस संबंध में ऑल यूनियंस एंड एसोसिएशंस ऑफ बीएसएनएल (एयूएबी) से जुड़े सभी बड़े यूनियन और संगठन का यही नजरिया है.
पत्र में कहा गया है, ‘वीआरएस योजना लागू होने से पहले कहा गया था कि इसके माध्यम से बीएसएनएल वित्तीय पुनर्रुद्धार को प्राप्त करेगा, क्योंकि इससे कंपनी के खर्चों में व्यापक कमी आएगी. हालांकि हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं कि कंपनी की वित्तीय हालत इस योजना के लागू होने के बाद से और खराब हुई है.
यूनियन की ओर से कहा गया है कि खराब वित्तीय हालत की वजह से बीएसएनएल कर्मचारियों को समय पर वेतन भी नहीं दे पा रहा है.
मालूम हो कि पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार ने वित्तीय संकट से जूझ रहीं सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए 69,000 करोड़ रुपये के पुनरुद्धार पैकेज की घोषणा की थी.
इसके तहत एमटीएनएल का बीएसएनएल में विलय, संपत्तियों की बिक्री या पट्टे पर देना और कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) की पेशकश किया जाना शामिल था.
कर्मचारी यूनियन ने कहा है कि कंपनी को 4जी सेवाओं से इनकार की वजह से बीएसएनएल का पुनरुद्धार दूर की कौड़ी साबित हो रहा है.
पत्र में कहा गया है कि बीएसएनएल को 4जी स्पेक्ट्रम एलॉट करने का सरकार का निर्णय अब भी कागजों पर है. पुनरुद्धार पैकेज की घोषणा के 10 महीने बाद भी बीएसएनएल अपनी 4जी सेवाएं शुरू करने में असमर्थ है.
यूनियन का आरोप है कि वास्तव में इसी वजह से बीएसएनएल अपना राजस्व नहीं बढ़ा पा रहा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)