राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने एल्गार परिषद मामले में सोमवार को कबीर कला मंच के दो कार्यकर्ताओं सागर गोरखे और रमेश गयचोर को गिरफ़्तार किया था. इन्होंने एजेंसी द्वारा उन पर माओवादियों से संबंध स्वीकारने का दबाव बनाने का आरोप लगाया था.
मुंबईः राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एल्गार परिषद मामले में कबीर कला मंच के दो सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के एक दिन बाद इसी मामले में एक और कार्यकर्ता को गिरफ्तार किया है.
एनआईए ने एल्गार परिषद मामले में मंगलवार को कबीर कला मंच की ही कार्यकर्ता ज्योति जगताप (33) को गिरफ्तार किया.
इससे पहले सोमवार को कबीर कला मंच के सागर गोरखे और रमेश गयचोर को गिरफ्तार किया गया था. उन्हें मंगलवार को मुंबई में एनआईए की विशेष अदालत के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें चार दिनों की एनआईए हिरासत में भेज दिया गया.
ज्योति जगताप को बुधवार को अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा.
बता दें कि इससे पहले एनआईए ने गोरखे और गयचोर को हिरासत में लिए जाने की मांग करते हुए सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच पर प्रतिबंधित (सीपीआई) माओवादी संगठन से जुड़े होने का आरोप लगाया था.
एनआईए अदालत ने दोनों कार्यकर्ताओं को 11 सितंबर तक एनआईए की हिरासत में भेज दिया है.
इस बीच पुणे में कबीर कला मंच की एक और कार्यकर्ता ज्योति जगताप को भी एनआईए ने तलब किया था, जहां से जगताप को एनआईए की हिरासत में भेज दिया गया.
मालूम हो कि कबीर कला मंच पुणे का एक सांस्कृतिक संगठन है, जिसका गठन महाराष्ट्र के बहुजन समुदाय से जुड़े युवाओं ने किया था.
गुजरात के 2002 के सांप्रदायिक दंगों के बाद कई संगीतकारों और कवियों ने एकजुट होकर इस संगठन की शुरुआत की थी, जहां ये मिलकर गीत और संगीत के माध्यम से प्रतिरोध और राज्य के दमन के विरोध में गाकर अपना विरोध दर्ज कराते हैं.
यह संगठन देशभर में जातिगत अत्याचारों को लेकर भी काफी मुखर रहा है.
गिरफ्तार किए गए ये तीनों कार्यकर्ता भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान के बैनर तहत 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम के प्रमुख आयोजक थे.
एनआईए ने गोरखे और गयचोर की हिरासत की मांग करते हुए दावा किया था कि दोनों कार्यकर्ताओं ने गढ़चिरौली जाकर हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया था और इनके माओवादियों से गहरे संबंध हैं.
एनआईए ने कहा, ‘गिरफ्तार किए गए दोनों कार्यकर्ता फरार आरोपी मिलिंद तेलतुम्बड़े और प्रतिबंधित (सीपीआई) माओवादी संगठन के संपर्क में थे.’
मिलिंद को सीपीआई (माओवादी) संगठन के शीर्ष नेताओं में से एक माना जाता है. एनआईए का आरोप है कि आरोपियों ने जंगल में हथियारों और विस्फोटकों का प्रशिक्षण लिया और माओवादी आंदोलन से संबंधित विभिन्न विषयों पर जागरूकता कार्यक्रमों में हिस्सा भी लिया था.
इसी तरह के आरोप पुणे पुलिस ने भी लगाए थे. एनआईए का कहना है कि मिलिंद तेलतुम्बड़े ने गिरफ्तार किए गए लोगों से एल्गार परिषद कार्यक्रम के विवरणों को लेकर चर्चा की थी और सीपीआई (माओवादी) ने इस तरह संगठन में प्रवेश किया था. हिंसा भड़काने का काम कबीर कला मंच और अन्य संगठनों के जरिए किया गया.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ऐसे कई संगठनों पर प्रतिबंध लगाया है, जिन्हें गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है जबकि कबीर कला मंच इस सूची में नहीं है.
एनआईए और इससे पहले पुणे पुलिस ने दावा किया था कि इस मामले में गिरफ्तार सभी 15 आरोपी ‘अर्बन नक्सल’ हैं, जो एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़काने के लिए जिम्मेदार हैं.
इस मामले में इन दोनों और कई अन्य गवाहों को कई बार एनआईए के मुंबई ऑफिस में तलब किया जा चुका है.
इनकी गिरफ्तारी के कुछ मिनटों बाद ही कबीर कला मंच ने इन दोनों कार्यकर्ताओं गोरखे और गयचोर का एक वीडियो जारी किया था, जिसमें इन्होंने बताया कि किस तरह से कथित तौर पर एनआईए के अधिकारियों ने उन पर गिरफ्तारी से बचने के लिए माफीनामा लिखने और गिरफ्तार अन्य लोगों को फंसाने का दबाव बनाया था.
इन कार्यकर्ताओं के ऐसा करने से इनकार करने पर इन्हें कथित तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया.
पांच सितंबर को रिकॉर्ड इस वीडियो में गोरखे को यह कहते सुना जा सकता है, ‘हम स्वीकार नहीं करेंगे. हम विनायक दामोदर सावरकर की नहीं बल्कि आंबेडकर की औलादें हैं. हम लड़ेंगे.’
एनआईए द्वारा दोनों कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने के आरोपों को मंगलवार को एनआईए की अदालत के समक्ष उठाया गया.
उनके वकील निहालसिंह राठौड़ ने तर्क दिया कि दोनों कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया गया और इसके साथ ही सीआरपीसी की धारा 163 का हवाला दिया गया, जिसके तहत गवाहों और आरोपियों को किसी तरह का प्रलोभन देना वर्जित है.
राठौड़ ने अदालत में कहा, ‘2018 में दर्ज एफआईआर में मेरे मुवक्किल के नाम हैं. आपने उन्हें बार-बार पूछताछ के लिए बुलाया. आप दो साल पहले ही उनके स्थानों पर छापेमारी कर चुके हो किसी तरह की आशंका को दूर करने के लिए यह सही रहेगा कि एनआईए उनके मुवक्किल से पूछताछ के ऑडियो और वीडियो के रिकॉर्ड पेश करें.’
इस पर एनआईए ने कहा कि उसने कार्यकर्ताओं से पूछताछ को रिकॉर्ड नहीं किया था.
एनआईए इससे पहले कार्यकर्ताओं के वकील निहालसिंह राठौड़ को भी सात सितंबर को तलब कर चुका था. राठौड़ की तरह इस मामले में पैरवी कर रहे कई अन्य वकीलों को भी पूछताछ के लिए समन किया जा चुका है.
यह पहली बार नहीं है कि गोरखे और गयचोर को गिरफ्तार किया गया है. उन्हें इसी तरह के आरोपों में 2013 में महाराष्ट्र एटीएस ने गिरफ्तार किया गया था.
उस समय राज्य में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी और उस समय गोरखे और गयचोर ने चार साल जेल में बिताए थे, जिसके बाद उन्हें जमानत दे दी गई थी. यह मामला अभी भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित है.
वहीं, इससे पहले सोमवार को ही एनआईए ने एल्गार परिषद मामले की जांच के संबंध में पूछताछ के लिए हैदराबाद के एक शिक्षाविद् और कोलकाता के पत्रकार को तलब किया था.
जिन दो लोगों को तलब किया गया है, उनमें से एक हैदराबाद के इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज यूनिवर्सिटी (ईएफएलयू) में प्रोफेसर के. सत्यनारायण (51) हैं, जबकि दूसरे द हिंदू के पत्रकार केवी कुरमानाथ हैं.
ये दोनों ही एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव के दामाद हैं.
इसके साथ ही एनआईए ने कोलकाता के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) में एसोसिएट प्रोफेसर पार्थसारथी रे को भी एल्गार परिषद मामले में पूछताछ के लिए तलब किया है.
पार्थसारथी ने एनआईए द्वारा उन्हें तलब करने को प्रताड़ित करने की रणनीति करार दिया है.
बता दें कि एनआईए आगामी महीने में वरिष्ठ पत्रकार और कार्यकर्ता गौतम नवलखा और अकादमिक एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करने वाली है, जो इस मामले में अब तक की तीसरी चार्जशीट होगी.
बीते कुछ हफ्तों में कई लोगों को पूछताछ के लिए तलब किया गया है. कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के अलावा एनआईए ने इस मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों को भी तलब किया है.
इस मामले में अब तक 15 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
मामले में पहले की दौर की गिरफ्तारियां जून 2018 में हुई थीं, जब पुणे पुलिस ने लेखक और मुंबई के दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, यूएपीए विशेष और वकील सुरेंद्र गाडलिंग, गढ़चिरौली से विस्थापन मामलों के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग की प्रमुख शोमा सेन और दिल्ली के नागरिक अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन शामिल थे.
दूसरे दौर की गिरफ्तारियां अगस्त 2018 से हुईं, जिसमें वकील अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, लेखक वरवरा राव और वर्नोन गॉन्जाल्विस को हिरासत में लिया गया था.
शुरुआत में पुणे पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी लेकिन महाराष्ट्र से भाजपा की सरकार जाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नवंबर 2019 में इस मामले को एनआईए को सौंपा था.
इसके बाद एनआईए ने 14 अप्रैल 2020 को आनंद तेलतुम्बड़े और कार्यकर्ता गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया और फिर जुलाई 2020 में हेनी बाबू की गिरफ़्तारी हुई.
इससे पहले पुणे पुलिस ने पहली चार्जशीट दाखिल की थी, जो 5,000 से अधिक पेजों की थी. पुलिस ने दावा किया था कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनके कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) से संबंध हैं और 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद कार्यक्रम आयोजित करने में इन्होंने मदद की थी.
इस मामले में फरवरी 2019 में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई थी और राज्य सरकार का कहना था कि माओवादी नेता गणपति एल्गार परिषद मामले के मास्टरमाइंड हैं.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)