कैग की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रेन में अशुद्ध पानी का इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है. खाने को ढका नहीं जाता और चूहे-तिलचट्टे खुलेआम घूमते रहते हैं.
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग या कैग) की आॅडिट रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रेलों में परोसा जाने वाले भोजन और पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कैग और रेलवे ने 74 स्टेशन और 80 ट्रेनों में संयुक्त निरीक्षण कर इस रिपोर्ट को तैयार किया है, जो कि मार्च 2016 तक के अध्ययन पर आधारित है.
रिपोर्ट में पाया गया है कि ट्रेन और स्टेशन पर दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाद्य पदार्थ और डिब्बाबंद भोजन एक्सपायरी डेट के बाद भी परोसा जा रहा है. अनधिकृत पानी के ब्रांड भी स्टेशन और ट्रेनों में बेचा जा रहा है. रिपोर्ट में पाया गया है कि बहुत सारे खाद्य पदार्थ रिसायकल करके भी बेचे जा रहे हैं.
आॅडिट रिपोर्ट में यह माना गया है कि पेय पदार्थों बनाने के लिए नल का पानी बिना संशोधित किए इस्तेमाल किया जा रहा है. ट्रेनों में कचरे के डिब्बों को ढका नहीं जाता. नियमित रूप से खाली नहीं किया जाता, उन्हें धोया नहीं जाता. खाने के सामानों को मक्खियों, कीड़े और धूल से बचाने के लिए ढका नहीं जाता और चूहे और तिलचट्टे आदि गाड़ियों में खुलेआम घूमते पाए गए हैं.
एशियन ऐज के अनुसार, रिपोर्ट में इसके कारण का भी उल्लेख किया गया है. खान-पान नीति में अक्सर बदलाव और गड़बड़ी के लिए खान-पान इकाइयों का प्रबंधन करने के लिए ज़िम्मेदारी के स्थानांतरण को भी इसके लिए ज़िम्मेदार माना गया है. रेलवे में इन सबकी ज़िम्मेदारी आईआरसीटीसी के पास होती है.
रेलवे साल 2005 के बाद अपनी कैटरिंग नीतियों में तीन बार बदलाव कर चुका हैं. आख़िरी बार बदलाव इस साल फरवरी में किया गया.
राष्ट्रीय ऑडिटर का कहना है, ‘लगातार नीति परिवर्तन के कारण, बेस रसोई, स्थिर खान-पान इकाइयों आदि के संदर्भ में रेल महकमा आवश्यक बुनियादी ढांचे के प्रावधान के लिए प्रभावी कदम नहीं उठा सका है.’
वर्षों से लगातार नीतियों में बदलाव से यात्रियों को प्रदान की जाने वाली खान-पान सेवाओं के प्रबंधन में अनिश्चितता पैदा हुई है. रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि सात रेलवे ज़ोन में खान-पान सेवाएं प्रदान करने के लिए कोई भी योजना तैयार नहीं की गई है.