मराठा समुदाय को शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया. हालांकि जिन लोगों को इसका लाभ मिल गया है उनकी स्थिति में कोई बदलाव नही होगा. अब इस मामले की सुनवाई बड़ी पीठ करेगी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा और रोजगार में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के 2018 के कानून के अमल पर बुधवार को रोक लगा दी, लेकिन स्पष्ट किया कि जिन लोगों को इसका लाभ मिल गया है उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आगे कहा कि इस अधिनियम के तहत वर्ष 2020-2021 के लिए कोई नियुक्ति या प्रवेश नहीं किया जाएगा.
हालांकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि आज तक जो भी पोस्ट ग्रैजुएट एडमिशन हुए हैं, उसमें कोई बदलाव नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2018 के कानून का जो लोग लाभ उठा चुके हैं उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.
साथ ही मामले में अंतिम निर्णय के लिए पांच या उससे अधिक जजों की वृहद पीठ को भेजा जाएगा, जिसका गठन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में शिक्षा और रोजगार में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी कानून की वैधता को चुनौती दी गई है. इन याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि कुल मराठा आरक्षण शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक हो गया है.
बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण कानून, 2018 में बनाया था.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल जून में इस कानून को वैध ठहराते हुए कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और इसकी जगह रोजगार में 12 और प्रवेश के मामलों में 13 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश और इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया है.
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने 27 जुलाई को न्यायालय को भरोसा दिलाया था कि वह 15 सितंबर तक सार्वजनिक स्वास्थ और मेडिकल शिक्षा एवं शोध विभागों के अलावा 12 फीसदी मराठा आरक्षण के आधार पर रिक्त स्थानों पर भर्तियों की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाएगी.
एक याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमित आनंद और विवेक सिंह ने इससे पहले न्यायालय से कहा था कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश की अंतिम तिथि टाली जानी चाहिए.
हाईकोर्ट ने पिछले साल 27 जून को अपने आदेश में कहा था कि अपवाद स्वरूप परिस्थितियों के अलावा आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 फीसदी की सीमा लांघी नहीं जा सकती है.
हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के इस तर्क को स्वीकार कर लिया था कि मराठा समुदाय शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है और उनकी प्रगति के लिए आवश्यक कदम उठाना सरकार का कर्तव्य है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि महाराष्ट्र सरकार का आरक्षण संबंधी कानून मंडल प्रकरण में संविधान पीठ द्वारा निर्धारित 50 फीसदी आरक्षण की अधिकतम सीमा लांघता है.
महाराष्ट्र विधानसभा ने 30 नवंबर, 2018 को एक विधेयक पारित किया था जिसमे मराठा समुदाय के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)