डॉ. पायल तड़वी की आत्महत्या मामले में आरोपी तीन डॉक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी पढ़ाई पूरी करने की अनुमति मांगते हुए याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था. राज्य सरकार ने कहा है कि सुनवाई ख़त्म होने तक उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए.
मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल में रेजिडेंट डॉ. पायल सलमान तड़वी की आत्महत्या मामले में आरोपी तीन डॉक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी पढ़ाई पूरी करने की अनुमति मांगते हुए याचिका दायर की थी, जिसके जवाब में अब महाराष्ट्र सरकार ने अपना विरोध करते हुए कहा है कि जब तक उन पर सुनवाई खत्म नहीं हो जाती, उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, महाराष्ट्र के उप सचिव (चिकित्सा शिक्षा) ने अदालत में दायर हलफनामे में कहा कि बीवाईएल नायर अस्पताल की एंटी-रैगिंग कमेटी ने 25 मई 2019 को दी गई अपनी रिपोर्ट में पाया था कि पोस्ट-ग्रेजुएशन की तीनों छात्राओं- हेमा आहूजा, भक्ति मेहारे और अंकिता खंडेलवाल को उनकी जूनियर डॉ. पायल तड़वी की रैगिंग की थी.
हलफनामे में आगे कहा गया, ‘क्योंकि याचिकाकर्ताओं को बीवाईएल नायर अस्पताल से पहले ही निलंबित किया जा चुका है इसलिए इस निलंबन आदेश के प्रभावी रहने तक उन्हें किसी भी अन्य कॉलेज/अस्पताल में नहीं रखा जा सकता है.’
मालूम हो कि आत्महत्या के उकसावे और जातिगत भेदभाव की आरोपी इन डॉक्टर्स ने नायर अस्पताल से सस्पेंड किए जाने के बाद अपनी पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के लिए शहर के किसी अन्य इंस्टिट्यूट में ट्रांसफर किए जाने की अनुमति मांगी थी.
इस मामले की सुनवाई आठ सितंबर को होनी थी, लेकिन इसे 14 सितंबर तक स्थगित कर दिया गया था.
कानूनन किसी संस्थान के पोस्ट-ग्रेजुएशन छात्रों को दूसरे संस्थान में भेजने की अनुमति संबंधी निर्णय मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) और महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज ले सकते हैं.
एमसीआई इससे पहले कह चुका है कि इस तरह टर्म के बीच में इस तरह के ट्रांसफर की अनुमति नहीं दी जा सकती है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस याचिका पर जवाब मांगा था, साथ ही संबंधित अथॉरिटी को उन मेडिकल कॉलेज की लिस्ट जमा करने को कहा था जहां इन तीनों को भेजा जा सकता है.
अपने हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा है कि इस समय इस तरह के ट्रांसफर को मंजूरी देने का ‘कोई तत्काल दबाव’ नहीं है क्योंकि ये तीनों मुकदमा खत्म होने के बाद अपना कोर्स पूरा कर सकती हैं.
सरकार ने आगे कहा कि तीनों के पास एमबीबीएस की डिग्री है और मेडिकल प्रैक्टिस करने की आजादी भी है. मालूम हो कि फरवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल ने इन आरोपी डॉक्टरों के रद्द किए गए मेडिकल लाइसेंस बहाल करने का आदेश दिया है.
पायल तड़वी की मां आबेदा, जो इस मामले में शिकायतकर्ता हैं, उन्होंने इसका विरोध किया था. आबेदा ने राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री अमित देशमुख को पत्र लिखकर आरोपी डॉक्टरों के निलंबित किए गए लाइसेंस मामले की सुनवाई पूरी होने तक रद्द रहने की ही मांग की थी.
उनका कहना है कि मामले की सुनवाई पूरी होने तक इनके लाइसेंस रद्द रखना जरूरी है.
राज्य सरकार के हलफनामे के अलावा मामले की जांच कर पुलिस टीम के एसीपी ने भी एक अन्य हलफनामे में इन आरोपियों की याचिका का विरोध किया है.
उनका कहना है कि अभियोजन इस मामले, जिसे आरोप तय करने के दस महीनों के अंदर पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं, में करीब 60 गवाहों से पूछताछ करना चाहता है.
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें इन तीनों आरोपियों के वापस पढ़ाई करने नायर अस्पताल जाने पर गंभीर आपत्ति है क्योंकि वे गवाह भी उसी संस्थान में पढ़ते हैं.
इसी तरह की बात तड़वी के परिवार और वकीलों द्वारा भी कही गई है. उनका कहना है कि आरोपी छात्राओं को उसी परिसर में वापस आना मामले के गवाहों को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा.
उन्होंने आगे कहा कि पुलिस ने इस मामले में 250 से अधिक गवाहों के बयान लिए हैं और इनमें से ज्यादातर जूनियर छात्र-छात्राएं हैं, जिन्हें कथित तौर पर आरोपियों द्वारा प्रताड़ित किया गया है.
अनुसूचित जनजाति के तड़वी भील समुदाय से आने वाली पायल तड़वी 22 मई 2019 को अपने हॉस्टल के कमरे में मृत पाई गई थीं.
डॉक्टर पायल तड़वी एमडी की पढ़ाई कर रही थीं. अपने सुसाइड नोट में उन्होंने इन तीन डॉक्टरों द्वारा प्रताड़ित किए जाने की बात लिखी थी.
बता दें कि पायल के परिजनों का आरोप है कि आरोपी डॉक्टर्स उनकी बेटी का मानसिक उत्पीड़न के साथ ही जातिसूचक टिप्पणी भी करते थे. सीनियर्स के इस व्यवहार से पायल बेहद परेशान रहती थी और इसी वजह से उसने ये कदम उठाया.
इस मामले के बाद महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (मार्ड) ने तीनों आरोपी डॉक्टरों की सदस्यता निरस्त कर दी थी.
इन तीनों आरोपियों को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था और इन पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, महाराष्ट्र प्रोहिबिशन ऑफ रैगिंग एक्ट, आत्महत्या के लिए उकसाने, साक्ष्य नष्ट करने के लिए आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल अगस्त में तीनों को जमानत देते हुए कई शर्तें लगाई थी, जिसमें मामले की सुनवाई पूरी होने तक एमएमसी द्वारा जारी किए गए लाइसेंस को रद्द करना भी शामिल था.
हालांकि, इसके बाद तीनों आरोपियों ने इन शर्तों में ढील दिए जाने को लेकर पिछले साल अदालत के समक्ष याचिका दायर की थी.