किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के ज़रिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की स्थापित व्यवस्था को ख़त्म कर रही है और अगर ऐसा होता है तो उन्हें कॉरपोरेट के रहम पर जीना पड़ेगा. बीते जुलाई महीने में राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के किसान भी इसे लेकर प्रदर्शन कर चुके हैं.
कुरुक्षेत्र: केंद्र सरकार के तीन कृषि अध्यादेशों को किसान विरोधी बताते हुए उनके विरोध में भारतीय किसान संघ और अन्य किसान संगठनों ने बृहस्पतिवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिपली में राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया.
भारतीय किसान संघ ने दावा किया कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया.
कुरुक्षेत्र की पुलिस अधीक्षक आस्था मोदी ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया है.
एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘सैकड़ों किसान पिपली चौक तक पहुंचे और पुलिसकर्मियों पर पथराव किया.’ उन्होंने कहा कि किसानों ने वहां खड़ी दमकल की गाड़ी के खिड़की के शीशे भी तोड़ दिए.
अधिकारी ने कहा कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया. बाद में प्रदर्शनकारी यातायात रोकने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 22 पर धरने पर बैठ गए.
Police VS farmers in Haryana, incidentally about 50 km from the mega #RafaleInduction
Reports of farmers being lathicharged. Via @ndtv’s Ghazali. pic.twitter.com/6ExSmWQfTM— Chetan Bhattacharji (@CBhattacharji) September 10, 2020
‘किसान बचाओ, मंडी बचाओ’ रैली के लिए किसानों को पिपली अनाज मंडी में पहुंचने से रोकने के लिए जिला प्रशासन द्वारा की गई कड़ी व्यवस्था के बावजूद कई किसान वहां पहुंचने में कामयाब रहे.
कुरुक्षेत्र शहर में दयालपुर चौराहे पर लगाए गए पुलिस बैरियर को तोड़ते हुए ट्रैक्टर और अन्य वाहनों पर सवार लगभग 100 किसानों ने पिपली की ओर प्रस्थान किया.
समूह का नेतृत्व कर रहे किसान नेता अक्षय हाथीरा ने मीडिया को बताया कि राज्य सरकार रैली को प्रतिबंधित करके और सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लगाकर किसानों की आवाज को रोकने की कोशिश कर रही थी.
इस बीच पिपली मंडी और इसके आसपास के इलाकों को पुलिस ने सील कर दिया था.
कांग्रेस नेता अशोक अरोड़ा और लाडवा के कांग्रेस विधायक मेवा सिंह अपने समर्थकों के साथ पिपली मंडी के बाहर पहुंचे और पुलिस द्वारा रोकने पर विरोध में वे सड़क पर बैठ गए.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कुरुक्षेत्र के पास पीपली अनाज मंडी में किसानों की रैली में शामिल होने जा रहे मेहम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू को पुलिस ने निषेधाज्ञा के उल्लंघन के आरोप में बृहस्पतिवार को गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि कुछ घंटों पर बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.
रिहा होने के बाद उन्होंने कहा, ‘इन अध्यादेशों के खिलाफ किसानों को उनकी आवाज उठाने से पुलिस रोक नहीं सकती. मैं अपने किसान भाइयों के साथ खड़ा रहूंगा और जब तक अध्यादेश वापस नहीं ले लिए जाते सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करूंगा. ये अध्यादेश किसानों के अधिकारों को कॉरपोरेट को बेचने के लिए लाए गए हैं.’
कुंडू ने किसानों पर लाठीचार्ज की निंदा करते हुए कहा कि यह सरकार किसानों के खिलाफ है.
उन्होंने कहा, ‘अगर राजनीतिक नेता जिला प्रशासन के आदेशों (सामाजिक दूरी को लेकर) को धता बताकर बड़ौदा निर्वाचन क्षेत्र में (उपचुनाव के लिए) प्रचार कर सकते हैं, तो किसानों को रैली आयोजित करने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है?’
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रिपोर्ट के अनुसार, तोषम से कांग्रेस विधायक किरण चौधरी ने भी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और राज्य के कृषि मंत्री जेपी दलाल की आलोचना की है.
उन्होंने कहा, ‘इन अध्यादेशों को लागू करने से किसान कॉरपोरेट घरानों के हाथों प्रताड़ित किए जाएंगे. एक तरफ भाजपा और जेजेपी (सत्तारूढ़ गठबंधन) के नेता बड़ौदा में प्रशासन के आदेशों के खिलाफ जाकर रैली कर लोगों का जीवन दांव पर लगा रहे हैं तो दूसरी तरह पिपली में किसानों के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए धारा 144 लागू कर दिया गया है. यह बताता है कि सरकार किसानों के प्रदर्शन से डरती है.’
इस बीच कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा है कि अनाज के लिए लागू न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म करने की सरकार की कोई योजना नहीं है. उन्होंने किसानों से कोरोना वायरस के मद्देनजर प्रशासन के आदेशों को पालन करने का आग्रह किया है.
इससे पहले बीते 20 जुलाई को राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के किसानों ने सरकार द्वारा हाल ही में लाए गए तीन कृषि अध्यादेशों के विरोध में ट्रैक्टर-ट्रॉली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया था.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर मोदी सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
केंद्र की मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है, जिसके जरिये खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया.
सरकार ने एक नया कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 पेश किया है, जिसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है.
केंद्र ने एक और नया कानून- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020 पारित किया है, जो कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान करता है ताकि बड़े बिजनेस और कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर जमीन लेकर खेती कर सकें.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)