नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा कि हमारा समाज, हमारा कानून और हमारे नैतिक मूल्य इसकी मंजूरी नहीं देते.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली जनहित याचिका का विरोध करते हुए केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष यह टिप्पणी की.
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा, ‘हमारे कानून, हमारी न्याय प्रणाली, हमारा समाज और हमारे मूल्य समलैंगिक जोड़े के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते. हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विवाह के लिए महिला और पुरुष होना जरूरी है.’
मेहता ने यह भी कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट में भी विवाह से जुड़े विभिन्न प्रावधान संबंधों के बारे में पति और पत्नी की बात करते हैं, समलैंगिक विवाह में यह कैसे निर्धारित होगा कि पति कौन है और पत्नी कौन?
पीठ ने यह माना कि दुनियाभर में चीजें बदल रही हैं, लेकिन यह भारत के परिदृश्य में यह लागू हो भी सकता है और नहीं भी.
दरअसल, एलजीबीटी समुदाय से जुड़े चार सदस्यों ने आठ सितंबर को हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई दिल्ली के चीफ जस्टिस एचसी डीएन पटेल और जज प्रतीक जालान की पीठ कर रही है.
इस याचिका में कहा गया कि हिंदू मैरिज एक्ट यह नहीं कहता कि शादी महिला-पुरुष के बीच ही हो. साल 2018 से भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है, फिर भी समलैंगिक शादी अपराध क्यों है.
याचिकाकर्ताओं के वकील राघव अवस्थी का कहना है कि जब एलजीबीटी समुदाय को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है, तो फिर शादी को मान्यता न देना संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन होगा.
वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या किसी समलैंगिक जोड़े ने शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया है, जिन्हें इससे इनकार कर दिया गया.
इस पर अवस्थी ने कहा कि हां, लेकिन वे अदालत के सामने आने को तैयार नहीं थे, इसलिए जनहित याचिका दाखिल की गई है.
अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 21 अक्टूबर की तारीख तय की है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर, 2018 को अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था.
अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे. हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)