गुरुवार को सामने आए राजकोट के सिविल अस्पताल के वीडियो में एक मरीज़ के साथ अस्पताल का स्टाफ बदसलूकी करता दिख रहा है. अस्पताल का कहना है कि ऐसा उसे ‘काबू’ में करने के लिए किया गया. कोरोना संक्रमित इस मरीज़ की मौत 12 सितंबर को हो चुकी है.
अहमदाबाद: गुजरात के राजकोट सिविल अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों द्वारा एक कोरोना संक्रमित मरीज को कथित रूप से पीटे जाने का मामला सामने आया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, गुरुवार को सामने आए एक वीडियो में अस्पताल का स्टाफ मरीज को ‘रोकते’ हुए नजर आ रहा है. इस मरीज की मौत 12 सितंबर को चुकी है.
वीडियो सामने आने के बाद उनके परिजनों ने आरोप लगाया है कि उनकी मौत मारपीट के चलते हुई है न कि संक्रमण से.
इस मरीज की पहचान 38 वर्षीय प्रभाशंकर पाटिल के तौर पर हुई है, जिन्हें 8 सितंबर को कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद गिरिराज म्युनिसिपाल्टी अस्पताल से राज्य सरकार द्वारा संचालित पीडीयू अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. वे गुर्दे संबंधी बीमारी का इलाज करवा रहे थे.
सोशल मीडिया पर सामने आया 55 सेकेंड का वीडियो कथित तौर पर 9 सितंबर का है, जिसमें एक स्टाफ सदस्य ने जमीं पर पड़े पाटिल के सीने पर घुटना रखकर उन्हें दबाया हुआ है. बाकियों ने उनके हाथ पकड़ रखे हैं और एक सिक्योरिटी गार्ड लाठी लिए दिख रहा है.
वीडियो में पीपीई किट पहने हुए यह स्टाफ सदस्य कह रहा है कि ‘मैंने तुम्हें ऐसा करने के लिए मना किया था, जबकि पाटिल उनसे विनती करते हैं.
जब वह भागने की कोशिश करते हैं, तब इस पैरामेडिक को कहते सुना जा सकता है कि पुलिस आ रही है. फिर लाठी लिए गार्ड उन्हें धकेलकर फर्श पर गिरा देता है और अपना पैर उनके कंधे पर रख देता है और पैरामेडिक उन्हें थप्पड़ मारते दिखता है.
वे रोते हुए ‘कोरोना, कोरोना’ कहते हैं और फिर एक महिला स्टाफ की आवाज आती है कि ‘कोरोना से तुम्हें कुछ नहीं होगा.’ पाटिल की मौत 12 सितंबर को हो गई थी.
यह वीडियो 17 सितंबर को वायरल हुआ हुआ और स्थानीय चैनलों पर दिखाया गया, जिसके बाद अस्पताल प्रशासन ने स्पष्टीकरण देते हुए दावा किया कि मरीज ‘मानसिक रूप से अस्वस्थ’ था और उसे पीटा नहीं, बल्कि रोका जा रहा था, ताकि वह अस्पताल के कर्मियों और स्वयं को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सके.
इसके कुछ घंटो बाद प्रमुख सचिव जयंती रवि (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण) राजकोट पहुंची और एक प्रेस वार्ता संबोधित करते हुए पाटिल परिवार के आरोपों का खंडन किया.
रवि ने इस अख़बार को बताया, ‘वह (पाटिल) डेलीरियम की बेहद गंभीर अवस्था में थे. उन्हें किसी बात का होश नहीं था. वह इधरउधर भाग रहे थे, अपने कपड़े उतार दिए थे. यहां तक कि उन्होंने अपने पास लेते एक मरीज का गाला घोंटने की कोशिश भी की…’
उन्होंने आगे कहा, ‘स्टाफ ने उन्हें ठीक तरह से संभाला, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनकी जान चली गई. यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है और तरह देखना चाहिए.’
इस अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. पंकज बुच ने एक बयान जारी करते हुए कहा, ‘मैं वायरल वीडियो में दिख रहे मरीज के बारे में बताना चाहता हूँ, वह प्रभाशंकर पाटिल हैं, वे कोरोना पॉजिटिव थे, साथ ही उन्हें डायबिटीज और हाइपरटेंशन की समस्या भी थी.’
उन्होंने आगे कहा कि अस्पताल के मनोरोग विभाग है कि जब वीडियो शूट हुआ तब उन्हें हिस्टीरिया का दौरा पड़ा था और वे इधर-उधर भाग रहे थे, ट्यूब्स वगैरह निकालने का प्रयास कर रहे थे… अपने कपड़े उतार रहे थे और इस तरह का व्यवहार कर रहे थे जिससे अपने साथ-साथ वे दूसरे मरीजों को बभी नुकसान पहुंचा सकते थे. जब उनको समझाने का कोई नतीजा नहीं निकला तब उन्हें नियंत्रित किया गया.’
उन्होंने बताया कि इसके बाद स्टाफ ने पाटिल को काबू किया और मनोरोग विभाग की सलाह पर स्टेब्लाइज़ करने के लिए इंजेक्शन दिए.
जयंती रवि का कहना है, ‘पाटिल मानसिक रूप से बीमार थे. डाक्टरों ने बताया कि वो खिड़की के पास जाकर बैठने को लेकर बेचैन हो जाते थे. यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे अन्य मरीजों के वेंटिलेटर पर गिर न जाएं, हमारे स्टाफ ने उन्हें सही तरीके से संभाला… आपने वीडियो में देखा होगा कि कोई उन्हें मार नहीं रहा है.’
जब उन्हें कहा गया कि ऐसा नहीं है, उन्हें मारा जा रहा है, तब उन्होंने कहा,’उन्हें काबू किया गया था. वे उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे थे…’
उन्होंने आगे कहा, ‘… जब ऐसे मानसिक तौर पर परेशान मरीज कोविड जैसी किसी बीमारी का शिकार बनते हैं, तब उनका उग्र व्यवहार सामने आता है. लेकिन इसे भी संवेदना के साथ संभाला जाना चाहिए… और यही हमारी किया.’
हालांकि पाटिल के परिवार ने इन दावों को नकार दिया है. पाटिल के छोटे भाई विलास पाटिल ने बताया, ‘उन्हें कभी कोई मानसिक बीमारी नहीं रही. उन्हें आठ तारीख को सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और उसके बाद से कभी उनसे सीधे तौर पर बातचीत नहीं हुई. उनके पास वहां फोन भी नहीं था. हम जब भी अस्पताल के हेल्प सेंटर संपर्क करते थे, हमें कहा जाता कि भाई सो रहे हैं या बात करने की स्थिति में नहीं हैं.’
विलास ने कहा, ’12 तारीख की सुबह हमें कहा गया कि उनकी हालत ठीक है और उन्होंने नाश्ता भी किया. लेकिन शाम को हमें फोन आया कि उनकी मौत हो गई. हमें आज (17 सितंबर) को मालूम हुआ है कि उन्हें पीटा गया था.’
उन्होंने आगे कहा, ‘उनकी मौत कोरोना वायरस से नहीं हुई, उनकी मौत पिटाई से हुई. उनके शव को रामनाथपारा शवदाहगृह ले जाया गया था और मैंने देखा था कि उन्होंने वही कमीज पहन रखी थी. मैंने उनके चेहरे पर कुछ काले निशान भी देखे थे, जो शायद पिटाई से हुए होंगे.’
यह परिवार मूल रूप से महाराष्ट्र के जलगांव के इंधवे गांव का रहने वाला है और 15 साल पहले दोनों भाई काम करने राजकोट आए थे. प्रभाशंकर एक कंपनी में मशीन ऑपरेटर का काम करते थे.
विलास उनकी मृत्यु से जुड़े रस्मोरिवाज निभाने के लिए अपने गांव में हैं. उनका कहना है कि जब वे वापस राजकोट लौटेंगे, तब इस मामले को लेकर पुलिस के पास जाएंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)