बीते हफ़्ते लोकसभा में श्रम सुधारों को लेकर तीन विधेयक पेश किए गए हैं, जिसमें कर्मचारियों के आचरण, उन्हें मिलने वाली सुविधाओं, हड़ताल पर जाने, अप्रवासी श्रमिकों और नियोक्ता के अधिकारों जैसे कई बदलाव प्रस्तावित हैं. विपक्ष द्वारा इन्हें लेकर सवाल उठाए गए हैं.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने लोकसभा में श्रम सुधारों को लेकर एक ऐसा विधेयक पेश किया है जो बिना सरकार की मंजूरी के नियोक्ताओं को कर्मचारियों को रखने और उन्हें निकालने में अधिक सुविधा देगा.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सरकार ने जो मसौदा पेश किया है उसके तहत कर्मचारियों के हड़ताल करने के अधिकारों पर अधिक शर्तें लगाई जाएंगी जबकि पूर्व में 100 या उससे अधिक की तुलना में अब 300 कर्मचारियों वाले औद्योगिक संस्थान कर्मचारियों को आसानी से निकाल सकेंगे.
ये बदलाव लोकसभा में शनिवार को पेश किए गए औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020 में प्रस्तावित किए गए हैं.
इसके साथ ही श्रम और रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने दो अन्य श्रम संहिता विधेयकों सामाजिक सुरक्षा पर संहिता, 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्तें संहिता, 2020 भी पेश किया.
औद्योगिक संबंध संहिता में एक स्थायी आदेश (औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों के लिए आचरण नियम) की आवश्यकता के लिए सीमा तीन गुना बढ़ाकर 300 कर्मचारी कर दी है.
इसका अर्थ यह है कि 300 कर्मचारियों तक वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों को एक स्थायी आदेश बनाने की आवश्यकता नहीं होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम कंपनियों को श्रमिकों के लिए मनमाने ढंग से सेवा शर्तों को पेश करने में सक्षम करेगा.
अप्रैल में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में श्रम पर स्थायी समिति ने भी इस सीमा को 300 श्रमिकों तक करने का सुझाव दिया था. उनका कहना था कि राजस्थान जैसी कुछ राज्य सरकारों ने पहले ही सीमा में वृद्धि की थी और श्रम मंत्रालय के अनुसार, इसके परिणामस्वरूप रोजगार में वृद्धि हुई थी और छंटनी में कमी आई थी.
औद्योगिक संबंध संहिता यह भी प्रस्तावित करता है कि एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत कोई भी व्यक्ति 60 दिन के नोटिस के बिना और अधिकरण या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही की अवधि के दौरान और ऐसी कार्यवाही के समापन के साठ दिनों के बाद हड़ताल पर नहीं जाएगा.
हालांकि, श्रम पर बनी स्थायी समिति ने सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं (Public Utility Service) से परे हड़ताल के लिए नोटिस अवधि के विस्तार के खिलाफ सिफारिश की थी.
फिलहाल एक सार्वजनिक उपयोगिता सेवा में कार्यरत व्यक्ति तब तक हड़ताल पर नहीं जा सकता जब तक कि वह हड़ताल पर जाने से छह सप्ताह से पहले नोटिस नहीं देता है या इस तरह का नोटिस देने के चौदह दिनों के भीतर हड़ताल पर नहीं जा सकता है. अब इसे सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में लागू करने का प्रस्ताव है.
श्रम पर बनी स्थायी समिति ने कहा था, ‘समिति सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए अंधाधुंध रूप से इस प्रावधान के दायरे का विस्तार करने के लिए कोई प्रशंसनीय कारण नहीं पाती है क्योंकि प्रतिबंध उन सभी हड़तालों और प्रदर्शनों पर लागू नहीं होना चाहिए जो औद्योगिक कार्यों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए हैं. इसलिए समिति की इच्छा है कि हड़ताल पर जाने के लिए चौदह दिनों के नोटिस की आवश्यकता केवल सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं जैसे पानी, बिजली, प्राकृतिक गैस, टेलीफोन और अन्य आवश्यक सेवाओं पर लागू की जाए.’
अन्य दो संहिता ने सामाजिक सुरक्षा के विस्तार और अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों को शामिल करने की परिभाषा में भी बदलाव का प्रस्ताव किया है.
सामाजिक सुरक्षा संहिता एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का प्रस्ताव करती है जो असंगठित, अस्थायी और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के विभिन्न वर्गों के लिए उपयुक्त योजना तैयार करने के लिए केंद्र सरकार को सुझाव देगा.
साथ ही वे लोग जो अस्थायी श्रमिकों के साथ काम करेंगे उन्हें अपने वार्षिक टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत योगदान सामाजिक सुरक्षा के लिए देना होगा, जो उनके द्वारा अस्थायी और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को दी जाने वाली राशि के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा.
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्त संहिता ने अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों को ऐसे श्रमिकों के तौर पर परिभाषित किया है, जो अपने बलबूते पर अपना राज्य छोड़कर किसी अन्य राज्य में आए, रोजगार ढूंढा और अब 18,000 रुपये प्रति माह तक कमा रहे हैं.
यह प्रस्तावित परिभाषा इसके वर्तमान परिभाषा से अलग है जहां रोजगार में केवल ठेके पर होने वाले काम की बात की गई है.
हालांकि, इस संहिता ने काम करने वाली जगह के पास श्रमिकों को अस्थायी आवास देने वाले प्रावधान को खत्म कर दिया है. इसने यात्रा भत्ते का प्रस्ताव रखा है- जिसमें नियोक्ता द्वारा श्रमिक के अपने रहने के स्थान से काम की जगह आने में लगने वाले किराये के लगभग बराबर की राशि उसे दी जाएगी.
इससे पहले, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2019 और सामाजिक सुरक्षा संहिता 2019 को वापस लेने का विरोध करते हुए कहा कि वे तकनीकी आधार पर इसका विरोध कर रहे हैं.
चूंकि इन विधेयकों को श्रम संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया और समिति ने रिपोर्ट सौंप दी, ऐसे में इन विधेयकों को वापस लेने से पहले समिति से संवाद किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह जानना चाहते हैं कि क्या समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया गया.
दूसरी ओर, कांग्रेस के मनीष तिवारी और शशि थरूर और माकपा के एएम आरिफ ने नये विधेयक को पेश किए जाने का विरोध किया.
मनीष तिवारी ने कहा कि नया विधेयक लाने से पहले श्रमिक संगठनों और संबंधित पक्षों के साथ फिर से चर्चा की जानी चाहिए थी. अगर यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है तो मंत्रालय को फिर से यह प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि नये विधेयकों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि लोग इस पर सुझाव दे सकें. इसमें प्रवासी मजदूरों की परिभाषा स्पष्ट नहीं है.
तिवारी ने कहा कि श्रमिकों से जुड़े कई कानून अभी भी इसके दायरे से बाहर हैं, इस पर भी ध्यान दिया जाा. उन्होंने कहा कि उनकी मांग है कि विधेयक को वापस लिया जाए और आपत्तियों को दूर करने के बाद इन्हें लाया जाए.
कांग्रेस के ही शशि थरूर ने कहा कि अंतर राज्य प्रवासी श्रमिक के बारे में स्पष्टता नहीं है. इन विधेयकों को नियमों के तहत पेश किए जाने से दो दिन पहले सदस्यों को दिया जाना चाहिए था.
उन्होंने कहा कि इसमें श्रमिकों के हड़ताल करने पर गंभीर रूप से रोक की बात कही गई है. इसमें असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं.
वहीं विधेयकों को पेश करते हुए श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि 44 कानूनों के संबंध में चार श्रम संहिता बनाने की प्रक्रिया बहुत व्यापक स्तर पर की गई.
उन्होंने कहा कि सबसे पहले इस विषय पर विचार 2004 में आया और इसके बाद 10 साल तक कुछ नहीं हुआ. मोदी सरकार आने के बाद इस पर काम शुरू हुआ. इसके तहत नौ त्रिपक्षीय वार्ताएं हुई, 10 बार क्षेत्रीय विचार विमर्श हुए, 10 बार अंतर मंत्रालयी परामर्श हुआ, चार उप समिति स्तर की चर्चा हुई.
श्रम मंत्री ने कहा कि संहिताओं को 3 महीने के लिए वेबसाइट पर रखा गया और इस पर लोगों से 6 हजार सुझाव प्राप्त हुए. इसे श्रम संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया और समिति ने इस पर 233 सिफारिशों के साथ रिपोर्ट सौंपा है. इनमें से 174 सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है. इसके बाद नया विधेयक पेश किया जा रहा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)