असम: अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के प्रकोप के बाद मुख्यमंत्री ने दिया 12,000 सुअरों को मारने का आदेश

अप्रैल महीने से असम के कुछ ज़िलों में बड़ी संख्या में सुअरों के शव मिलने की बात सामने आई थी. पशु पालन और पशु चिकित्सा विभाग ने बताया है कि अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के कारण अब तक राज्य के 14 ज़िलों में 18,000 सुअरों की जान जा चुकी है.

(फोटो: रॉयटर्स)

अप्रैल महीने से असम के कुछ ज़िलों में बड़ी संख्या में सुअरों के शव मिलने की बात सामने आई थी. पशु पालन और पशु चिकित्सा विभाग ने बताया है कि अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के कारण अब तक  राज्य के 14 ज़िलों में 18,000 सुअरों की जान जा चुकी है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने अफ्रीकी स्वाइन फ्लू (एएसएफ) से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में करीब 12,000 सुअरों को मारने का बुधवार को आदेश दिया और अधिकारियों से कहा कि वह सुअरों के मालिकों को पर्याप्त मुआवजा दें.

पशु पालन एवं पशु चिकित्सा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वायरस के कारण अब तक राज्य के 14 जिलों में 18,000 सुअरों की जान जा चुकी है.

अधिकारी ने बताया कि सुअरों को मारने का काम 14 प्रभावित जिलों में रोग से बुरी तरह प्रभावित 30 क्षेत्रों के एक किलोमीटर के दायरे में किया जाएगा और यह काम तुरंत शुरू किया जाएगा.

एक आधिकारिक बयान के अनुसार, ‘विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए, मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार के दिशानिर्देशों के अनुपालन में और विशेषज्ञों की राय का पालन करते हुए, सभी प्रभावित जिलों में संक्रमित सुअरों को मारने का काम दुर्गा पूजा से पहले पूरा किया जाना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि 12,000 सुअरों को मारा जाएगा और सुअरों को मारने के इस अभियान से किसानों को होने वाले नुकसान की पर्याप्त रूप से क्षतिपूर्ति की जाएगी.’

मुआवजे के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा कि 12,000 सुअरों के मालिकों के बैंक खातों में धन जमा कराया जाएगा जबकि पहले ही मर चुके 18,000 सुअरों के मालिकों को आर्थिक सहायता देने के लिए सरकार को एक प्रस्ताव भेजा गया है.

बैठक के दौरान, सोनोवाल ने बताया कि केंद्र ने पहले ही मुआवजे की पहली किस्त जारी कर दी है और राज्य सरकार महामारी से निपटने के उपायों के लिए राशि सहित मुआवजे का हिस्सा जल्द जमा करेगी.

उन्होंने पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग को भी प्रभावित क्षेत्रों को संवेदनशील घोषित करने के लिए कहा ताकि स्वस्थ पशुओं को संक्रमण से बचाया जा सके और राज्य भर के सभी सरकारी खेतों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया.

बैठक में असम में देश के विभिन्न हिस्सों से सुअरों की आपूर्ति पर भी चर्चा हुई. अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के प्रकोप के बाद केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार राज्य के बाहर से सुअरों की आपूर्ति रोक दी गई थी.

सोनोवाल ने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि असम के माध्यम से पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में सुअरों को ले जाने के दौरान कोई भी असावधानी ना हो.

उन्होंने कहा कि सुअर पालन क्षेत्र से अधिक युवाओं को जोड़ने के लिए, सार्वजनिक-निजी-साझेदारी प्रणाली का सहारा लिया जा सकता है.

भारत के घरेलू सुअरों में यह रोग पहली बार पाया गया है. असम सरकार ने इससे पहले दावा किया था कि नोवेल कोरोना वायरस की तरह यह रोग भी चीन से निकला है. साल 2018 से 2020 के बीच चीन में करीब 60 फीसदी घरेलू सुअरों की मौत एएसएफ से हुई है.

मई महीने में मुख्यमंत्री सोनोवाल ने पशु चिकित्सा और वन विभागों से कहा है कि वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केंद्र (नेशनल पिग रिसर्च सेंटर) के साथ राज्य के सुअरों की आबादी को इस रोग से बचाने का रास्ता ढूंढने के लिए मिलकर काम करने की बात कही थी.

हालांकि तब असम के पशुपालन और पशु चिकित्सा मंत्री अतुल बोरा ने कहा था कि राज्य सरकार केंद्र से मंजूरी होने के बाद भी तुरंत सुअरों को मारने के बजाय इस घातक संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए कोई अन्य रास्ता अपनाएगी.

अब बोरा ने बताया कि विभाग द्वारा 2019 की गणना के अनुसार, राज्य में सुअरों की संख्या 21 लाख थी, जो अब बढ़कर 30 लाख हो गई है.

बोरा ने कहा था कि इस बीमारी का पता पहली बार राज्य में इस साल फरवरी के अंत में चला था. लेकिन इसकी शुरुआत अप्रैल 2019 में अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे चीन के शिजांग प्रांत से हुई थी.

बीते मई महीने में बोरा ने कहा था कि संभव है कि चीन से यह बीमारी अरुणाचल में पहुंची. जब वहां सुअर मरे तब उनके शव नदियों में फेंक दिए गए, जिससे यह संक्रमण असम में पहुंचा.’

उन्होंने यह भी जोड़ा था कि यह बेहद संक्रामक रोग है और इंसानों में भी पहुंच सकता है, हालांकि उन्होंने कहा इंसानों पर इसका प्रभाव नहीं होगा.

दुनिया में इस संक्रमण का पहला मामला 1921 में केन्या और इथियोपिया में सामने आया था, लेकिन भारत के इन हिस्सों में इसका प्रसार बेहद दुर्लभ रहा है.

जहां स्वाइन फ्लू जानवरों से इंसानों में फैल सकता है, स्वाइन फीवर के साथ ऐसा नहीं होता, इसलिए इससे जनस्वास्थ्य के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है.

 

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)