ब्रू आदिवासियों का पुनर्वास त्रिपुरा के सभी ज़िलों में हो, नहीं तो होगा आंदोलन: संयुक्त समिति

वर्ष 1997 में हुई मिज़ो समुदाय के साथ हुई जातीय हिंसा के बाद ब्रू समुदाय के 35 हज़ार से अधिक लोगों को मिज़ोरम छोड़कर त्रिपुरा पलायन करना पड़ा था. इन्हें वापस मिज़ोरम भेजने की प्रक्रिया लगातार विफल होने के बाद इस साल जनवरी में इन लोगों को त्रिपुरा में ही बसाए जाने का समझौता किया गया है.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

वर्ष 1997 में हुई मिज़ो समुदाय के साथ हुई जातीय हिंसा के बाद ब्रू समुदाय के 35 हज़ार से अधिक लोगों को मिज़ोरम छोड़कर त्रिपुरा पलायन करना पड़ा था. इन्हें वापस मिज़ोरम भेजने की प्रक्रिया लगातार विफल होने के बाद इस साल जनवरी में इन लोगों को त्रिपुरा में ही बसाए जाने का समझौता किया गया है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

अगरतला: त्रिपुरा में स्थानीय संगठनों के समूह संयुक्त आंदोलन समिति (जेएमसी) ने बुधवार को कहा कि यदि राज्य सरकार ने विस्थापित ब्रू समुदाय के सभी लोगों को मिजोरम से लाकर केवल उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर उप-मंडल में बसाया तो जेएमसी अपना आंदोलन तेज कर देगी.

जेएमसी के संयोजक सुशांत विकास बरुआ ने कहा कि जेएमसी चाहती है कि ब्रू समुदाय के लोगों को केवल उत्तरी त्रिपुरा जिले के कंचनपुर उप-मंडल में बसाने की बजाय उनका पुनर्वास त्रिपुरा के सभी जिलों में किया जाना चाहिए.

बरुआ ने संवाददाताओं से कहा, ‘सरकार ने 4,600 ब्रू परिवारों का पुनर्वास केवल कंचनपुर उप-मंडल और आसपास के क्षेत्रों में करने की पहल की है, लेकिन हमें लगता है कि इससे गैर-ब्रू समुदाय के लोगों पर भारी बोझ पड़ेगा, जिनमें बंगाली, मिजो और स्थानीय जनजातियां शामिल हैं. हम चाहते हैं कि ब्रू समुदाय के लोगों को त्रिपुरा के सभी आठ जिलों में बराबरी की संख्या में बसाया जाए.’

उन्होंने कहा कि यदि सरकार ब्रू समुदाय के सभी लोगों का पुर्नवास कंचनपुर उप-मंडल में करती है तो जेएमसी हड़ताल का आह्वान करेगी या राष्ट्रीय राजमार्ग-8 अवरुद्ध करेगी.

जेएमसी ने मंगलवार को अपनी मांग को लेकर उप-मंडल में सुबह से शाम तक बंद का आह्वान किया था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक संयुक्त आंदोलन समिति (जेएमसी) का गठन नागरिक सुरक्षा मंच नाम के एक बंगाली संगठन और जाम्पुई पहाड़ियों के मिजो कन्वेंशन के प्रतिनिधियों तथा स्थानीय आदिवासी प्रतिनिधियों को मिलाकर किया गया है.

जेएमसी ने बुधवार को उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम), चांदनी चंद्रन के माध्यम से मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को एक ज्ञापन सौंपा. उसमें सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए सात दिन का समय दिया है. अगर सात दिनों में इस पर विचार नहीं किया जाता तो संगठन ने आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है.

इस बीच मिजोरम ब्रू विस्थापित पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) ने दावा किया है कि संयुक्त आंदोलन समिति द्वारा बार-बार आंदोलन चलाए जाने कारण उनकी पुनर्वास योजना टलती आ रही है.

एमबीडीपीएफ के महासचिव ब्रूनो मशा ने कहा, ‘हमने पुनर्वास के लिए 15 स्थानों का प्रस्ताव रखा था, लेकिन अव्यावहारिकता और सामाजिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के कारण पांच को खारिज कर दिया गया. संयुक्त आंदोलन समिति द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन पुनर्वास की प्रक्रिया में बाधा बने हुए हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम राज्य सरकार से अपील करते है कि वह पुनर्वास प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कड़ा रुख अपनाए.’

मालूम हो कि मिजोरम के ब्रू समुदाय के लोग 1997 में मिजो समुदाय के लोगों के साथ हुए भूमि विवाद के बाद शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से त्रिपुरा पलायन करने लगे थे. उस वक्त समुदाय के ब्रू समुदाय के तकरीबन 37 हजार लोग मिजोरम छोड़कर त्रिपुरा के मामित, कोलासिब और लुंगलेई जिलों में भाग आए थे.

ये लोग पिछले 23 सालों से उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर और पानीसागर उप-संभागों के छह शिविरों- नैयसंगपुरा, आशापारा, हजाचेर्रा, हमसापारा, कासकऊ और खाकचांग में रहे रहे हैं.

ब्रू और बहुसंख्यक मिज़ो समुदाय के लोगों की बीच हुई यह हिंसा इनके पलायन का कारण बना था. इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी, जब शक्तिशाली यंग मिज़ो एसोसिएशन और मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के नहीं हैं.

इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की.

इसके बाद 21 अक्टूबर 1996 को बीएनएलफए ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी, जिसके बाद से दोनों समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी.

दंगे के दौरान ब्रू समुदाय के लोगों को पड़ोसी उत्तरी त्रिपुरा की ओर धकेलते हुए उनके बहुत सारे गांवों को जला दिया गया था. इसके बाद से ही इस समुदाय के लोग त्रिपुरा के कंचनपुर और पानीसागर उप-संभागों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं.

आदिवासी समुदाय के इन लोगों को मिजोरम वापस भेजने के लिए जुलाई 2018 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, लेकिन यह क्रियान्वित नहीं हो सका क्योंकि अधिकतर विस्थापित लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था.

इसी साल जनवरी में उनके स्थायी पुनर्वास के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इसके तहत फैसला किया गया है कि मिजोरम से विस्थापित हुए 30 हज़ार से अधिक ब्रू आदिवासी त्रिपुरा में ही स्थायी रूप से बसाए जाएंगे.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में 16 जनवरी को नई दिल्ली स्थित नॉर्थ ब्लॉक में ब्रू समुदाय, केंद्र सरकार और मिजोरम सरकार के प्रतिनिधियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इनमें त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब, मिजोरम के मुख्यमंत्री पु. जोरामथांगा और मिजोरम ब्रू विस्थापित पीपुल्स फोरम के नेता शामिल थे.

1997 में मिज़ोरम से त्रिपुरा आने के छह महीने बाद केंद्र सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत हर बालिग ब्रू व्यक्ति को 600 ग्राम और नाबालिग को 300 ग्राम चावल प्रतिदिन आवंटित किया जाता था.

पैकेज के तहत हर बालिग ब्रू व्यक्ति को पांच रुपये और नाबालिग को 2.5 रुपये प्रतिदिन का प्रावधान था. इसके अलावा इन्हें साल में एक बार साबुन और एक जोड़ी चप्पल तथा हर तीन साल पर एक मच्छरदानी दी जाती थी.

मालूम हो कि बीते साल एक अक्टूबर को गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा के उत्तरी जिलों में स्थित छह ब्रू राहत शिविरों में मुफ्त राशन और नकद सहायता रोक दी थी, क्योंकि ब्रू समुदाय के लोगों ने जान माल का ख़तरा बताते हुए मिजोरम लौटने से इनकार कर दिया था.

पिछले दो दशकों से यहां रहने वाले शरणार्थियों के मिज़ोरम वापसी का नौवां चरण शुरू हुआ था. तब मुफ्त राशन देने की व्यवस्था बहाल करने की मांग को लेकर ब्रू शरणार्थियों ने कई दिनों तक प्रदर्शन किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)