हाथरस मामला: एडिटर्स गिल्ड ने मीडिया को रोकने के लिए यूपी सरकार की आलोचना की

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा कि मीडिया को घटनास्थलों का दौरा करने की अनुमति नहीं देना और फोन पर पत्रकारों की बातचीत को टैप करना मीडिया के कामकाज को बाधित करने के साथ उसे कमतर करना भी है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा कि मीडिया को घटनास्थलों का दौरा करने की अनुमति नहीं देना और फोन पर पत्रकारों की बातचीत को टैप करना मीडिया के कामकाज को बाधित करने के साथ उसे कमतर करना भी है.

हाथरस जिले में स्थित युवती के गांव में तैनात पुलिस बल. (फोटो: पीटीआई)
हाथरस जिले में स्थित युवती के गांव में तैनात पुलिस बल. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने उत्तर प्रदेश सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया है कि उसके तहत काम कर रहीं कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने हाथरस की 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और उसकी मौत के मामले में मीडियाकर्मियों को रिपोर्टिंग करने से रोका.

एडिटर्स गिल्ड ने रविवार को एक बयान जारी कर कहा कि मीडिया को घटनास्थलों का दौरा करने की अनुमति नहीं देना और फोन पर पत्रकारों की बातचीत को टैप करना मीडिया के कामकाज को बाधित करना और उसे कमतर करना है.

गिल्ड ने बयान में कहा, ‘योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली उत्तर प्रदेश सरकार की कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने जिस प्रकार से मीडियाकर्मियों को हाथरस में एक महिला पर हमले के बाद उसकी मौत और उसके बाद बिना घरवालों की मौजूदगी के जल्दबाजी में अंतिम संस्कार की रिपोर्टिंग करने से रोका, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया उसकी निंदा करता है.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक गिल्ड ने कहा, ‘हाथरस की घटना को कवर कर रहे पत्रकारों के टेलीफोन टैप करना भी समान रूप से निंदनीय है. इससे भी खराब स्थिति टैप की गई बातचीत के चुनिंदा हिस्से को सार्वजनिक करना है. जिसकी वजह से सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ माहौल बना.’

गिल्ड ने हाल के महीनों में मीडिया के खिलाफ इस तरह के हमलों के बढ़ते रुझानों पर चिंता जाहिर की.

गिल्ड ने कहा, ‘मीडिया के कामकाज में हस्तक्षेप के पैमाने पर हाथरस एक  बुरा मामला है, लेकिन गिल्ड ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि हाल के महीनों में मीडिया के खिलाफ इस तरह के हमले बढ़े हैं. जिसमें कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी पत्रकारों को परेशान किया है. गिल्ड इनकी निंदा करता है और सुधारात्मक कार्रवाई की मांग करता है.’

मालूम हो कि 29 सितंबर की देर रात युवती का पुलिस द्वारा अंतिम संस्कार किए जाने के बाद हाथरस प्रशासन ने जिले में धारा 144 लागू कर दी थी.

बीते दो अक्टूबर को हाथरस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रकाश कुमार बताया था कि मौजूदा हालात के मद्देनजर किसी भी राजनीतिक प्रतिनिधि या मीडियाकर्मी को तब तक गांव में जाने नहीं दिया जाएगा, जब तक एसआईटी जांच पूरी नहीं कर लेता.

एसआईटी की प्रारंभिक जांच पूरी होने के बाद तीन अक्टूबर को मीडिया को गांव में प्रवेश की अनुमति दे दी गई.

आरोप है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ बलात्कार किया था.

उनकी रीढ़ की हड्डी और गर्दन में गंभीर चोटें आई थीं. आरोपियों ने उनकी जीभ भी काट दी थी. उनका इलाज अलीगढ़ के एक अस्पताल में चल रहा था.

करीब 10 दिन के इलाज के बाद उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 29 सितंबर को युवती ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था.

इसके बाद परिजनों ने पुलिस पर उनकी सहमति के बिना आननफानन में युवती का 29 सितंबर की देर रात अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया था. हालांकि, पुलिस ने इससे इनकार किया है.

युवती के भाई की शिकायत के आधार पर चार आरोपियों- संदीप (20), उसके चाचा रवि (35) और दोस्त लवकुश (23) तथा रामू (26) को गिरफ्तार किया गया है. उनके खिलाफ गैंगरेप और हत्या के प्रयास के अलावा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारक अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

इस बीच हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार द्वारा पीड़ित के पिता को कथित तौर पर धमकी देने का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसके बाद मामले को लेकर पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली की आलोचना हो रही है.

युवती की मौत के बाद विशेष रूप से जल्दबाजी में किए गए अंतिम संस्कार के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने उत्तर प्रदेश पुलिस से जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किए जाने पर जवाब मांगा है.

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस की घटना की जांच के लिए एसआईटी टीम गठित की थी. एसआईटी की रिपोर्ट मिलने के बाद लापरवाही और ढिलाई बरतने के आरोप में दो अक्टूबर को पुलिस अधीक्षक (एसपी) विक्रांत वीर, क्षेत्राधिकारी (सर्किल ऑफिसर) राम शब्‍द, इंस्पेक्टर दिनेश मीणा, सब इंस्पेक्टर जगवीर सिंह, हेड कॉन्स्टेबल महेश पाल को निलंबित कर दिया गया था.

मामले की जांच अब सीबीआई को दे दी गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)