सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के ख़िलाफ़ आप सरकार की याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंप दिया जिसमें कहा गया है कि दिल्ली एक राज्य नहीं है और इसका प्रशासनिक मुखिया उपराज्यपाल है.
जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस आरके अग्रवाल की पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून और संविधान से संबंधित महत्वपूर्ण सवाल निहित हैं और इसलिए इसका निर्णय संविधान पीठ को करना चाहिए.
हालांकि, पीठ ने इस मामले में संविधान पीठ के विचारार्थ मुद्दे तैयार नहीं किए. केंद्र और दिल्ली सरकार से कहा कि वे वृहद पीठ के समक्ष इस मामले पर बहस करें. अब चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर इस मामले की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन करेंगे.
आप सरकार ने अदालत ने कहा कि वह इस मामले की वृहद पीठ द्वारा शीघ्र सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष इसका उल्लेख करेंगे क्योंकि इस विवाद की वजह से दिल्ली में शासन प्रभावित हो रहा है.
दिल्ली सरकार ने दो फरवरी को शीर्ष अदालत से कहा था कि विधानसभा के दायरे में आने वाले सभी मामलों में उसे शासकीय अधिकार प्राप्त हैं और केंद्र या राष्ट्रपति या उपराज्यपाल इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह सही है कि निर्वाचित सरकार के पास कुछ अधिकार तो होने ही चाहिए परंतु क्या यह दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय के अनुसार होने चाहिए या फिर दिल्ली सरकार के दृष्टिकोण के अनुसार, इस पर गौर करना होगा.
दिल्ली सरकार ने अदालत से यह भी कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के पास सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस के अलावा वे सारे अधिकार हैं जो राज्य और समवर्ती सूचियों में शामिल हैं.
दिल्ली सरकार का कहना था कि हम संविधान के अनुच्छेद 239एए के अंतर्गत प्रदत्त विशेष दर्जा चाहते हैं. उसका कहना था कि यह बहुत सीमित विषय है परंतु इसकी व्याख्या की ज़रूरत है. हमें यह देखना होगा कि इस अनुच्छेद के तहत उपराज्यपाल की क्या सीमाएं हैं.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ सितंबर को हाईकोर्ट के आठ अगस्त के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था.